Special Story: मिट्टी के खिलौने-बर्तन होते जा रहे गायब, अब चाक से नहीं चल पा रही रोजी-रोटी

कुम्हार कहते हैं कि चाक के सहारे परिवार का गुजारा करना मुश्किल है। प्रयागराज में राजरूपपुर निवासी सुरेश प्रजापति कहते हैं कि अब तो दीये और कुल्हड़ ही बिक रहे हैं बस। बाकी बर्तन और खिलौनों की अब मांग नहीं रही तो जीवन यापन करना कठिन हो गया है

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Thu, 21 Oct 2021 07:30 AM (IST) Updated:Thu, 21 Oct 2021 07:31 AM (IST)
Special Story: मिट्टी के खिलौने-बर्तन होते जा रहे गायब, अब चाक से नहीं चल पा रही रोजी-रोटी
मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता था, लेकिन आज इनका प्रचलन बहुत कम हो गया है

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। एक वक्त था जब हाट मेला में बच्चों को मिट्टी के खिलौने ही मिलते थे। उन मिट्टी के खिलौनों से ही बच्चों को बहलाया जाता था। घरों में मटकों समेत तमाम बर्तन भी मिट्टी के ही प्रयोग किए जाते रहे हैं। मगर मार्डन होते जमाने में अब मिट्टी के बर्तन और खिलौने गायब होते जा रहे हैं। आधुनिकता ने मिट्टी के खिलौने तो एकदम से गायब ही कर दिए हैं और बर्तन भी अब नहीं प्रयोग हो रहे हैं। दीपावली पर मिट्टी के दीए और कुछ खास पर्व पर एक-दो मिट्टी की वस्तुएं बिकती दिखती हैं बस। ऐसे में कुम्हार लाचार और निराश हैं।

कुम्हार परिवार के युवा जुड़े दूसरी रोजगार से

ज्यादा नहीं, करीब एक दशक पहले तक भी धार्मिक व अन्य कार्यक्रमों में भी मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता था, लेकिन आज इनका प्रचलन बहुत कम हो गया है। इससे बहुतायत कुम्हारों का रोजगार समाप्त हो गया। कुम्हारी कला के माहिर कुम्हारों की मिट्टी के बर्तन बनाने की कला धीरे धीरे फीकी पड़ती गई और आज बहुत कम लोग इस कला को जीवित रखे हैं। अब अधिक उम्र वाले ही चाक और आवां से जुड़े हैं। इनके परिवार के युवक इस पुश्तैनी व्यवसाय से खुद को अलग रख रहे हैं। वह रोजी रोटी के लिए अन्य व्यवसाय में लगे हैं।

चाक के सहारे जीवन यापन नहीं रहा संभव

कुम्हारी से जुड़े लोग कहते हैं कि चाक के सहारे परिवार का गुजारा करना अब बहुत मुश्किल हो गया है। प्रयागराज में राजरूपपुर निवासी सुरेश प्रजापति कहते हैं कि अब तो दीये और कुल्हड़ ही बिक रहे हैं बस। बाकी बर्तन और खिलौनों की अब मांग नहीं रही तो जीवन यापन करना कठिन हो गया है। प्रतापगढ़ जनपद में नयापुरवा के कुम्हारन टोला के दयाराम प्रजापति कहते हैं कि आधुनिकता के दौर में मिट्टी के बर्तन की मांग कम हो ही गई है। सरकार ने भी कुम्हारों से वादा खिलाफी की है। सरकार ने कहा था कि कुम्हारों को मिट्टी के लिए पट्टे पर जमीन दी जाएगी, लेकिन आज तक किसी को भी जमीन नहीं मिली। हम लोगों को मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए बाहर से मिट्टी लानी पड़ती है, जो 2500 रुपये प्रति ट्राली होती है। ऊपर से पुलिस भी अवैध खनन के नाम पर सुविधा शुल्क चाहती है। आज मिट्टी के सामान महज कुछ कार्यक्रम तक ही सीमित हो गए हैं।

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