इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, अतिक्रमण मामले में साथ चल सकती है सिविल व आपराधिक कार्यवाही
याची का कहना था कि गांव सभा की जमीन से अतिक्रमण हटाने व क्षतिपूर्ति वसूली करने का राजस्व संहिता में एसडीएम को जांच कर कार्यवाही करने का अधिकार है। फिर उसी मामले में लोक संपत्ति क्षति निवारण एक्ट के तहत आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि गांव सभा की जमीन पर अतिक्रमण के खिलाफ राजस्व संहिता की धारा 67 के तहत सिविल व लोक संपत्ति क्षति निवारण एक्ट की धारा 3/4 के तहत आपराधिक कार्यवाही एक साथ की जा सकती है। दोनों कानूनों के तहत कार्यवाही की प्रक्रिया भिन्न भिन्न है। हाई कोर्ट ने कहा कि धारा 67 की कार्यवाही सिविल प्रकृति की संक्षिप्त प्रक्रिया है जिसके तहत बेदखली व क्षति वसूली कार्यवाही की जा सकती है। साथ ही लोक संपत्ति को शरारत कर नुक्सान पहुंचाने पर आपराधिक कार्यवाही भी की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि जब सिविल कार्यवाही का कानून हैं तो उसी मामले में अलग से आपराधिक कार्यवाही न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। कोर्ट ने मिर्जापुर के जिगना थाना क्षेत्र में गांव सभा की जमीन पर अतिक्रमण के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है।
याची ने कहा था कि दोनों कार्यवाही भिन्न है
यह आदेश न्यायमूर्ति डा वाई के श्रीवास्तव ने श्रीकांत की धारा 482 के तहत दाखिल याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची का कहना था कि 26 जुलाई 2015 को अतिक्रमण के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई गई है जिसकी विवेचना कर पुलिस ने चार्जशीट दायर कर दी है और कोर्ट ने उस पर संज्ञान भी ले लिया है। याची का कहना था कि गांव सभा की जमीन से अतिक्रमण हटाने व क्षतिपूर्ति वसूली करने का राजस्व संहिता में एसडीएम को जांच कर कार्यवाही करने का अधिकार है। फिर उसी मामले में लोक संपत्ति क्षति निवारण एक्ट के तहत आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती इसलिए मुकदमे की कार्यवाही रद की जाय। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर विचार करते हुए कहा कि दोनों कार्यवाही भिन्न होने के कारण एक साथ चलाई जा सकती है। राजस्व संहिता की कार्यवाही सिविल है जबकि लोक संपत्ति क्षति निवारण एक्ट की कार्यवाही दांडिक है जिसमें पाच साल कैद की सजा मिल सकती है।