Allahabad High Court: कट आफ से अधिक अंक पाने वाले अभ्यर्थी को नियुक्ति देने से नहीं कर सकते इन्कार
पिछड़ा वर्ग के क्षैतिज आरक्षण में असफल होने व सामान्य कोटे की चयनित महिला अभ्यर्थी से अधिक अंक पाने के बावजूद पुलिस कांस्टेबल भर्ती में नियुक्ति देने से इन्कार करने को मनमाना पूर्ण करार दिया है इलाहाबाद हाई कोर्ट ने
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछड़ा वर्ग के क्षैतिज आरक्षण में असफल होने व सामान्य कोटे की चयनित महिला अभ्यर्थी से अधिक अंक पाने के बावजूद पुलिस कांस्टेबल भर्ती में नियुक्ति देने से इन्कार को मनमाना पूर्ण करार दिया है। कहा कि आरक्षण लेने के कारण नियुक्ति देने में भेदभाव नहीं किया जा सकता। सामान्य वर्ग की चयनित महिला अभ्यर्थी से अधिक अंक प्राप्त करने वाली याचियों को नियुक्ति पाने का हक है। हाई कोर्ट ने पुलिस भर्ती बोर्ड व राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के सौरव यादव केस के फैसले के तहत तीन माह में याचियों की नियुक्ति की जाय।
नियुक्ति देने में भेदभाव नहीं किया जा सकता
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने रुचि यादव व अन्य, प्रियंका यादव व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता सीमांत सिंह ने बहस की। याचियों का कहना था कि क्षैतिज आरक्षण में उन्हें कट आफ मेरिट से कम अंक प्राप्त हुए जिससे उनकी नियुक्ति नहीं हो सकी। अभी भी बहुत से पद खाली है। उन्हें सामान्य वर्ग की अंतिम चयनित महिला अभ्यर्थी के अंक से अधिक अंक मिले हैं। इसलिए उन्होंने आरक्षण मांगा था इस आधार पर नियुक्ति देने में भेदभाव नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट ने कहा कट आफ मेरिट अंक से अधिक अंक पाने वाले अभ्यर्थी को नियुक्ति देने से इंकार नहीं किया जा सकता। सरकार का कहना था कि याचियों को आरक्षण का दोहरा लाभ नहीं मिल सकता। वह पिछड़े वर्ग की महिला कोटे में सफल नहीं हुई, तो सामान्य वर्ग के महिला कोटे की बराबरी की मांग नहीं कर सकती।
हाई कोर्ट ने दिया सेवा बहाली का निर्देश
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बगैर बर्खास्तगी अवैध है। चार्जशीट का दो दिन में जवाब देने का अवसर देना और जांच रिपोर्ट पर सुनवाई का मौका न देना पर्याप्त नहीं है। बर्खास्त करने से पहले सुनवाई का मौका देना जरूरी है। कोर्ट ने जिला कार्यक्रम अधिकारी बिजनौर के याची को बर्खास्त करने के आदेश को रद करते हुए सभी परिलाभों सहित सेवा बहाली का निर्देश दिया है। साथ ही सरकार को नियमानुसार नये सिरे से आदेश देने की छूट दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शहाना परवीन की याचिका पर दिया है।
बर्खास्त करने से पहले सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए
याचिका पर अधिवक्ता अजीत कुमार सिंह ने बहस की। हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार को याचिका का जवाब देने के लिए कई बार अवसर व अंतिम अवसर के बाद भी जवाब दाखिल नहीं किया गया। याचिका के कथनों को सही मानते हुए फैसला किया गया है। याची अधिवक्ता का कहना था कि वह एक जुलाई 1983 से संविदा पर लगातार कार्यरत है। एक व्यक्ति को पुष्टाहार बेचने का आरोप लगाया गया। मामले की जांच दो सदस्यीय समिति ने की। कमेटी ने आरोप सिद्ध करार देते हुए बर्खास्तगी की संस्तुति की। जांच रिपोर्ट पर याची का पक्ष सुने बगैर उसे बर्खास्त कर दिया गया। उसे चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा बर्खास्त करने से पहले सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए था।