Birth Anniversary Special: चुस्ती फुर्ती की वजह से क्विक सिलवर कहलाते थे चंद्रशेखर आजाद, संगमनगरी में मिला अमरत्व
प्रयागराज में आजाद का स्मृति स्थल इस बात का गवाह है। सैकड़ों युवा यहां पहुंचते हैैं। उनकी 116 वीं जन्मतिथि (23 जुलाई) से पहले जागरण ने उनके जिंदगी के अनछुए पहलुओं को जानने और उसे मौजूदा पीढ़ी के साथ-साथ आने वाली पीढ़ी को परिचित कराने की पहल की है।
आजाद हूं आजाद रहूंगा
कुछ खास तथ्य
- लाल पद्मधर, रमेश दत्त मालवीय व त्रिलोकी नाथ भी हुए प्रेरित
- आजादी के दीवानों के नायक आज भी बने हुए हैैं युवाओं के हीरो
- संगमनगरी आने वाले जरूर पहुंचते हैैं उनकी स्मृति स्थल पर
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। आजादी की लड़ाई में असंख्य नौजवानों ने अपने जीवन की आहुति दी। इनमें एक थे चंद्रशेखर आजाद। भले ही उनकी जन्मस्थली संगमनगरी नहीं रही हो, लेकिन अमरत्व उन्हें यहीं मिला। जिस अंदाज में उन्होंने अपना जीवन खत्म किया, वह 90 साल बाद भी प्रेरणा देता है युवाओं को देश के लिए मर मिटने का। प्रयागराज में उनका स्मृति स्थल इस बात की गवाही है। हर दिन सैकड़ों युवा यहां पहुंचते हैैं। उनकी 116 वीं जन्मतिथि (23 जुलाई) नजदीक है और उससे पहले जागरण ने उनके जिंदगी के अनछुए पहलुओं को जानने और उसे मौजूदा पीढ़ी के साथ-साथ आने वाली पीढ़ी को परिचित कराने की पहल की है। इसी कोशिश की पहली कड़ी आज अमलेंदु त्रिपाठी की कलम से...
हम सब आजाद हैं...क्योंकि ये आजाद थे
स्थान-अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क, आषाढ़ की धूप, तापमान करीब 38 डिग्री सेल्सियस। तमाम युवाओं की टोली उत्साह से लबरेज हाथ में मोबाइल लेकर अपने हीरो अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा के साथ सेल्फी ले रही है। एक दूसरे की अलग अलग अंदाज में ढेर सारी फोटो। सवाल करता हूं क्यों तस्वीरें खींच रहे हो, जवाब मिलता है- शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा...। एक उत्साही युवा बोल पड़ता है, मैं भी 'आजाद हूं, हम सब आजाद हैं...क्यों कि ये आजाद थे और आजाद ही रहे। देश के लिए खुद को मिटा दिया, घर परिवार सब छोड़ दिया। पूरा भारत वर्ष इनका घर और भारत माता इनकी मां। यही तो हमारे हीरो हैं।
चादर की चुगली से पकड़े गए थे क्रांतिकारी
आजाद की प्रतिमा के साथ तस्वीर खिंचवा रहे प्रतियोगी छात्र रजनीश मूल रूप से बस्ती के हैं और यहां सलोरी में कमरा लेकर रहते हैं। उन्होंने बताया कि जब मौका मिलता है यहां आते हैं पर मन नहीं भरता। देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत जाग जाती है। काकोरी प्रकरण के बारे में बताने लगते हैैं। कहते हैैं कि राम प्रसाद बिस्मिल, आजाद सहित सभी क्रांतिकारी जब घटना को अंजाम देने गए तो उनकी चादर मौके पर छूट गई थी। चादर में बने निशान से पता चल गया कि घटना को अंजाम देने वाले कहां से संबंधित थे। उन दिनों धोबी जब कड़ा धुलते थे तो निशान लगा देते थे। उस चादर में भी ऐसा ही निशान था जिससे बात बिगड़ गई। सलोरी से ही आए पुष्पेंद्र यादव बोले, आजाद शोषण मुक्त समाज चाहते थे। वह जाति वर्ग के भेद को मिटाना चाहते थे। यही वजह है कि उन्होंने समाजवादी समाज बनाना संगठन का लक्ष्य रखा।
आने वालों को देते रहते हैं जानकारी
कटरा निवासी अभि इन दिनों प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैैं। चाहत पुलिस में दारोगा बनने की है। फोटोग्राफी का भी शौक है। प्रतिदिन किताबों और कैमरे के साथ स्मारक पर आ जाते हैं। यहां आने वालों को चंद्रशेखर आजाद के बारे में बताते हैं। यदि कोई जूता-चप्पल पहनकर प्रतिमास्थल की तरफ बढऩे लगते हैैं तो टोक देते हैैं। कहते हैैं नहीं नहीं। ऐसा नहीं।