Civil Services Day: कभी आइएएस की खेप देने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय अब हो गया है बंजर,
प्रयागराज के कमिश्नर रहे 1982 बैच के सिविल सर्विस के अधिकारी और 1997 बैच के आइएएस अफसर बादल चटर्जी ने बताया कि सिविल सर्विसेज परीक्षा का पेपर पहले इलाहाबाद विश्ववविद्यालय के शिक्षक सेट करते थे। पेपर के पैटर्न के अनुरूप तैयारी कराते थे। बाद में जेएनयू के पैटर्न आने लगे
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) कभी आइएएस-पीसीएस की फैक्ट्री हुआ करता था। हालांकि, अब ऐसा नहीं है। यही वजह है कि यहां से अब इक्का-दुक्का ही आइएएस अफसर निकल पाते हैं। हां, पीसीएस में अभी भी जलवा बरकरार है।
2011 से खराब होने लगा इविवि के छात्रों का प्रदर्शन
2010 तक के आंकड़ों को देखें तो आइएएस के परीक्षा परिणामों में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने वाले या यहां से पढ़ चुके छात्रों का दबदबा होता था। 1990 के शुरुआती दौर तक में यहां से पढऩे वाले छात्र बड़ी संख्या में आइएएस परीक्षा पास कर भारतीय नौकरशाही का हिस्सा बनते थे। 2008 में यहां से आइएएस में 26 छात्रों का चयन हुआ था और तब यह विश्वविद्यालय देशभर के 152 शिक्षण संस्थाओं में चौथा स्थान पाने में सफल रहा था। एक साल बाद यानी 2009 में यह संख्या घटकर 25 हुई और 170 संस्थानों में विश्वविद्यालय को 5वां स्थान मिला। 2010 में विश्वविद्यालय से 21 छात्रों का चयन हुआ और इसकी रैकिंग 171 संस्थानों में 8वें स्थान तक पहुंची। हालात 2011 से खराब होना शुरू हुए। 2011 में केवल 7 चयन हुए और विश्वविद्यालय 37 वें स्थान पर पहुंच गया। 2012 में छह लोगों के चयन के साथ विश्वविद्यालय की रैंक 41वीं हो गई। 2013 में तो एक भी चयन नहीं हुआ। 2011 के बाद से इविवि की स्थिति कमतर होती चली गई। जब एप्टीट्यूड टेस्ट की वजह से अंग्रेजी को परीक्षा का महत्वपूर्ण भाग बना दिया, तब विश्वविद्यालय ने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया।
अब इंजीनियरिंग का दबदबा
प्रयागराज के कमिश्नर रहे 1982 बैच के सिविल सर्विस के अधिकारी और 1997 बैच के आइएएस अफसर बादल चटर्जी ने बताया कि सिविल सर्विसेज परीक्षा का पेपर पहले इलाहाबाद विश्ववविद्यालय के शिक्षक सेट करते थे। पेपर के पैटर्न के अनुरूप तैयारी भी कराते थे। बाद में जेएनयू के पैटर्न आने लगे। ऐसे में इविवि के छात्र पिछड़ गए। अब इंजीनियरिंग पैटर्न में पेपर सेट होने से इसमें इंजीनियरिंग के बच्चे सफल हो रहे हैं।