प्रयागराज के धरोहरों के संरक्षण पर जोर देने की चिंता, पर्यटन के क्षेत्र में ठोस पहल की जरूरत बताई

इलाहाबाद तब और अब विषयक ऑनलाइन परिचर्चा में प्रो. हेरंब चतुर्वेदी ने कहा कि त्रेतायुग से पुराणों में प्रयागराज की महिमा का बखान है। मुगलों व अंग्रेजों ने शहर को कई धरोहरें दी है जिसे खत्म करने की बजाय संरक्षित करने की जरूरत है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Mon, 28 Sep 2020 08:16 PM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 08:16 PM (IST)
प्रयागराज के धरोहरों के संरक्षण पर जोर देने की चिंता, पर्यटन के क्षेत्र में ठोस पहल की जरूरत बताई
गौरव की अनुभूति कराते हैं प्रयागराज के ऐतिहासिक धरोहर।

प्रयागराज, जेएनएन। कोरोना वायरस के इस संक्रमण काल में घूमना-फिरना थमा है। लोग अपने घरों और शहर तक ही सीमित है। ऐेसे में फिलहाल पर्यटन थमा है। वहीं दूसरी ओर प्रयागराज के विशिष्‍टजनों ने यहां के ऐतिहासिक और धार्मिक स्‍थलों के संरक्षण करने की आवश्‍यकता बताई। इंटैक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज) ने फेसबुक पर ऑनलाइन परिचर्चा आयोजित की गई। इसमें वक्ताओं ने धरोहरों के संरक्षण पर जोर दिया ताकि लोग उन स्थानों पर भ्रणण करने जाएं और उनके बारे में जान सकें।

संरक्षण के लिए ठोस पहल की है जरूरत

'इलाहाबाद तब और अब' विषयक परिचर्चा को प्रो. हेरंब चतुर्वेदी ने बतौर मुख्य अतिथि संबोधित किया। उन्होंने कहा कि त्रेतायुग से पुराणों में प्रयागराज की महिमा का बखान है। मुगलों व अंग्रेजों ने शहर को कई धरोहर दी है, जिसे खत्म करने की बजाय संरक्षित करने की जरूरत है। कहा कि हर धरोहर हमारा आधार है। वे गौरवपूर्ण अतीत से जुड़ी है, जिसे मौजूदा समय संरक्षित करने के लिए ठोस पहल करने की जरूरत है।

गौरव की अनुभूति कराते हैं धरोहर

पर्यावरण दिवस पर ऑनलाइन परिचर्चा के दौरान इंटैक के संयोजक शंभू चोपड़ा ने कहा कि पर्यटन को बढ़ाने के लिए धार्मिक, पौराणिक व एतिहासिक स्थलों को संरक्षित करने की जरूरत है। शहर में तमाम प्राचीन बिल्डिंग, पेड़, बाग व स्थान हैं जो हमें गौरव की अनुभूति कराते है।

बच्चे और युवा जरूर करें भ्रमण

ऑनलाइन परिचर्चा के दौरान इंटैक के सहसंयोजक डॉ. अनुपम परिहार ने बच्चों व युवाओं को उनके धरोहरों से ज़ोड़ने पर जोर दिया। कहा कि आज की पीढ़ी सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित है। कंप्यूटर के युग में वो हर चीज गूगल में ढूंढना चाहती है। यह लत न तो बच्चे के लिए अच्छा है, न ही राष्ट्र के लिए। किताबी ज्ञान से ऊपर उठकर बच्चे व युवा अपने धार्मिक, पौराणिक व एतिहासिक स्थलों का भ्रमण कर उन्हें देखेंगे तो गर्व की अनुभूति होगी। उससे उनका भावनात्मक जुड़ाव होगा। फिर वही अपनी धरोहर को संरक्षित करने की स्वत: पहल करने लगेंगे। इस कार्यक्रम का संयोजन डॉ.पल्लवी चंदेल ने किया।

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