बाल गंगाधर तिलक ने थपथपाई थी प्रयागराज में ठाकुर श्रीनाथ सिंह की पीठ, जानिए क्यों हुए थे इतना खुश

प्रयागराज में आजादी के आंदोलन में कलम के सिपाहियों ने भी आगे रहकर अंग्रेजों के खिलाफ अलख जगाई थी। इन्हीं में एक थे ठाकुर श्रीनाथ सिंह। वे प्रख्यात पत्रकार स्वतंत्रता सेनानी प्रतिष्ठित साहित्यकार तथा दो टूक बात करने वाले व्यक्ति थे।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Thu, 25 Feb 2021 10:00 AM (IST) Updated:Thu, 25 Feb 2021 10:00 AM (IST)
बाल गंगाधर तिलक ने थपथपाई थी प्रयागराज में ठाकुर श्रीनाथ सिंह की पीठ, जानिए क्यों हुए थे इतना खुश
स्कूल में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक पधारे। उन्होंने देखा कि केवल श्रीनाथ सिंह सरकंडे की कलम से लिख रहे थे।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज में आजादी के आंदोलन में कलम के सिपाहियों ने भी आगे रहकर अंग्रेजों के खिलाफ अलख जगाई थी। इन्हीं में एक थे ठाकुर श्रीनाथ सिंह। वे प्रख्यात पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, प्रतिष्ठित साहित्यकार तथा दो टूक बात करने वाले व्यक्ति थे। वे संघर्ष छेड़कर पीठ दिखाकर भागने वालों में से नहीं बल्कि संघर्ष को अंजाम तक ले जाने वाले जुझारू इंसान थे। उन्होंने सबको खुश करने का प्रयास नहीं किया। वे सही मायने में कलम के सिपाही थे। एक बार बाल गंगाधर तिलक इलाहाबाद (अब प्रयागराज) आए थे। वे सेवा समिति विद्या मंदिर स्कूल गए थे वहां उन्होंने श्रीनाथ सिंह को कक्षा में सरकंडे की कलम से लिखते देखकर पीठ थपथपाई थी।

क्लास में विदेशी होल्डर से लिख रहे थे छात्र
इतिहासकार प्रो.अविनाश चंद मिश्र बताते हैं कि ठाकुर श्रीनाथ सिंह में अद्भुत गुणों का सामंजस्य था। वे बच्चे जैसे सरल तथा वज्र जैसे कठोर थे। उनकी समझ पाना सबके बस की बात नहीं थी। एक अक्टूबर 1901 को प्रयागराज के मानपुर गांव में उनका जन्म हुआ था। गांव की पाठशाला से कक्षा चार उत्तीर्ण करने के बाद शिक्षा ग्रहण करने के लिए वे प्रयागराज शहर आ गए। वे विद्या मंदिर में पढऩे लगे। एक दिन स्कूल में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक पधारे। उन्होंने देखा कि कक्षा में सभी छात्र विदेशी होल्डरों से लिख रहे थे। केवल श्रीनाथ सिंह सरकंडे की कलम से लिख रहे थे। तिलक ने यह देखकर श्रीनाथ की पीठ थपथपाई।

महामना की नसीहत का पड़ा प्रभाव
प्रो.मिश्र बताते हैं कि श्रीनाथ सिंह के पिता ठाकुर कामता सिंह अध्यापक और किसान नेता थे। वे अपने पुत्र श्रीनाथ को साथ लेकर महामना मदन मोहन मालवीय से मिलने जाया करते थे। पिता-पुत्र महामना के साथ बैठकर घंटों देश की चर्चा सुना करते थे। महामना ने एक दिन बालक श्रीनाथ से कहा कि -बेटा स्वदेशी का व्रत लो। देश में बना वस्त्र पहनो और स्वदेशी वस्तुओं को ही काम में लाओ। इसका उनके मन पर बहुत प्रभाव पड़ा।

महात्मा गांधी से मिलने के बाद छोड़ दी पढ़ाई
प्रो.अविनाश चंद बताते हैं कि श्रीनाथ ने 1920-21 में महात्मा गांधी के प्रभाव में आकर पढ़ाई छोड़ दी। इसके बाद वे राजनीतिक आंदोलन में कूद पड़े। 1926 में वे जिला कांग्रेस कमेटी के सचिव चुने गए।

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