Waiting Ten Hours in Muktidham of Aligarh : छांव सुकून की नहीं है, मगर दर्द बांटने के लिए लगाया टेंट

अलीगढ़ का नुमाइश मैदान अपने आप में इतिहास समेटे हुए है। इसकी मिट्टी में हिंदू-मुस्लिम एकता की सौंदी खुशबू महकती है तो मजबूत तालों की कारीगरी। मैदान में जब भी कोई शामियान लगता तो राहगीरों की नजर जरूर उस ओर जाती है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Sun, 09 May 2021 09:27 AM (IST) Updated:Sun, 09 May 2021 09:27 AM (IST)
Waiting Ten Hours in Muktidham of Aligarh : छांव सुकून की नहीं है, मगर दर्द बांटने के लिए लगाया टेंट
अलीगढ़ का नुमाइश मैदान अपने आप में इतिहास समेटे हुए है।

अलीगढ़, जेएनएन। अलीगढ़ का  नुमाइश मैदान अपने आप में इतिहास समेटे हुए है। इसकी मिट्टी में हिंदू-मुस्लिम एकता की सौंदी खुशबू महकती है तो मजबूत तालों की कारीगरी। मैदान में जब भी कोई शामियान लगता तो राहगीरों की नजर जरूर उस ओर जाती है। होली पर अमीर-गुलाल से टेंट रंगीन होते हैं तो नुमाइश के दिनों में रंग-बिरंगे टेंट माहौल को रंगीन बना देते हैं। दशहरा पर लगने वालो टेंट असत्य पर सत्य की विजय की गाथा सुनता है। करोनो काल में इन दिनों एक ऐसा टेंट यहां लगा है जिसकी छांव शायद ही सुकून वाली हो। यहां के मुक्तिधाम में हर रोज  इतने शव पहुंच रहे हैं कि स्वजनों को आठ से दस घंटे का इंतजार करना पड़ रहा है। ऐसे ही लोगों का दर्द बांटने के लिए यहां टेंट लगाया गया है। ये कोशिश है उन लोगों को सुकून पहुंचाने की जिन्होंने इस आपदा में अपनों को खो दिया है। 

उनका हक तो मारा गया  

इससे खराब समय कोई हो नहीं सकता। लोगों की जान तो जा ही रही है, आर्थिक रूप से  नुकसान भी हो रहा है।  फिर भी लोग आपदा में अवसर तलाश रहे हैं। कासिमपुर पावर हाउस स्थित प्लांट का हाल सबके सामने है। यहां पता ही नहीं चल रहा कौन दूध का धुला है?  एक बात तो साफ है? कि किसी न किसी के हाथ दलाली में काले  जरूर हुए हैं तभी तो इतनी शोर उठा है? अन्यथा सरकारी जांच का कागज इतनी जल्दी रफ्तार नहीं पकड़ता। जांच का परिणाम जो भी आए लेकिन उन लोगों का हक तो मारा गया जो अपनों की जान बचाने के लिए सिलिंडर लेने पहुंचे थे। उनमें से किसी ने अगर इस बीच अपना खाे दिया हो तो उन्हें जवाब कौन देगा? पैसा कमाने के लिए जिंदगी बहुत से अवसर देती है, लेकिन ऐसे अवसरों की तलाश में न रहें जिसमें किसी की जिंदगी ही चली जाए।  

 

सर सैयद के चमन में मातम

एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने सौ साल पहले यूनिवर्सिटी की नींव यहां के बेहतर वातावरण को देखते हुए रखी थी। उन्होंने शायद ही अंदाजा लगाया हो कि 21 के दशक में ऐसी महामारी फैलेगी की कैंपस में मातम ही मातम होगा। कोरोना काल में ऐसा ही हो रहा है। हर रोज एएमयू के कर्मियों के निधन की खबर आ रही है। 17 ऐसे शिक्षक जान गवां चुके हैं जो सेवा में हैं। सर सैयद ने चेचक की रोकथाम के लिए टीकाकरण को महत्व दिया था। आज के दौर की बात करें तो कैंपस मे कोरोना वैक्सीन को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। हेल्थ विभाग ने शुरुआत में यहां सात बूथ बनाए थे। टीकाकरण कम होने पर कई बूथ कम करने पड़े। ऐसा शायद ही कोई बूथ दिवस रहा हो जिसमें लक्ष्य के सापेक्ष टीकाकरण हुआ । टीकाकरण की संख्या बढ़ाने के लिए सीएमओ को पत्र तक लिखने पड़े।

अच्छी  खबरें कहां गईं

माेबाइल इंसान के जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। सुबह जागने से लेकर रात सोने तक इसका ही साथ रहता है। इंटरनेट मीडिया इतना ससख्त हो गया है कि बहुत से जानकारी इससे ही पहले मिलती हैं। परंतु, आजकल इस पर जो जानकारी आ रही हैं वो दुखी करने वाली हैं। सुबह जब भी फेसबुक को देखो किसी के निधन की सूचना ही सबसे पहले देखने को मिलती है। पिछले दस दिनों से तो ऐसा कुछ ज्यादा ही हो रहा है। ऐसा लगता है जैसे इंसान के हिस्से की खुशियां का अकाल पड़ गया है।  इंटरनेट की मीडिया के इतिहास में शायद ही ऐसा पहले कभी हुआ हो। कोरोना काल में हर कोई दुखी और व्यथित है। इस वायरस ने हर किसी को दर्द दिया है। इस महामारी ने किसी का अपना छीना है तो किसी का अति करीब। चाह कर भी कोई अपनों के लिए कुछ नहीं कर पा रहा।

chat bot
आपका साथी