Adi Shankaracharya Birth Anniversary: प्रयागराज का संगम तट आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट के मिलन का है गवाह

Adi Shankaracharya Birth Anniversary कुमारिल भट्ट ने उनके बारे में पहले से सुना था। अकस्मात आदि शंकराचार्य को अपने सम्मुख देखकर वे अत्यधिक प्रसन्न हुए। शिष्यों से उनकी पूजा करवाई। भिक्षा ग्रहण करने के बाद आदि शंकराचार्य ने अपना भाष्य कुमारिल को दिखाया।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 16 May 2021 03:52 PM (IST) Updated:Sun, 16 May 2021 03:52 PM (IST)
Adi Shankaracharya Birth Anniversary: प्रयागराज का संगम तट आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट के मिलन का है गवाह
आदिशंकराचार्य की जन्मतिथि कल मनाई जाएगी। उनकी प्रयागराज में कुमारिल भट्ट से मुलाकात हुई थी।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज का संगम तट आदि शंकराचार्य व विद्वान कुमारिल भट्ट के मिलन का गवाह है। नास्तिक वाद का उन्मूलन करके सनातन धर्म की ध्वजा लहराने वाले आदि शंकराचार्य बदरिकाश्रम से प्रयागराज आए थे। मौजूदा समय बांध पर जहां शंकर विमान मंडपम् मंदिर है। यहीं मीमांसक व जैमिनि मतावलम्बी कुमारिल भट्ट से आदि शंकराचार्य की मुलाकात हुई। उस समय कुमारिल भट्ट तुषाग्नि (भूसे की आग) में अपना शरीर जला रहे थे। कुमारिल के शरीर का निचला भाग जल गया था। इसके बावजूद उनके चेहरे पर विलक्षण शांति विराजमान थी। इतने बड़े मीमांसक को शरीरपात करते देख आदि शंकराचार्य को आश्चर्य हुआ।

पुस्तक 'शंकराचार्य और उनकी परंपरा' में आदि शंकराचार्य के प्रयाग आगमन का उल्लेख

श्रीमद् आर्यावर्त विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष महामहोपाध्याय डॉ. रामजी मिश्र ने अपनी पुस्तक 'शंकराचार्य और उनकी परंपरा' में आदि शंकराचार्य के प्रयाग आगमन का विस्तृत उल्लेख किया है। डॉ. रामजी मिश्र बताते हैं कि छठीं शताब्दी में केरल के पूर्णानदी के तटवर्ती कलादी नामक गांव में वैशाख शुक्लपक्ष की पंचमी को जन्मे आदि शंकराचार्य ने अल्प समय में सनातन धर्म का वैभव बढ़ाया था। कुमारिल भट्ट ने उनके बारे में पहले से सुना था।  अकस्मात आदि शंकराचार्य को अपने सम्मुख देखकर वे अत्यधिक प्रसन्न हुए। शिष्यों से उनकी पूजा करवाई। भिक्षा ग्रहण करने के बाद आदि शंकराचार्य ने अपना भाष्य कुमारिल को दिखाया।

कुमारिल भट्ट और शंकराचार्य के संवाद भी पढ़ें

कुमारिल ने कहा कि 'ग्रंथ के आरंभ में ही आठ हजार वर्तिक सुशोभित हो रहे हैं। यदि मैं तुषाग्नि में जलने की दीक्षा न लिए होता तो अवश्य इसे सुंदर ग्रंथ बनाता। आदिशंकराचार्य ने उनसे इस प्रकार शरीर दग्ध करने का कारण पूछा। इस पर कुमारिल भट्ट ने कहा कि मैंने दो पाप किए हैं, पहला अपने बौद्ध गुरु का तिरस्कार और दूसरा जगत के कर्ता ईश्वर का खंडन। इस पर शंकराचार्य ने कहा कि आपके पवित्र चरित्र में पाप की संभावना तनिक भी नहीं है। आप यह सत्यव्रत सज्जनों को दिखाने के लिए कर रहे हैं। यदि आप आज्ञा दें तो मैं जलविंदु छिड़क कर आपको जीवित कर सकता हूं। इस पर कुमारिल भट्ट बहुत प्रभावित हुए और अपने भाव को व्यक्त करते हुए बोले कि मैं जानता हूं कि मेरी अंतरात्मा शुद्ध है और मैं अपराधहीन हूं। हालांकि लोक शिक्षण के लिए मैं यह प्रायश्चित कर रहा हूं। अंगीकृत व्रत को मैं छोड़ नहीं सकता। आप वैदिक सनातन धर्म के प्रचार के लिए मेरे पट्टशिष्य मंडन मिश्र को इस मार्ग में दीक्षित कीजिए। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस पंडित शिरोमणि की सहायता से आपकी विजय पताका सर्वत्र फहराएगी।

1997 में लगा था विद्वानों का जमघट

1997 में प्रयागराज में 10-11 मई को आदिशंकराचार्य की जन्मतिथि मनाई गई थी। पहले दिन बैरहना से शोभायात्रा निकाली गई थी। जबकि दूसरे दिन शंकरविमान मंडपम् के समक्ष विद्वत-गोष्ठी हुई। व्रतशील शर्मा बताते हैं कि संयोजन चंडी व संपादक की वाणी  पत्रिका के संपादक पं. रमादत्त शुक्ल ने किया था। गोष्ठी में प्रो. अमर सिंह, वरिष्ठ पत्रकार डॉ. रामनरेश त्रिपाठी, डॉ. संगमलाल पांडेय, डॉ. गयाचरण त्रिपाठी, पर्यटन विभाग, लखनऊ के पूर्व संयुक्त निदेशक कैलाशचंद्र मिश्र जैसे विद्वान शामिल हुए थे।

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