इलाहाबाद हाई कोर्ट ने देश को दिए विख्यात न्यायविद, राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री की भी निभाई जिम्मेदारी

इलाहाबाद हाईकोर्ट के कई न्यायमूर्ति ऐसे रहे हैं जो अपने ऐतिहासिक फैसले के लिए देश-विदेश में चर्चित हुए। न्यायमूर्ति जगमोहन सिन्हा की गिनती ऐसे ही जजों में होती है। उन्होंने 12 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद करने का ऐतिहासिक फैसला दिया था

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Fri, 10 Sep 2021 08:00 AM (IST) Updated:Fri, 10 Sep 2021 06:06 PM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने देश को दिए विख्यात न्यायविद, राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री की भी निभाई जिम्मेदारी
देश और प्रदेश में कानून मंत्री के साथ अहम पदों पर रहे यहां के अधिवक्ता

प्रयागराज, शरद द्विवेदी। राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के ऐतिहासिक इलाहाबाद हाई कोर्ट में आगमन से पूर्व इसकी गौरवपूर्ण गाथा फिर याद की जाने लगी है। बार और बेंच ने काफी ख्याति बटोरी है। देश में इसकी पहचान निष्पक्ष न्याय देने के साथ विधि क्षेत्र को कई विद्वान देने की भी रही है। देश में ऐसा कोई हाई कोर्ट नहीं है, जहां इलाहाबाद हाई कोर्ट से जुड़े चेहरे न्यायाधीश नहीं बने हों। तमाम विधिवेत्ताओं को सुप्रीम कोर्ट में भी जज के रूप में न्याय देने का मौका मिला। कुछ विधिवेत्ता तो उपराष्ट्रपति, राज्यपाल तथा कानून मंत्री तक बने।

मोतीलाल नेहरू रहे हैं नामी वकील

प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद हाई कोर्ट के नामी वकील थे। महामना मदन मोहन मालवीय ने प्रैक्टिस के दौरान अपनी विद्वता का कायल बनाया। इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील रहे सर तेज बहादुर सप्रू 1920 से 1923 तक वायसराय की परिषद में कानूनी सदस्य थे। डॉ. कैलाशनाथ काटजू प्रदेश में गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्रित्व काल में 1950 से 54 तक कानून मंत्री थे। देश को आजादी मिलने से पहले गोपाल स्वरूप पाठक यहां नामी वकील थे। वह इसी हाई कोर्ट में 1945 से 46 तक न्यायमूर्ति रहे और फिर 1966 से 67 तक केंद्रीय विधि मंत्री। देश का उपराष्ट्रपति बनने का गौरव भी उन्हें मिला।

न्यायमूर्ति अंशुमान सिंह और वरिष्ठ अधिवक्ता केशरीनाथ रहे राज्यपाल

मोरार जी देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल में 1977 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता शांतिभूषण कानून मंत्री बनाए गए। वरिष्ठ अधिवक्ता वीसी मिश्र बार काउंसिल आफ इंडिया के तीन बार और यूपी बार काउंसिल के दो बार अध्यक्ष चुने गए। न्यायमूर्ति अंशुमान सिंह राजस्थान के राज्यपाल बने। वरिष्ठ अधिवक्ता केशरीनाथ त्रिपाठी को विधानसभा अध्यक्ष के अलावा पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने का गौरव मिला। न्यायमूर्ति केएन सिंह व न्यायमूर्ति वीएन खरे भी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। न्यायमूर्ति आरएस पाठक को सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने के अलावा इंटरनेशनल कोर्ट हेग में भी जज बनने का मौका मिला। न्यायमूर्ति शम्भूनाथ श्रीवास्तव छत्तीसगढ़ के लोकायुक्त रहे हैैं।

ऐतिहासिक फैसले नजीर बने

अनेक न्यायमूर्ति ऐसे रहे हैं, जो अपने ऐतिहासिक फैसले के लिए देश-विदेश में चर्चित हुए। न्यायमूर्ति जगमोहन सिन्हा की गिनती ऐसे ही जजों में होती है। उन्होंने 12 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद करने का ऐतिहासिक फैसला दिया था। न्यायमूर्ति शम्भूनाथ ने मंदिरों की देखरेख के लिए राष्ट्रीय मंदिर न्यास, 1952 से देश की आजादी तक जितने तालाब थे उन्हें खुदवाने सहित कई चर्चित फैसले दिए थे। जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने मंत्रियों व अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का फैसला सुनाया था। वर्ष 1998 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने रातोंरात कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। इलाहाबाद हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति डीके सेठ की अध्यक्षता में आधी रात को अदालत बैठी। इसमें राज्यपाल के फैसले को गलत बताया गया और जगदंबिका पाल को पद से हटना पड़ा।

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