हाथरस में रामलीला के लिए अॉडीशन से होता था कलाकारों का चयन

आधुनिकता के इस दौर में सबकुछ बदल गया है। रामलीला में पुरानी परंपरा समाप्त हो गई हैं। अब मंडली कलाकारों ही रामलीला खेलते हैं। पहले पात्रों का चयन भी हाथरस में होता था। लेकिन वर्ष 1987 से व्रंदावन की मंडली का रामलीला में पदार्पण हुआ।

By Parul RawatEdited By: Publish:Wed, 21 Oct 2020 01:25 PM (IST) Updated:Wed, 21 Oct 2020 01:25 PM (IST)
हाथरस में  रामलीला के लिए अॉडीशन से होता था  कलाकारों का चयन
पंजाबी मार्केट स्थित रामलीला का अति प्राचीन मंच

जेेएनएन, हाथरस।  रामलीला, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के चरित्र पर आधारित परंपरागत नाटक। उत्तर भारत में यह अति प्राचीन है। इसका मंचन बड़ा रौचक रहता था। जितनी उत्सुकता देखने वालों में होती, उससे कहीं ज्यादा उत्साह स्वरूप बनने वाले कलाकारों में होता था। तीन दशक पहले तक कलाकारों के चयन के लिए ऑडीशन होता थाा। अब यह बातें पुरानी हो चली हैं।  आधुनिकता के इस दौर में सबकुछ बदल गया है। रामलीला में पुरानी परंपरा समाप्त हो गई हैं। अब मंडली कलाकारों ही रामलीला खेलते हैं। पहले पात्रों का चयन भी हाथरस में होता था। लेकिन, वर्ष 1987 से व्रंदावन की मंडली का रामलीला में पदार्पण हुआ। जो आज भी बदस्तूर बना हुआ है।

चौपाई सुनानी पड़ती थी

रामलीला में राम,लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न व सीता के स्वरूपों के लिए परीक्षा होती थी। यह परीक्षा गांधी चौक, नन्नूमल रमाशंकर की धर्मशाला या फिर नाई का नगला स्थित मिल में होती थी। निर्णायक की भूमिका विद्वान व आयोजक निभाते थे। आवेदकों को चौपाई गाकर सुनानी पड़ती थी। इस परीक्षा में आवेदक की सुर व आवाज देखी जाती थी, तब कहीं कलाकारों का चयन होता था। चयनित पात्रों का सिर मुडवाया जाता और फिर यज्ञोपवीत के साथ नामकरण संस्कार होता था।

घर नहीं जाते थे पात्र

चयनित पात्र 25 दिन तक अपने घर नहीं जाते थे। उनको हनुमान गली स्थित हनुमान मंदिर में ही रहना पड़ता था। घर का भोजन न कपड़े और न ही चारपाई पर आराम। बगीची पर नियमित जाकर वहीं स्नान व व्यायाम करना होता था। इनके साथ दो सेवक भी जाते थे। मंदिर में भोजन मिलता। 

प्रसिद्ध था राम वनवास

जिस प्रकार अलीगढ़ की सरयूपार लीला, कासगंज की राजगद्दी प्रसिद्ध है। वहीं हाथरस वनवास लीला का मंचन प्रसिद्ध था। इसमें खिच्चो लाला आटा वाले, विजेंद्र शर्मा आदि ढाेलक मजीरों पर भजन गाते चलते थे। रामजी चले वनवास अयोध्या मेरी सुनी भई, कब लौटकर आओगे दीनानाथ..। इन भजनों को सुनकर उपस्थित जन रो जाता था। वहीं राम-लक्ष्मण व सीता पैदल चलते थे। इनके लिए बाजारों में भक्तों द्वारा टाट पट्टी बिछाई जाती थी। 

जब बाबा निर्भय हाथरसी बने रावण

यूं तो आंसू कवि निर्भय हाथरसी कविताओं के लिए प्रसिद्ध थे। वहीं उनका रावण बनने का संस्मरण भी कम प्रसिद्ध नही था। बुजुर्ग बताते है कि उन्होंने रावण की भूमिका का निर्वाहन किया। इसमें विद्वान चौपाई गाते थे लेकिन बाबा ने स्वयं ही संस्कृत में चौपाई गई और उनका हिंदी में अनुवाद करते हुए सभी को चौका दिया था। कलाकार अशोक शर्मा का ने बताया कि सोलह साल की उम्र में रामलीला से जुड़ गया। ग्यारह साल राम बना। दो बार जानकी। पात्र चयन के लिए पहले एजेंडा निकलता था। परीक्षा होती थी। गला व सुर देखा जाता था। फिर नामकरण होता था। 25 दिन घर से दूर रहना पड़ता था। किशनलाल चतुर्वेदी ने बताया कि  रामलीला में हनुमान बना। हनुमान स्वरूप की सवारी निकलती थी। तीन दशक पहले तक पात्र चयन के लिए एजेंडा जारी होता, उसके बाद युवा एकत्रित होते, परीक्षा होती थी। इस परीक्षा के बाद ही पात्र चयन होता था।

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