इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- अनुमति देने वाले को उसे वापस लेने का हक है, जानें किस मामले में दिया आदेश
याची ने होटल बनाने की यह कहते हुए अनुमति मांगी कि विपक्षी भूखंड स्वामियों से उनका करार हो गया है। अधीनस्थ अदालत ने निषेधाज्ञा भी जारी की है। इस अर्जी को खारिज कर दिया गया जिसे याचिका में चुनौती दी गई थी।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि जनरल क्लाजेज एक्ट की धारा 21 के तहत जिस प्राधिकारी ने अनुमति दी है, उसे अनुमति वापस लेने का अधिकार है। भले ही संबंधित कानून में ऐसा कोई उपबंध न हो। कोर्ट ने दो पक्षों के बीच विवादित जमीन पर होटल बनाने की अनुमति न देने के जिलाधिकारी वाराणसी के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान की खंडपीठ ने राहुल जायसवाल की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
वाराणसी में होटल बनाने का मामला
मालूम हो कि डी 37/110 बडादेव वाराणसी के मालिकों ने अपनी जमीन पर होटल बनाने की अनुमति मांगी, जिसे स्वीकार करते हुए अनुमति दी गई। कोरोना के कारण उन्होंने यह कहते हुए अनुमति वापस लेने की अर्जी दी कि होटल बनाने की आर्थिक स्थिति नहीं है। याची ने होटल बनाने की यह कहते हुए अनुमति मांगी कि विपक्षी भूखंड स्वामियों से उनका करार हो गया है। अधीनस्थ अदालत ने निषेधाज्ञा भी जारी की है। इस अर्जी को खारिज कर दिया गया, जिसे याचिका में चुनौती दी गई थी।
कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से किया इंकार
याची का कहना था कि होटल बनाने की अनुमति देने के बाद जिलाधिकारी को अपना आदेश वापस लेने का अधिकार नहीं है। अनुमति निरस्त कर अधिकार क्षेत्र का अतिलंघन किया है। कानून में ऐसी शक्ति नहीं दी गई है। विपक्षी अधिवक्ता वीके चंदेल का कहना था कि याची का मुकद्दमा अधीनस्थ अदालत में विचाराधीन है। वहीं जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जनरल क्लाजेज एक्ट में अनुमति देने वाले को वापस लेने का अधिकार है। कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।