NRLM: ​​​​​गूगल से सीखकर बेकार कपड़ों से बना रहीं गमले, प्रतापगढ़ के महिलाओं के हुनर के सब हुए कायल

एक ओर महिलाएं बेबी ट्राई साइकिल आंवले का उत्पाद नर्सरी मछली पालन मास्क सैनिटाइजर तैयार कर रहीं हैं। दूसरी ओर अब घर में बेकार पड़े कपड़े का सीमेंट व बालू में मिश्रण कर डिजाइनर गमले बना रहीं हैं। कपड़े के गमले बनाने की जानकारी महिलाओं को गूगल के जरिए मिली

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 08:30 AM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 08:30 AM (IST)
NRLM: ​​​​​गूगल से सीखकर बेकार कपड़ों से बना रहीं गमले, प्रतापगढ़ के महिलाओं के हुनर के सब हुए कायल
गांव की तमाम अन्य महिलाओं ने भी शुरू कर दिया है गमला तैयार करना

प्रतापगढ़, प्रवीन कुमार यादव। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर स्वयं सहायता समूह की महिलाएं गरीबी को मात दे रहीं हैं। एक ओर जहां महिलाएं बेबी ट्राई साइकिल, आंवले का उत्पाद, नर्सरी, मछली पालन, मास्क, सैनिटाइजर तैयार कर रहीं हैं। दूसरी ओर अब घर में बेकार पड़े कपड़े का सीमेंट व बालू में मिश्रण कर डिजाइनर गमले बना रहीं हैं। कपड़े के गमले बनाने की जानकारी महिलाओं को गूगल के जरिए मिली। इसके बाद ट्रायल करने पर बेहतरीन गमला तैयार हो गया। अब महिलाएं बड़े पैमाने पर इसी तरीके से गमले बनाने का काम कर रहीं हैं।

100 रुपये खर्च और 150 में हो रही बिक्री

मानधाता ब्लाक के अमहियामऊ लाखूपुर गांव में तमाम परिवार गरीबी से जूझ रहे थे। गांव के ज्यादातर पुरुष व महिलाएं मजदूरी करती थीं। बंटाई पर खेत लेकर पैदावार उगाकर उनके परिवार का खर्च चलता था। गांव की सुमन सरोज, सुरसती, लल्ली, नीतू सहित अन्य महिलाएं जून 2019 में स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं। समूह का नाम राधा आजीविका के नाम से रखा है। एक सप्ताह तक उनको समूह से जुडऩे से होने वाले फायदे के बारे में बताया गया। महिलाओं ने रिवाल्विंग फंड और सामुदायिक निवेश निधि से मिले पैसे से कारोबार को और विस्तार दिया। एक दिन सुमन मोबाइल पर गूगल के जरिए समूह से जुडऩे के बाद होने वाले फायदे की जानकारी ले रही थीं। इसी दौरान उन्होंने गमला बनाने के बारे में जानकारी मिली। गूगल के जरिए यह मालूम हुआ कि बेकार कपड़े से बेहतरीन गमला बनाया जा सकता है। अब यह महिलाएं ऐसे ही बिना इस्तेमाल वाले कपड़ों से गमला बना रहीं हैं। महिलाओं के अनुसार एक गमला बनाने में 100 रुपये खर्च आता है, जबकि महिलाएं उसे 150 से 175 रुपये में बेचती हैं। खास बात यह है कि गमले का वजन काफी कम होता है। जो आकर्षण का केंद्र बना है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जिला मिशन प्रबंधक अख्तर मसूद ने बताया कि समूह की महिलाएं बेहतरीन गमले तैयार करेंगी।

अधिकांश महिलाएं शुरू की काम

गांव में सबसे पहले सुमन ने गमला बनाना शुरू किया। इससे जब अच्छी आय होने लगी तो गांव की निशा, राजकुमारी, सुमित्रा आदि ने भी गमला बनाना शुरू कर दिया। यही नहीं गांव की महिलाएं सुमन आदि महिलाओं से प्रशिक्षण भी ले रहीं हैं।

बाजार में करती हैं बिक्री

वैसे तो तैयार गमला काफी संख्या में घर पर ही बिक जाता है। इसके अलावा जिन दिन बाजार लगता है, महिलाएं रिक्शा व ठेले से गमले को लादकर मानधाता, हैंसी, कटरा गुलाब सिंह सहित अन्य बाजारों में बेचने के लिए ले जाती हैं।

इस तरह से बनाती हैं गमला

समूह की महिलाएं पहले गमले के सांचे में बालू रखती हैं। इसके बाद उसमें प्लास्टिक की पाइप डाल देती हैं। उसके बाद फुटबाल रख देती हैं। बेकार कपड़े को गीला करके उसमें डाल देती हैं। उसके बाद ऊपर से डिजाइन बना देती हैं। गमला तैयार हो जाता है। सीमेंट का लेप भी लगाती हैं।

पहले परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा था। पति भी राजमिस्त्री हैं। ऐसे में छोटी सी कमाई में खर्च नहीं चल पाता था। गमले के कारोबार से तकदीर ही बदल दी।

- सुमन

स्वयं सहायता समूह से जुड़ी तो यह लगा कि हम लोग जल्द ही कोई कारोबार शुरू करेंगे। सुमन की तरह हम लोग भी गमला बनाने लगे। अच्छी आय हो रही है।

- नीतू

हमारा परिवार गहुत ही गरीबी से जूझ रहा था। सुमन दीदी को परिवार की हालत देखी नहीं गई। उन्होंने गमला बनाने की सलाह दी। इससे होने वाली आय से परिवार खुशहाल है।

- लल्ली

हम लोग अगर स्वयं सहायता से न जुड़ी होती। गमला का व्यवसाय न शुरू करती तो शायद यह बदलाव न होता। एक गमले के पीछे अच्छी खासी बचत हो रही है।

- सुरसती

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