अखाड़ा परिषद: लंबी खिच सकती है वर्चस्व की जंग

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में वर्चस्व की लड़ाई शायद ही जल्द समाप्त हो। संतों की लामबंदी जारी है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 27 Oct 2021 12:08 AM (IST) Updated:Wed, 27 Oct 2021 12:08 AM (IST)
अखाड़ा परिषद: लंबी खिच सकती है वर्चस्व की जंग
अखाड़ा परिषद: लंबी खिच सकती है वर्चस्व की जंग

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में वर्चस्व की लड़ाई शायद ही जल्द समाप्त हो। जिस तरह दोनों पक्ष के तेवर हैं उसमें साफ है कि फिलहाल मामला गर्माया रहेगा। अखाड़ों के महात्माओं से संपर्क साधकर अपने पाले में करने की कोशिशें जारी हैं। संगमनगरी में सोमवार को अध्यक्ष बनने वाले श्रीमहंत रविद्र पुरी (श्रीनिरंजनी अखाड़ा) तथा महामंत्री महंत हरि गिरि को उम्मीद है कि एक दिसंबर को प्रयागराज में प्रस्तावित बैठक में उनके साथ 13 अखाड़ों से जुड़े महात्मा दिखाई देंगे। हरिद्वार के कनखल में समानांतर संगठन बनाने वाले वैधानिकता पर सवाल उठा रहे हैं।

वर्ष 1954 में गठित अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में सभी 13 अखाड़ों से दो-दो सदस्य होते हैं। बीती 20 सितंबर को महंत नरेंद्र गिरि की मृत्यु के बाद अध्यक्ष पद रिक्त था। नए अध्यक्ष का चुनाव करने के लिए 25 अक्टूबर को दारागंज स्थित पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के मुख्यालय में बैठक आहूत थी। इससे पहले हरिद्वार के कनखल में सात अखाड़ों के महात्माओं ने 20 अक्टूबर को श्रीमहानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत रविद्र पुरी को अध्यक्ष व श्रीनिर्माेही अनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास को महामंत्री चुन लिया। उनके बहुमत का दावा प्रयागराज में सोमवार को हुई बैठक में ध्वस्त हो गया। यहां सात अखाड़ों के प्रतिनिधि मौजूद थे और वैरागी परंपरा के निर्मोही अनी अखाड़े के मदनमोहन दास का समर्थन पत्र पढ़ा गया। निर्मल अखाड़े के महंत रेशम सिंह भी थे। इस तरह संख्या आठ अखाड़ों की हो गई। अब दोनों खेमों की तरफ से सभी 13 अखाड़ों के असंतुष्ट महात्माओं से संपर्क साधा जा रहा है। श्रीमहंत राजेंद्र दास (श्री निर्मोही अनी अखाड़ा) कहते हैं कि 25 अक्टूबर की बैठक व चुनाव को मान्यता नहीं है। निर्मल अखाड़े के सचिव और विवाद से पूर्व परिषद उपाध्यक्ष महंत देवेंद्र शास्त्री भी ऐसा ही कह रहे हैं। उनका कहना है कि दारागंज में हुआ चुनाव असांविधानिक है। इधर महंत हरि गिरि का दावा है कि 20 अक्टूबर की बैठक में जिन अखाड़ों के संतों ने खुद को पदाधिकारी घोषित कर लिया है, उन्हीं के अखाड़ों के महात्माओं में नाराजगी है। सभी 13 अखाड़ों के महात्मा उस चुनाव को अनैतिक बता रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज दबाई जा रही है। हमारी कार्यकारिणी ही संतों का प्रतिनिधित्व करती है। प्रयागराज में एक दिसंबर को कार्यकारिणी तय करने के लिए प्रस्तावित बैठक में यह साफ हो जाएगा। हमें उम्मीद है कि इसमें सभी 13 अखाड़ों के महात्माओं की भागीदारी रहेगी।

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