यूपी में अवैध निरुद्धि पर बनी मुआवजा नीति को हाई कोर्ट ने सराहा, कहा- लोगों को दी जाए जानकारी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने किसी को अवैध निरुद्धि में रखने के दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने और पीड़ित को मुआवजा देने की 23 मार्च 2021 की सरकारी नीति की सराहना की है। मुख्य सचिव व अपर मुख्य सचिव गृह को इसका कड़ाई से पालन कराने का निर्देश दिया है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Fri, 11 Jun 2021 08:36 PM (IST) Updated:Fri, 11 Jun 2021 08:37 PM (IST)
यूपी में अवैध निरुद्धि पर बनी मुआवजा नीति को हाई कोर्ट ने सराहा, कहा- लोगों को दी जाए जानकारी
उत्तर प्रदेश में अवैध निरुद्धि पर बनी मुआवजा नीति की हाई कोर्ट ने सराहना की है।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने किसी व्यक्ति को अवैध निरुद्धि में रखने के दोषी अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई करने और पीड़ित को मुआवजा देने की 23 मार्च, 2021 की सरकारी नीति की सराहना की है। मुख्य सचिव व अपर मुख्य सचिव गृह को इस नीति का कड़ाई से पालन कराने का निर्देश दिया है। नीति में सरकार ने स्पष्ट किया है कि आम लोगों के जीवन के मूल अधिकार का हनन करने वाले दोषी अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई होगी। उत्पीड़न व अवैध निरुद्धि की शिकायत की जांच तीन माह में पूरी की जाएगी। अवैध निरुद्धि सिद्ध होने पर पीड़ित को 25 हजार रुपये का तत्काल मुआवजा मिलेगा।

हाई कोर्ट ने कहा कि इस नीति को उत्तर प्रदेश के सभी ब्लाकों, तहसील मुख्यालयों, जिला कलेक्ट्रेट व पुलिस थानों में डिस्प्ले बोर्ड पर लगाया जाए। साथ ही अखबारों में प्रकाशित किया जाए। आदेश की प्रति सभी तहसील व जिला बार एसोसिएशन को भेजी जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी व न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने रोहनिया, वाराणसी के शिव कुमार वर्मा व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सरकारी सेवक की आम लोगों के प्रति जिम्मेदारी है। ऐसे में शक्ति का इस्तेमाल अपने पद के दायित्व के दायरे में ही करना चाहिए। किसी भी अधिकारी द्वारा शक्ति का दुरुपयोग करने पर उसे किसी कानून में संरक्षण नहीं मिला है। परिणाम भुगतने की उसकी जवाबदेही होगी। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों द्वारा आम लोगों का उत्पीड़न किया जाना न केवल उस व्यक्ति की क्षति है, बल्कि असहाय की मनोदशा को चोट पहुंचाने वाली सामाजिक क्षति है। ऐसी स्थिति में पीडि़त को मुआवजा दिलाना सामाजिक बुराई को हतोत्साहित करना भी है।

हाई कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों का राजनीतिक संरक्षण नहीं है, आर्थिक रूप से सबल नहीं हैं, वे नौकरशाही की मनमानी कार्रवाई का मुकाबला नहीं कर सकते। इससे उनका सिस्टम से भरोसा उठने लगता है, इसलिए विवेकाधिकार का मनमाना प्रयोग करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई के साथ पीड़ित को मुआवजा पाने का अधिकार है। सरकार ऐसी राशि की वसूली दोषी अधिकारियों से अवश्य करे।

पूरे मामले के अनुसार जमीन बंटवारा पारिवारिक विवाद व झगड़े की स्थिति को लेकर पुलिस ने धारा 151 में चालान किया। आठ अक्टूबर 2020 को दारोगा ने प्रिंटेड फार्म पर नाम भरकर रिपोर्ट भेजी। इस पर एसडीएम ने केस दर्ज किया। याची ने 12 अक्टूबर 2020 को बंधपत्र दिया। लेकिन, उसे रिहा नहीं किया गया। इसके बाद एसडीएम ने खतौनी के सत्यापन की तहसीलदार से 21 अक्टूबर तक रिपोर्ट मांगी। रिपोर्ट आने पर याची रिहा किया गया। इसके बाद यह याचिका दायर करके याची ने 12 से 21 अक्टूबर 2020 तक अवैध निरुद्धि के मुआवजे की मांग की।

कोर्ट के निर्देश पर डीजीपी ने सभी पुलिस अधिकारियों को सचिव के आदेश का पालन करने का परिपत्र जारी किया। उसमें कहा कि चालान प्रिंटेड नहीं होगा। पूर्ण विवरण और पत्रजात के साथ चालान रिपोर्ट भेजी जाय। मुआवजे के मुद्दे पर सरकार ने नीति जारी कर कोर्ट मे पेश की। इस पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है। कहा कि मुआवजे की नीति आने के बाद याची के लिए अलग से आदेश देने की आवश्यकता नहीं है।

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