Allahabad High Court: हत्या के आरोप में केस चलाने का विशेष अदालत का आदेश रद्द
पुलिस विवेचना में आरोपी के खिलाफ अपराध में शामिल होने के साक्ष्य नहीं मिलने के बावजूद केस चलाने की अर्जी पर विशेष अदालत एससी एसटी मुजफ्फरनगर द्वारा जारी आदेश रद्द कर दिया है और कहा है कि यह सुप्रीम कोर्ट के स्थापित विधि सिद्धांतों के विपरीत है।
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 की अर्जी पर संज्ञान लेकर आदेश जारी करना मजिस्ट्रेट का न्यायिक विवेकाधिकार है लेकिन मजिस्ट्रेट को यह भी देखना चाहिए कि क्या ऐसा विश्वसनीय साक्ष्य मौजूद है जिसके आधार पर आरोपी को सजा दी जा सकेगी।
पुलिस विवेचना में आरोपी के खिलाफ अपराध में शामिल होने के साक्ष्य नहीं मिलने के बावजूद केस चलाने की अर्जी पर विशेष अदालत एससी एसटी मुजफ्फरनगर द्वारा जारी आदेश रद्द कर दिया है और कहा है कि यह सुप्रीम कोर्ट के स्थापित विधि सिद्धांतों के विपरीत है। कोर्ट ने विशेष अदालत को नये सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति एससी शर्मा ने विनीत की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपील पर अधिवक्ता संदीप शुक्ल ने बहस की।
सुबूत नहीं होने पर कर दिया गया था रिहा
मालूम हो कि कृष्णा देवी ने कोतवाली नगर में एफआइआर दर्ज कराई कि विनीत 23 फरवरी 2017 को तीन बजे दिन में उसके घर आया और उसकी बेटी अर्चना को नौकरी दिलाने के लिए अपने साथ ले गया। इसके लिए उसने 15 सौ रूपये भी लिए। शाम तक लड़की नहीं लौटी तो उसकी तलाश शुरू की। दूसरे दिन अखबार में अर्चना की फ़ोटो छपी थी। परिवार के लोग भागकर शव विच्छेदन गृह पहुंचे। पता चला कि शव अर्चना का ही है। पुलिस ने मुकदमे की विवेचना में राजू को हत्या करने का आरोपी माना और चार्जशीट दाखिल कर दी। याची के खिलाफ सबूत नहीं मिलने पर छोड़ दिया गया। मृतका की मां ने कोर्ट में अर्जी दी और याची पर हत्या में शामिल होने का आरोप लगाते हुए सम्मन जारी करने की मांग की। विशेष अदालत ने आदेश जारी किया, जिसे अपील में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने अपील मंजूर करते हुए विशेष अदालत का आदेश रद्द कर दिया है।