मोक्ष की राह में Coronavirus बना काल, होली के बाद प्रयागराज में अचानक बढ़ा मौतों का सिलसिला

कामेश्वर ने बताया कि यहां एक साथ 10 शवों को जलाने की व्यवस्था है। बुधवार को दोपहर ढाई बजे तक 40 शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका था। एक शव जलने में तकरीबन तीन घंटे लगते हैं। चिताओं की आग भी ठंडी नहीं होने पाती है।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 07:00 AM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 08:15 AM (IST)
मोक्ष की राह में Coronavirus बना काल, होली के बाद प्रयागराज में अचानक बढ़ा मौतों का सिलसिला
इन दिनों रसूलाबाद, दशाश्वमेध, शंकरढाल, छतनाग आदि घाटों पर अंतिम संस्कार के लिए भी इंतजार करना पड़ रहा है

प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। कोरोना महामारी ने अजीब संकट खड़ा कर दिया है। यह जीने वालों के लिए तो आफत बना ही है, मरने वालों के अंतिम संस्कार की राह में उस कालनेमि की तरह संकट बन गया है, जो लक्ष्मण को शक्ति लगने पर संजीवनी लेने जा रहे हनुमान की राह में खड़ा हो गया था। इन दिनों रसूलाबाद, दशाश्वमेध, शंकरढाल, छतनाग आदि घाटों पर अंतिम संस्कार के लिए भी इंतजार करना पड़ रहा है। हालांकि इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि इसमें कोराना संक्रमित भी होते हैैं या नहीं। 

विद्युत शवदाह गृह में भी देर शाम तक चालू रहती है मशीन

रोज लाए जाने वाले शवों की संख्या दोगुना से ज्यादा बढ़ गई है, इसलिए आशंका है कि संक्रमित भी हो सकते हैैं। हालांकि पूर्व में जांच न होने से इसकी पुष्टि नहीं हो पा रही।  रसूलाबाद में पहले महराजिन बुआ अंत्येष्टि कार्य कराती थीं। अब यह जिम्मा उनके ज्येष्ठ पुत्र जगदीश त्रिपाठी के पास है। रसूलाबाद घाट पर जितने भी अंतिम संस्कार होते हैं, वह श्रीमती महराजिन बुआ सेवा समिति के जरिए कराए जाते हैं। 

होली से पहले 10-15 शव आते थे रोज

समिति के सदस्य कामेश्वर निषाद ने बताया कि होली से पूर्व यहां प्रतिदिन 10 से 15 शव लाए जाते थे। होली के बाद अब हर दिन 40 से 45 शव लाए जाते हैं। ऐसे में इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि इसमें संक्रमित मरीजों के भी शव हों, लेकिन कोई पुष्टि नहीं होने से सभी का अंतिम संस्कार कराया जा रहा है। उधर, अस्पताल में कोविड से मरने वाले मरीजों के शवों को स्वास्थ्य विभाग कोविड प्रोटोकाल के तहत फाफामऊ घाट पर अंतिम संस्कार कराता है।  

बुधवार शाम तक 50 तक जले शव

कामेश्वर ने बताया कि यहां एक साथ 10 शवों को जलाने की व्यवस्था है। बुधवार को दोपहर ढाई बजे तक 40 शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका था। एक शव जलने में तकरीबन तीन घंटे लगते हैं। वह बताते हैं कि हालात तो यह हैं कि चिताओं की आग भी ठंडी नहीं होने पाती है। मजबूरन अब नदी के निचले हिस्से पर भी चिताएं सजवाई जा रही हैं। यह क्रम रात आठ बजे तक जारी रहता है। कमोबेश यही स्थिति फाफामऊ घाट, दारागंज घाट, दशाश्वमेध घाट, छतनाग घाट की भी है। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात कम है। 

शवदाह गृह में भी वेटिंग

शंकरढाल स्थित विद्युत शवदाह गृह में लोगों को इंतजार करना पड़ता है। यहां सिस्टम ऑपरेट करने वाले ज्वाला प्रसाद ने बताया कि होली के पहले औसतन प्रतिमाह लगभग 90 शव जलाए जाते थे। होली के बाद यानी करीब 15 दिन में ही यह आंकड़ा 150 पहुंच गया। उन्होंने बताया कि यहां एक मशीन आरक्षित रखी जाती है। हालांकि, वह इस वक्त खराब है। ऐसे में एक बार में एक शव जलाने की व्यवस्था है। एक शव जलने में 40 मिनट लगता है। सुबह नौ बजे से यह सिलसिला शाम पांच बजे तक चलता है। यही हाल दारागंज स्थित शवदाह गृह का भी है।

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