इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दहेज हत्या में आरोपित श्वसुर को दी जमानत, कहा- देखा जाए अपराधी न्याय में न बने बाधक
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि जमानत एक नियम है और जेल अपवाद। यह दैहिक स्वतंत्रता का विषय है। जमानत आदेश यांत्रिक नहीं होना चाहिए। जमानत देने या न देने का कारण दिया जाए और यह भी देखा जाए कि अपराधी न्याय में बाधक न बनने पाये।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि जमानत एक नियम है और जेल अपवाद। यह दैहिक स्वतंत्रता का विषय है। जमानत आदेश यांत्रिक नहीं होना चाहिए। जमानत देने या न देने का कारण दिया जाए और यह भी देखा जाए कि अपराधी न्याय में बाधक न बनने पाये। यह न्यायाधीश के न्यायिक विवेक पर निर्भर है कि जमानत दें या नहीं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि जमानत देते समय आरोपी के अपराध दोहराने, साक्ष्य से छेड़छाड़, गवाहों को धमकी की संभावनाओं पर विचार करना चाहिए। गवाहों की विश्वसनीयता, मामले का गुणदोष आदि विचारण के समय देखे जाएंगे, इसलिए जमानत देते या अस्वीकार करते समय इस पर विचार नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जमानत अर्जी पर विचार करते समय मनमानी नहीं, सहानुभूति पूर्वक विवेक का प्रयोग करना चाहिए। जमानत की शर्तें इतनी कड़ी न हो कि पालन असंभव हो जाए। इसी के साथ कोर्ट ने रामपुर के दहेज उत्पीड़न व हत्या में आरोपित जगपाल की सशर्त जमानत मंजूर कर ली है।
29 जनवरी, 2020 से जेल में बंद याची की रिहाई का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि मृतका की शादी 2013 में याची के बेटे हरवीर सिंह से हुई थी। मृतका शिखा की 18 जनवरी, 2020 को मौत हो गई। शहवाद थाने में एफआइआर दर्ज करायी गई है। कोर्ट ने कहा कि सास मूर्ति देवी ऐसे ही आरोपों पर पहले से जमानत पर हैं। याची अपने बेटे-बहू के साथ नहीं रहता था। घटना के पहले दहेज उत्पीड़न की कोई शिकायत नहीं है। याची का आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। ऐसे में जमानत पर रिहा होने का अधिकारी है।