अलीगढ़ शहर में मौत को दावत दे रहे अनफिट वाहन, खतरे में जान

वाहन मंजिलों को तय करते हैं। सफर में वाहन की फिटनेस सही न हो तो हादसे का खतरा कई गुना तक बढ़ जाता है। ऐसे वाहनों से चालक ही नहीं बल्कि उसमें सवार लोगों की जान भी जोखिम में पड़ जाती है।

By Sandeep kumar SaxenaEdited By: Publish:Tue, 23 Feb 2021 10:54 AM (IST) Updated:Tue, 23 Feb 2021 10:54 AM (IST)
अलीगढ़ शहर में मौत को दावत दे रहे अनफिट वाहन, खतरे में जान
सफर में वाहन की फिटनेस सही न हो तो हादसे का खतरा कई गुना तक बढ़ जाता है।

अलीगढ़, जेएनएन। वाहन मंजिलों को तय करते हैं। सफर में वाहन की फिटनेस सही न हो तो हादसे का खतरा कई गुना तक बढ़ जाता है। ऐसे वाहनों से चालक ही नहीं, बल्कि उसमें सवार लोगों की जान भी जोखिम में पड़ जाती है। देश में अधिकांश दुर्घटनाएं वाहनों की जर्जर हालात के चलते होती हैं। आंकड़ों की बात करें तो कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 2.4 फीसद वाहनों की जर्जर हालत के चलते होती हैं। इससे हर साल हादसों में होने वाली मौतों का ग्राफ बढ़ रहा है। 

अफसरों की आंखें ही परखती वाहनों की फिटनेस 

जिले में वाहनों की फिटनेस परखने का इंतजाम नहीं है। आधुनिक मशीनों की जगह अफसरों की आंखें ही वाहन के फिट या अनफिट होने का प्रमाण पत्र दे रही हैं। वाहन में बिना हेड लाइट, बैक लाइट, इंडीकेटर, फॉग लाइट, रिफलेक्टर को जांचें परखे ही फिटनेस दी जा रही है। ऐसे में जर्जर व अनफिट वाहन बिना किसी रोक-टोक के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। जिले में इस साल 200 से अधिक सड़क हादसे हो चुके हैं। इनमें 236 लोगों की मौत व 322 लोग घायल हो चुके हैं। खास बात ये है कि वाहनों की फिटनेस जांच ही नहीं कराई जाती है।

सड़क पर दौड़ रहे कंडम व धुंआ उगलते वाहन 

शहर में कंडम हो चुके ऐसे तमाम वाहन सड़क पर धुंआ उगलते दौड़ रहे हैं। यातायात नियमों की अनदेखी, जर्जर सड़कें व ओवरलोड वाहन भी होने वाले हादसों के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। ऐसे वाहनों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। प्रदूषण जांच के नाम पर भी खानापूर्ति हो रही है। सिर्फ वाहन का नंबर बता देने भर से ही शुल्क लेकर प्रदूषण जांच प्रमाणपत्र हाथों हाथ जारी किया जा रहा है। आरटीओ विभाग व ट्रैफिक पुलिस अभियान चेकिंग के नाम पर खानापूर्ति करते हैं। जर्जर वाहनों पर कार्रवाई नहीं होती है।

20 हजार कंडम वाहन  

जिले भर में फिटनेस न कराने वाले करीब 20 हजार वाहनों को कंडम घोषित किया गया है। करीब 10 हजार आटो शहर में बिना किसी भय के सवारियों को इधर से उधर ले जाने में जुटे हैं। सबकुछ जानते हुए संबंधित अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। नियम है कि नए व्यावसायिक वाहन की फिटनेस दो साल में व उसके बाद हर साल फिटनेस की जांच कर प्रमाण पत्र जारी होना चाहिए। आरटीओ में दलालों के जरिये जुगाड़ कर बिना वाहनों की पड़ताल किए ही प्रमाणपत्र जारी कर दिए जाते हैं।  

फिटनेस के ये हैं नियम

वाहन की फिटनेस में हेड लाइट, बैक लाइट, फॉग लाइट, साइड लाइट, पार्किंग लाइट के अलावा रिफ्लेक्टर पट्टी लगी होनी चाहिए। स्कूलों के अलावा निजी व सरकारी वाहनों में इस तरह की कमियों को आसानी से देखा जा सकता है। रोडवेज की बसों की जर्जर हालत व भी बदतर हैं। बसों में खिड़कियों के शीशे, फॉग व बैक लाइट दुरुस्त नहीं होती है। फिर भी इन बसों को सड़क पर फर्राटा भरने की अनुमति मिल जाती है। 

ट्रैक्टर-ट्राली भी बन रहे मुसीबत 

ट्रैक्टर-ट्रॉली का प्रयोग कृषि कार्य में ही किया जा सकता है, लेकिन ये सड़क पर व्यावसायिक कामों में फर्राटे भरते नजर आते हैैं। इन वाहनों को नियंत्रित करना मुश्किल काम है। यही कारण है कि कई बार ट्रैक्टर-ट्राली चालक के नियंत्रण खोने से बड़े हादसे हो जाते हैं। रात में बिना किसी इंडीकेटर व सुरक्षा इंतजाम के जीटी रोड व हाईवे पर इनको फर्राटे भरता देखा जा सकता है। अधिकांश चालकों के पास ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं होता है।

अनफिट व कंडम वाहनों के जब्तीकरण के साथ ही चालान की कार्रवाई भी की जाती है। समय-समय पर चालकों को यातायात नियमों के पालन के लिए जागरूक किया जाता है। 

- केडी सिंह गौर, आरटीओ प्रशासन

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