Aligarh-Palwal Road Bus Accident : बस के घिसे थे टायर, नियमों को ताक पर रख हो रहा था संचालन Aligarh News
लोधा क्षेत्र में अलीगढ़-पलवल मार्ग पर गांव करसुआ के पास शनिवार को हादसे का शिकार बनी हरियाणा डिपो की रोडवेज बस का संचालन नियमों को ताक पर रखकर किया जा रहा था। लंबे रूट की इस बस के टायर घिस चुके थे।
अलीगढ़, जेएनएन। लोधा क्षेत्र में अलीगढ़-पलवल मार्ग पर गांव करसुआ के पास शनिवार को हादसे का शिकार बनी हरियाणा डिपो की रोडवेज बस का संचालन नियमों को ताक पर रखकर किया जा रहा था। लंबे रूट की इस बस के टायर घिस चुके थे। सारसौल स्थित सेटेलाइट बस स्टैंड से करीब 45 सवारियों को लेकर फरीदाबाद डिपो की रोडवेज बस बल्लभगढ़ जा रही थी। बस के टायर घिसे हुए थे। इससे बेखबर चालक, परिचालक सवारियां बिठाकर बल्लभगढ़ रवाना हो गए। दूसरी बस, जो पलवल से अलीगढ़ आ रहे थी उसके भी टायर काफी घिस चुके थे। इसके बाद भी न तो जिम्मेदारों को इसकी फिक्र थी और न ही उसमें बैठने वाली सवारियों को यह अंदाजा था कि ऐसी हालत वाली बसों में वह कैसे गंतव्य तक पहुंच सकेंगे ? यह तो सिर्फ एक उदाहरण मात्र है। लेकिन लंबे रूट पर चलने वाली हरियाणा रोडवेज डिपों की तमाम बसें नियमों को ताक पर रखकर अलीगढ़-पलवल रूट पर रोजाना ही फर्राटा भर रही हैं। इसके बाद भी सब कुछ जानकर भी जिम्मेदार अंजान हैं। आए दिन हादसे हो रहे हैं, इसे गंभीरता से न लेकर यात्रियों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है।
विभागीय लापरवाही, सवारियों पर पड़ रही भारी
अधिकांश बसों में घिसकर सपाट हो चुके टायरों को रिमोल्ड करके दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है। ग्रिपिंग छोड़ चुके टायरों को रिमोल्डिंग के बाद फिर से लगा दिया जा रहा है। अगर जल्द ही इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो ये यह लापरवाही सफर करने वाली सवारियों के लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है। बसों के टायरों के घिस जाने व टायरों की कीमत ज्यादा होने के कारण उन पर रबड़ चढ़ा दी जाती है। ऐसे टायरों को आमतौर पर ट्रक, डंपर आदि वाहनों में लगाया जा सकता है, लेकिन सवारी गाड़ियों में इस तरह के टायर लगाना जान जोखिम में डालना है। हालांकि बहुत जरूरी होने पर इन टायरों को पीछे तो लगाया जा सकता है, लेकिन अगले टायरों में खतरनाक साबित हो सकते हैं। टायर फटने से कई बार दुर्घटनाएं हो चुकी है। इसके बावजूद भी रोडवेज प्रशासन गंभीर नहीं है। एक्सपर्ट के अनुसार रोडवेज बसों में लगने वाले टायर की की उम्र 70 हजार किलोमीटर चलने के बाद ही खत्म हो जाती है। इसके बाद इन टायरों को बदल दिया जाना चाहिए, फिर भी उन्हें नहीं बदला जाता है।
बसों के टायरों की उम्र पूरी होने पर उन्हें बदल दिया जाता है। जो टायर ठीक होते हैं केवल उन्हीं काे रिट्रेड कराया जाता है। वर्कशाप से बसों को पूरी जांच -पड़ताल के बाद ही रूट पर भेजा जाता है।
- मोहम्मद परवेज, आरएम रोडवेज अलीगढ़