Adi Shankaracharya Birth Anniversary: वर्चुअल संगोष्‍ठी में विद्वान बोले- आदि शंकराचार्य ने बढ़ाया सनातन धर्म का वैभव

आदि शंकराचार्य का प्राक्‍ट्य उत्‍सव आज मनाया जा रहा है। इस अवसर पर प्रयागराज में वर्चुअल संगोष्‍ठी का आयोजन किया गया। इसमें विद्वानों की उपस्थिति रही। आचार्य सुधाकर शास्त्री ने वर्तमान परिदृश्य के परिप्रेक्ष्य में आदि शंकराचार्य रचित सुप्रसिद्ध रचना भज गोविंदम् की पंक्तियों का पाठ किया।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 09:40 AM (IST) Updated:Mon, 17 May 2021 09:40 AM (IST)
Adi Shankaracharya Birth Anniversary: वर्चुअल संगोष्‍ठी में विद्वान बोले- आदि शंकराचार्य ने बढ़ाया सनातन धर्म का वैभव
आदि शंकराचार्य के प्राक्‍ट्य उत्‍सव पर वर्चुअल संगोष्‍ठी हुई। वक्‍ताओं ने आदि शंकराचार्य के जीवन व कृतित्‍व पर चर्चा की।

प्रयागराज, जेएनएन। सनातन धर्म व संस्कृति को संरक्षित करके उसका विस्तार करने वाले आदि शंकराचार्य का प्राक्‍ट्य उत्सव आज यानी सोमवार को श्रद्धा से मनाया जा रहा है। इस उपलक्ष्‍य में प्रयागराज में पंडित देवीदत्त शुक्ल पं रमादत्त शुक्ल संस्‍थान ने वर्चुअल संगोष्ठी आयोजित किया। इसमें वक्ताओं ने युगावतार आदि शंकराचार्य के विचारों पर विस्तार से प्रकाश डाला।

आदि शंकराचार्य के व्यक्तित्व-कर्तृत्व पर विशिष्ट शोध कर अनेक पुस्तकों के रचनाकार डॉक्‍टर रामजी मिश्र ने कहा कि जब संपूर्ण देश में सनातन धर्म का अवमूल्यन और अध:पतन हो रहा था, ऐसे में भगवान शंकराचार्य ने अवतार धारण कर इस परम् पावन भारत भूमि से नास्तिक वाद का उन्मूलन कर सनातन धर्म की धर्म-ध्वजा लहराई थी। शंकराचार्य दर्शन जगत के सूर्य हैं और उन्होंने अपने आलोक से भारतीय दर्शन के भ्रान्त दार्शनिकों को एक उपयुक्त दिशा दी है। भारत से लेकर पश्चिमी विद्वानों तक ने शांकर- दर्शन की प्रशंसा की है। उन्‍होंने कहा कि सर्वपल्ली डाॅक्‍टर राधाकृष्णन के अनुसार शंकराचार्य का दार्शनिक सिध्दांत आध्यात्मिक, गांभीर्य एवं तार्किक शक्ति में अद्वितीय है।

आचार्य सुधाकर शास्त्री ने वर्तमान परिदृश्य के परिप्रेक्ष्य में आदि शंकराचार्य-रचित सुप्रसिद्ध रचना 'भज गोविंदम्' की पंक्तियों का पाठ किया। शिक्षाविद एवं प्राचार्य डाॅक्‍टर मुरारजी त्रिपाठी ने बताया कि अपने अहर्निश श्रम, अध्यवसाय, लेखन तथा कठिन पदयात्राओं के द्वारा इतनी अल्पायु में ही आदि शंकराचार्य ने देश की तत्कालीन अस्त-व्यस्त धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता को जो मजबूती एवं दीर्घकालीन सुदृढ़ आधार प्रदान किया। उसके लिए देश उनका चिर ऋणी रहेगा। अपने छोटे से जीवन-काल में अत्यंत दुर्गम मार्गों से पैदल यात्रा कर वे चार बार प्रयाग आए तथा तुषाग्नि में प्रविष्ट कुमारिल भट्ट से भेंट कर देश में ऐसी वैचारिक क्रांति की। इससे अंधविश्वास, पाखंड एवं अज्ञान का उन्मूलन हो गया। साथ ही विशुद्ध वैदिक सनातन धर्म की पुनः नूतन स्वरूप में प्रतिष्ठा हुई। उनका कार्य अतुलनीय है, जिसका संसार में कोई सानी नहीं है।

 वरिष्ठ अधिवक्ता जयकृष्ण तिवारी ने प्रयाग-गौरव पंडित रमादत्त शुक्ल द्वारा आदि शंकराचार्य की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए पूर्व में कराए गए कार्यों का भक्ति-भाव से स्मरण किया। 'चंडी' पत्रिका के संपादक ऋतशील शर्मा ने कहा कि प्रयागराज में विद्वान कुमारिल भट्ट से आदि शंकराचार्य जी भेंट त्रिवेणी-तट पर हुई थी। संभवतः त्रिवेणी के दर्शन-प्रवाह के फलस्वरूप ही उन्होंने 'त्रिवेणी-दशक' नामक स्तुति की रचना भी की थी। इस स्तुति के दस पद्यों के द्वारा आपने मानव-शरीर में विद्यमान सूक्ष्म त्रिवेणी ( इड़ा, पिंगला और सुषुम्णा ) तथा प्रयागराज में विद्यमान प्रत्यक्ष त्रिवेणी ( गंगा, यमुना और अन्तःसलिला सरस्वती ) के दार्शनिक-आध्यात्मिक भाव एवं एकता सिद्ध की थी। इस प्रकार प्रयागराज की 'त्रिवेणी' के वेद, उपनिषद्,योग-परक ज्ञान को आपने सदियों पूर्व स्पष्ट करने का अविस्मरणीय कार्य किया था।

उन्‍होंने कहा कि आदि शंकराचार्य द्वारा रचित 'श्री त्रिवेणी-दशक' स्तुति वस्तुतः वर्तमान विश्वव्यापी महामारी के परिप्रेक्ष्य में अति महत्वपूर्ण है। आज चारों ओर इस महामारी से बचने के लिए 'ईश्वर' का आश्रय लेने की बात की जा रही है। 'ईश्वर'-गुणों के रूप में हम सबके शरीर में मुख्य रूप से तीन नाड़ियों अथवा प्रवाहों में प्रतिष्ठित है। इन तीन नाड़ियों-प्रवाहों का स्मरण कर मानव ईश्वर के आश्रय-आलम्बन को सहजरूप में प्राप्त कर सकता है। सौभाग्य से ये तीनों नाड़ियाँ स्थूल रूप में प्रयागराज में तीन पावन नदियों के रूप में विद्यमान और दर्शनीय हैं। गंगा-यमुना-सरस्वती की त्रिवेणी की इस अद्भुत एकता तथा महत्त्व की ओर आदि शंकराचार्य जी ने अपने दार्शनिक ज्ञान से सदियों पहले मानव-मात्र को संकेत किया था। संयोजन व्रतशील शर्मा ने किया।

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