Smart City : दो कश्तियों ने बढ़ाईं इंजीनियर साहब की उलझनें, विस्‍तार से जानिए Aligarh News

इंजीनियर साहब की उलझनें इन दिन बढ़ रही हैं। वजह हैं दो कश्तियां जिनमें वे सवार हैं। दोनों ही अलग-अलग दिशाओं में जा रही हैं। एक को संभालो तो दूसरी की पतवार छूटने का डर है। आदेश सरकार के हैं इसीलिए किसी एक को छोड़ भी नहीं सकते।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 11:59 AM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 11:59 AM (IST)
Smart City : दो कश्तियों ने बढ़ाईं इंजीनियर साहब की उलझनें, विस्‍तार से जानिए  Aligarh News
आदेश सरकार के हैं, इसीलिए किसी एक को छोड़ भी नहीं सकते।

अलीगढ़, जागरण संवाददता। इंजीनियर साहब की उलझनें इन दिन बढ़ रही हैं। वजह हैं दो कश्तियां, जिनमें वे सवार हैं। दोनों ही अलग-अलग दिशाओं में जा रही हैं। एक को संभालो तो दूसरी की पतवार छूटने का डर है। आदेश सरकार के हैं, इसीलिए किसी एक को छोड़ भी नहीं सकते। परेशानी ये है कि दोनों में तालमेल नहीं बन पा रहा। पार्किंग का ही मुद्दा ले लीजिए। एडीए ने जिन इमारतों के नक्शे बिना पार्किंग के पास किए थे, वहां आने वाले वाहनों ने सड़क को ही पार्किंग बना लिया है। सड़क नगर निगम की संपत्ति है। निगम ये नहीं चाहेगा कि उसकी संपत्ति पर अतिक्रमण हो। एडीए इसके लिए जिम्मेदार है। मजबूरी यह है कि दोनों ही विभागों के मुखिया (इंजीनियर साहब) एक ही हैं। जवाब मांगें भी तो किससे? न कहते बनता, न सुनते। इंजीनियर साहब भी कोई रास्ता नहीं निकाल पा रहे, न मशविरा ही ले रहे हैं।

साहब की व्यस्तता न बढ़ा दे परेशानी

शहरवासियों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का जिम्मा जिस महकमे का है, उसके अफसरों का व्यस्त रहना लाजिमी है। लेकिन, इतना भी क्या व्यस्त रहना कि फोन तक रिसीव न किया जाए। सफाई वाले महकमे में इन दिनों यही चर्चा चल रही है। इंजीनियर साहब महत्वपूर्ण काल ही रिसीव करते हैं। बाकियाें के मैसेज का भी जवाब नहीं दे रहे। अधीनस्थों की हालत पहले से खस्ता है, अब तो कार्यकारिणी सदस्य भी इस रवैये से उकता गए हैं। विरोध हो चुका है। विशेष अधिवेशन में इतनी समस्याएं गिनाई गईं कि मंच पर सबकी बोलती बंद हो गई। आरोप लगे तो शहर के मुखिया भड़क गए, फिर माहौल गरमा गया। भविष्य में भी आपत्ति जताने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं। इधर, आमजन कह रहे हैं कि दफ्तर में बैठकर योजनाओं का बखान करने से कुछ नहीं होगा, बाहर निकल कर शहर के हालात देखने चाहिए। तभी विश्वास बढ़ेगा।

कार्रवाई की होती तो बगले न झांकते

काम ईमानदारी से किया जाए तो किसी के आगे शर्मिंदा नहीं होना पड़ता। अब हरियाली वाले महकमे के अधिकारियों को ही लीजिए। महकमे के मंत्री जब मीडिया के सामने यूरिया की कालाबाजारी पर प्रदेश भर में कराए गए मुकदमे गिना रहे थे, तभी अलीगढ़ का मुद्दा उठ गया। मंत्रीजी से पूछ लिया कि अलीगढ़ में क्या कार्रवाई हुई? यहां भी बड़े पैमाने पर घपला हुआ था। फर्जीवाड़े में फर्में चिह्नित की गईं, मानक से अधिक यूरिया खरीदने वाले किसान भी छांट लिए गए। मंत्रीजी ने स्थानीय अधिकारियों की ओर देखा तो उनके सिर झुके हुए थे। बोले कि नोटिस ही दिए गए हैं। मंत्रीजी भी उनकी भावनाएं समझ गए और मुद्दे को टाल दिया। अधिकारी शुक्र मना रहे थे कि बात यहीं तक सीमित रही। आगे बढ़ती तो किसी को संतुष्ट नहीं कर पाते। क्योंकि, कोई ठोस कार्रवाई की ही नहीं गई। अब भी वे चिह्नित की गईं फर्में चल रही हैं।

विवादों में घिर रही स्मार्ट सिटी

स्मार्ट सिटी भी अब विवादों में घिर रही है। अधूरे और अनियोजित विकास कार्य तो इसकी वजह है हीं, प्रबंधन में भी सामंजस्य नहीं बन पा रहा। प्रबंधन से जुड़े एक पूर्व अधिकारी द्वारा इस्तीफा देने का मामला चर्चा में रहा था। अब जीएम पद पर रिटायर्ड चीफ इंजीनियर की नियुक्ति के बाद उन्हें दो माह बाद हटाना चर्चाओं में है। सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद कमिश्नर की संस्तुति पर नियुक्ति हुई थी। फिर इन्हें हटा दिया गया। बताते हैं कि वेतन भी नहीं दिया है। निर्माण कार्यों की बात करें तो मानक और गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। जबकि, नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी को स्मार्ट सिटी की जिम्मेदारी दे रखी है। बावजूद इसके स्मार्ट सिटी ने कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं की है। जनप्रतिनिधि भी इसके कार्यों में हस्तक्षेप करने से बच रहे हैं। एक ब्लैकलिस्टेड फर्म को लेकर आपत्ति जरूर जताई थी।

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