Special on death anniversary : फतवों से नहीं डरती थीं अलीगढ़ की माटी में जन्‍मी रसीद जहां, बचपन से थे बगावती तेवर, जानिए पूरी कहानीAligarh news

वह पेशे से चिकित्सक थीं लेकिन इलाज सामाजिक बुराइयों और बैर-भाव का करने की भी ठान ली। मुस्लिम महिलाओं पर जुल्म-ज्यादतियों पाबंदियों और यौन नैतिकता के खिलाफ आवाज उठाई। न केवल कलम के जरिए बल्कि मंचों से भी।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Thu, 29 Jul 2021 10:55 AM (IST) Updated:Thu, 29 Jul 2021 11:44 AM (IST)
Special on death anniversary : फतवों से नहीं डरती थीं अलीगढ़ की माटी में जन्‍मी रसीद जहां, बचपन से थे बगावती तेवर, जानिए पूरी कहानीAligarh news
अलीगढ़ में जन्‍मी रसीद जहां का फाइल फोटो।

विनोद भारती, अलीगढ़ । वह पेशे से चिकित्सक थीं, लेकिन इलाज सामाजिक बुराइयों और बैर-भाव का करने की भी ठान ली। मुस्लिम महिलाओं पर जुल्म-ज्यादतियों, पाबंदियों और यौन नैतिकता के खिलाफ आवाज उठाई। न केवल कलम के जरिए, बल्कि मंचों से भी। कभी साहित्यकार और पत्रकार बनकर तो कभी राजनेता बनाकर। विरोधियों ने फतवे तक जारी कर दिए, मगर आम इंसान के हक-औ-हुकूक के लिए वह जिंदा बगावत थीं। किसी से नहीं डरीं। किसान-मजदूरों के लिए जेल तक गईं। यहां बात हो रही है, सैंतालीस साल की छोटी सी जिंदगी में कई मोर्चों पर डटी रहीं लेखिका रसीद जहां की। वूमेंस कालेज के संस्थापक पापा मियां की लाडली बेटी रसीद जहां की आज पुण्यतिथि है।

अलीगढ़ में पैदा हुईं थी रसीद जहां

रसीद जहां का जन्म 25 अगस्त 1905 को अलीगढ़ शहर में हुआ। मां वहीद शाहजहां बेगम और पिता शेख अबदुल्लाह उर्फ पापा मिया भी मशहूर शिक्षाविद् व लेखक थे। रशीद की प्रारंभिक शिक्षा अलीगढ़ में हुई। लखनऊ के ईजा बेला थोबरोन कालेज से इंटर किया। 1934 में दिल्ली के लार्ड हार्डिंग मेडिकल कालेज से एमबीबीएस करके डाक्टर बन गईं। इसी साल शादी हो गई। लेखन के जरिए बगावत, किताबों पर पाबंदी वरिष्ठ लेखक डा. नमिता सिंह बताती हैं कि रसीद जहां को लेखन विरासत में मिला। 1923 में पहली कहानी सलमा लिखी। इसमें मुस्लिम औरतों के सवाल उठाए गए। तमाम पत्र-पत्रकारियों में लिखा। इनके लेखन में बगावत होती थी। 1932 में आई कहानी संग्रह ‘अंगारे’ में रशीद जहां की कहानी ‘दिल्ली की सैर’ और एक एकांकी ‘पर्दे के पीछे’ पर खूब हंगामा बरपा। उनके खिलाफ फतवे जारी हुए। कहा गया, इस्लाम और महजब के मामलात में दखल देनेवाली इस औरत के तो नाक और कान काट लेने चाहिएं।

कहानी संग्रह औरत को लेकर खूब हो हल्‍ला मचा

दरअसल, दिल्ली की सैर में मुस्लिम महिला अपने शौहर के साथ दिल्ली सैर का ऐलान करती हैं। ‘पर्दे के पीछे में’ औरतों को अय्यासी का सामान समझने वालों को लानत दी गई। जो लोगों को पसंद नहीं आई। लेकिन, रसीद जहां इन फतवों से नहीं डरीं। फिर,पुन (पुण्य़) नामक कहानी पर भी बैन लगा। 1937 में पहला कहानी संग्रह ‘औरत’ आया। इसे लेकर भी खूब हो-हल्ला मचा। रसीद जहां ने तमाम कहानी और नाटक लिखे, इसमें ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ गुस्सा और इसे बदलने की जिद्दोजहद दिखाई दी। अंगारे समेत कई किताबों पर पाबंदी लगी। प्रगतिशील लेखक संघ की संस्थापक संघ डा. नमिता ने बताया कि डाक्टरी के बाद रसीद जहां प्रगतिशील लेखन आंदोलन से जुड़ गईं, जिसमें उस समय के तमाम बड़े साहित्यकार व लेखक जुड़े हुए थे। 1934 में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई। रसीद जहां इसकी संस्थापक सदस्य थीं। 1936 में रसीद जहां ने लखनऊ में संघ का सम्मान समारोह कराया। इसमें सरोजिनी नायडू व मुंशी प्रेमचंद ने भी शिरकत की। 16 दिन की हड़ताल, वे मार्क्सवादी आंदोलन से भी जुड़ीं। वर्ष 1948 में रेलवे यूनियन की हड़ताल में शामिल होने पर वे गिरफ्तार हुईं। कैंसर की मरीज थीं। जेल में 16 दिन की लंबी भूख हड़ताल से सेहत बिगड़ गई। 29 जुलाई, 1952 को मास्को में इंतकाल हो गया। 

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