इलाहाबाद हाईकोर्ट : अस्पताल के खिलाफ एकपक्षीय कार्रवाई रद, आयुष्मान भारत योजना में घोटाले का मामला

याची का कहना था कि कार्रवाई प्रक्रिया में नैसर्गिक न्याय का पालन नहीं किया गया। खुद ही शिकायत ली और जांच करके बिना आरोपी का पक्ष सुने एकपक्षीय आदेश दे दिया गया। कोर्ट ने कहा किसी के खिलाफ कार्रवाई से पहले उसका पक्ष सुना जाना चाहिए।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Tue, 16 Mar 2021 08:49 PM (IST) Updated:Tue, 16 Mar 2021 08:49 PM (IST)
इलाहाबाद हाईकोर्ट : अस्पताल के खिलाफ एकपक्षीय कार्रवाई रद, आयुष्मान भारत योजना में घोटाले का  मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कार्रवाई निष्पक्षता से पूरी करने का निर्देश दिया है।

प्रयागराज, जेएनएन।  इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना से जालसाजी करने के आरोप में दयाल नर्सिग होम मुंडेरा प्रयागराज की संबद्धता निरस्त करने के 24 दिसंबर 2020 के आदेश को नैसर्गिक न्याय के विपरीत करार देते हुए रद कर दिया है। योजना के दिशा-निर्देश के तहत अस्पताल मालिक याची को सुनवाई का मौका देते हुए नये सिरे से 30 दिन में आदेश पारित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि अस्पताल की योजना से संबद्धता निलंबित करने का आदेश इस मामले में लिए जाने वाले अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा। कोर्ट ने कार्रवाई निष्पक्षता से पूरी करने का निर्देश दिया है। 

यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी व न्यायमूर्ति आरएन तिलहरी की खंडपीठ ने अस्पताल मालिक मुकेश टंडन की याचिका पर दिया है। मामले के अनुसार नेशनल एंटी फ्राड यूनिट को अस्पताल में योजना के घपले की सूचना मिली, फिर स्टेट हेल्थ एजेंसी अविघ्न मेडनेट प्राइवेट लिमिटेड की रिपोर्ट के आधार पर जांच शुरू हुई। इसके साथ अस्पताल की योजना से संबद्धता निलंबित कर दी। स्टेट हेल्थ एजेंसी की 15 दिसंबर 2020 की रिपोर्ट पर आरोप की पुष्टि होने पर संबद्धता निरस्त कर दी गयी। एजेंसी के मुख्य अधिशाषी अधिकारी ने जुर्माना लगाते हुए नुकसान की वसूली का आदेश दिया। उसे याचिका में चुनौती दी गयी थी। 


न्याय किया जाना प्रतीत भी होना चाहिए

याची का कहना था कि कार्रवाई प्रक्रिया में नैसर्गिक न्याय का पालन नहीं किया गया। खुद ही शिकायत ली और जांच करके बिना आरोपी का पक्ष सुने एकपक्षीय आदेश दे दिया गया। कोर्ट ने कहा किसी के खिलाफ कार्रवाई से पहले उसका पक्ष सुना जाना चाहिए। न्याय किया ही न जाय, न्याय किया जाना प्रतीत भी होना चाहिए। आदेश जारी करने से पहले कारण बताओ नोटिस दी जानी चाहिए थी।

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