रासुका के तहत जेल में बंद रखने को चुनौती, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने किया सरकार से जवाब तलब
याची के अधिवक्ताओं के अनुसार मारपीट व हत्या के आरोप में याची को गिरफ्तार कर रासुका के तहत बरेली जिला जेल में नजरबंद किया गया। याची 23 दिसंबर 2019 से जेल मेें बंद है। यह आदेश मनमानापूर्ण व विधि विरुद्ध है। प्रतिवेदन को निर्णीत करने में देरी की गई है।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शाहजहांपुर, सदर बाजार के अभयराज गुप्त की रासुका में नजरबंदी की वैधता की चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार व पुलिस अधिकारियों से जवाब मांगा है। अगली सुनवाई पांच जुलाई को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति एमएन भंडारी व न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता डीएस मिश्र तथा चंद्रकेश मिश्र की बहस सुनकर दिया है। याची के अधिवक्ताओं के अनुसार मारपीट व हत्या के आरोप में याची को गिरफ्तार कर रासुका के तहत बरेली जिला जेल में नजरबंद किया गया है। याची 23 दिसंबर, 2019 से जेल मेें बंद है। यह आदेश मनमानापूर्ण व विधि विरुद्ध है। याची के प्रतिवेदन को निर्णीत करने में देरी की गई है। सभी तीनों आपराधिक मामलों में याची को जमानत मिल चुकी है। घटना के दिन वह विदेश में था। उसे झूठा फंसाया गया है। एफआइआर में भी वह नामजद नहीं है।
पौने दो वर्ष पुराने तबादला आदेश के अमल पर रोक
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुलिस विभाग में पौने दो वर्ष पूर्व हुए तबादले के आधार पर वर्ष 2021 में पारित कार्यमुक्त आदेश के अमल पर रोक लगा दी है। साथ ही कहा है कि इतने लंबे समय बाद कार्यमुक्त करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने सिविल पुलिस गोरखपुर में हेड कांस्टेबल चंदन कुमार सिंह की याचिका पर दिया है। याची के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का तर्क था कि याची का तबादला 2019 में हुआ था। इस आदेश के बाद भी याची को गोरखपुर में रोके रखा गया। अब लगभग पौने दो वर्ष बीतने के बाद डीआइजी/एसएसपी गोरखपुर के एक मार्च, 2021 के आदेश से याची को कार्यमुक्त किया जाना अकारण व औचित्यहीन है। कोर्ट ने सरकार से इस याचिका पर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 22 जुलाई, 2021 को होगी। कोर्ट ने याची को गोरखपुर में ही सेवा में बने रहने का आदेश देते हुए कहा है कि उसको नियमित वेतन भुगतान किया जाए।