UP Anti Conversion Act: इलाहाबाद हाई कोर्ट में मतांतरण कानून की वैधता को चुनौती, सरकार से जवाब तलब
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पहचान बदल कर लव जेहाद को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में लाए गए मतांतरण कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट ने अगस्त के दूसरे हफ्ते में जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पहचान बदल कर लव जेहाद को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में लाए गए मतांतरण (धर्मांतरण) कानून (उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020) को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। याचिका को दोनों पक्षों के जवाब प्रति जवाब आने के बाद सुनवाई के लिए अगस्त के दूसरे हफ्ते में पेश करने का निर्देश दिया है।
इसके साथ ही इलाहाबाद हाई कोर्ट मतांतरण अध्यादेश के खिलाफ दाखिल छह याचिकाओं को कानून बन जाने के कारण अर्थहीन करार देते हुए खारिज कर दिया है। हालांकि याचियों को नए सिरे से कानून की वैधता को चुनौती देने के लिए याचिका दाखिल करने की छूट दी है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने दिया है। प्रदेश के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने सरकार का पक्ष रखा और कानून की वैधता की चुनौती याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव की ओर से दाखिल याचिका के जरिए मतांतरण कानून को चुनौती दी गई है।
याचिका में मतांतरण कानून को संविधान के विपरीत बताते हुए कहा गया है कि सिर्फ सियासी फायदा उठाने के लिए यह कानून बनाया गया है। यह भी कहा गया कि इससे एक वर्ग विशेष के लोगों का उत्पीड़न भी किया जा सकता है। याचिकाओं में मतांतरण कानून के दुरुपयोग की भी आशंका जताई गई है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश अब कानून बन चुका है। ऐसे में इसे लेकर लंबित याचिकाओं पर सुनवाई करने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने इसके साथ मतांतरण अध्यादेश को चुनौती देने वाली छह याचिकाओं में संशोधन की अर्जी दाखिल कर कानून को चुनौती देने की मांग नामंजूर कर दी है, क्योंकि अध्यादेश को एक अधिनियम के साथ बदल दिया गया है।