Birth Anniversary: आचार्य की प्रेरणा से मिली मैथिली शरण गुप्त को राष्ट्रकवि की पहचान, प्रयागराज से था गहरा नाता
जन्मतिथि पर विशेष सरस्वती पत्रिका के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से उन्होंने खड़ी बोली में कविता लिखनी शुरू की। सरस्वती में रचनाएं प्रकाशित हुईं तो उन्हें हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय फलक पर पहचान मिली। इसीलिए वह प्रयाग को दूसरा घर मानते थे
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात कवि, नाटककार व अनुवादक मैथिलीशरण गुप्त को पहचान प्रयागराज से मिली थी। सरस्वती पत्रिका के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से उन्होंने खड़ी बोली में कविता लिखनी शुरू की। सरस्वती में रचनाएं प्रकाशित हुईं तो उन्हें हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय फलक पर पहचान मिली। इसीलिए वह प्रयाग को दूसरा घर मानते थे। वर्ष 1951 में जब 'सरस्वती पत्रिका का स्वर्ण जयंती समारोह आयोजित हुआ तो उसकी अध्यक्षता मैथिलीशरण गुप्त ने ही की थी।
12 साल की उम्र से ब्रज भाषा में लिखने लगे थे कविताएं
तीन अगस्त 1886 को झांसी के पास चिरगांव में जन्मे मैथिलीशरण गुप्त पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान थे। ब्रजभाषा में वह 12 वर्ष की अवस्था में 'कनकलता नाम से कविताएं लिखने लगे। समालोचक रविनंदन सिंह बताते हैं कि 1907 में मैथिलीशरण ने ब्रजभाषा में 'रसिकेंद्र नामक कविता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को भेजी। उसे आचार्य ने इस टिप्पणी के साथ लौटा दिया कि 'रसिकंद्र बनने का जमाना चला गया है। अगर सरस्वती में प्रकाशित होना है तो खड़ी बोली में कविताएं भेजिए...। इसके बाद मैथिलीशरण ने उसे खड़ी बोली में 'हेमंत शीर्षक से भेजा। आचार्य महावीर ने कुछ संशोधन कर सरस्वती में प्रकाशित किया। फिर 1916 में साकेत का द्वितीय सर्ग, 1928 में संदेश के अलावा पंचवटी, द्वापर, शक्ति, किसान जैसी कविताएं सरस्वती में प्रकाशित हुईं।
आचार्य ने मैथिलीशरण को प्रेरित करते हुए कहा कि 'खड़ी बोली में लिखना है तो उर्दू के कवि अल्ताफ हुसैन हाली की पुस्तक 'मुसद्दस जरूर पढि़ए। इसे पढ़कर मैथिलीशरण ने भारत-भारती की रचना की। आचार्य ने सरस्वती में ' हिंदी कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता शीर्षक से लेख लिखा था, उससे प्रेरित होकर मैथिलीशरण ने साकेत महाकाव्य की रचना की।
एकेडेमी के दो बार रहे सदस्य
वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. राजेंद्र कुमार बताते हैं कि मैथिलीशरण गुप्त हिंदुस्तानी एकेडेमी, हिंदी साहित्य सम्मेलन, इंडियन प्रेस व साहित्यकार संसद के आयोजनों में शामिल होने के लिए प्रयाग आते थे। वह हिंदुस्तानी एकेडेमी कार्य परिषद के दो बार (1933-36 तथा 1936-39) सदस्य रहे। वरिष्ठ कवि यश मालवीय के अनुसार मैथिलीशरण का निराला, सुमित्रा नंदन पंत, महादेवी, रामकुमार वर्मा, धीरेंद्र वर्मा, उदयनारायण तिवारी से आत्मीय रिश्ता था।
जन्मतिथि मनती है कवि दिवस के रूप में
हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने सर्वप्रथम 1987 में मैथिलीशरण गुप्त की जन्मतिथि को कवि दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। डॉ. रामकुमार वर्मा तब एकेडेमी के अध्यक्ष थे।
आज किए जाएंगे याद
-हिंदुस्तानी एकेडेमी में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जन्मतिथि पर कवि दिवस के तहत कवि सम्मेलन का आयोजन दोपहर दो बजे होगा।