इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश- भ्रष्टाचार में FIR दर्ज करने के लिए विभागीय जांच पूरी होना जरूरी नहीं

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण में तैनात रहे अलीगढ़ के खैर तहसीलदार के खिलाफ 85.49 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार संबंधी आरोप में अभियोग चलाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Tue, 15 Jun 2021 10:40 PM (IST) Updated:Tue, 15 Jun 2021 10:41 PM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश- भ्रष्टाचार में FIR दर्ज करने के लिए विभागीय जांच पूरी होना जरूरी नहीं
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए विभागीय जांच पूरी होना जरूरी नहीं है।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए विभागीय जांच पूरी होना जरूरी नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण में तैनात रहे अलीगढ़ के खैर तहसीलदार के खिलाफ 85.49 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार संबंधी आरोप में अभियोग चलाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति एमएन भंडारी व न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने रणवीर सिंह की याचिका पर दिया है।

हाई कोर्ट ने कहा कि शासनादेश कानूनी उपबंध को आच्छादित नहीं कर सकता। याची का कहना था कि कोर्ट ने पुलिस चार्जशीट पर संज्ञान लेते के बाद अभियोग चलाने की अनुमति देने में विवेकाधिकार का प्रयोग नहीं किया। साथ ही बिना विभागीय जांच पूरी हुए एफआइआर दर्ज किया जाना उचित नहीं है। अदालत ने दोनों तर्कों को निराधार व कानूनी उपबंधों के विपरीत मानते हुए हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता और भ्रष्टाचार निरोधक कानून में यह बात कहीं नहीं है कि पहले विभागीय जांच करने के बाद एफआइआर दर्ज की जाय। अपराध हुआ है तो कार्रवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि विभागीय जांच और आपराधिक कार्रवाई दोनों साथ चल सकती है। चार जून 2018 को घोटाले की शिकायत पर याची व अन्य अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू हुई।

फिर एफआइआर दर्ज कर पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। बिना सरकार से अभियोग चलाने की अनुमति लिए मुकदमे को सीजेएम ने संज्ञान ले लिया। उसे हाई कोर्ट ने विधि विरुद्ध मानते हुए रद कर दिया। इसके बाद सरकार से अभियोग चलाने की अनुमति ली गई और कोर्ट ने आरोप निर्मित किए।

याची का कहना था कि सरकार ने 28 जनवरी 2020 को अनुमति देते समय एफआइआर का जिक्र नहीं किया। इससे लगता है विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया। पहले विभागीय जांच में दोषी मिलते फिर एफआइआर दर्ज की जानी चाहिए थी। शासनादेश है कि विभागीय जांच के बाद कार्रवाई की जाए, जिसका उल्लंघन किया गया है।

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