इस बार भी नहीं लगेगा भुमियां बाबा मेला

श्रावण मास में विशेष धार्मिक महत्व रखने वाले ऐतिहासिक श्री सिद्धनाथ भुमियां बाबा आश्रम पर श्रावण मास में प्रत्येक सोमवार को लगने वाले सावन के मेले पर इस बार भी कोरोना का ग्रहण रहेगा।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Jul 2021 01:07 AM (IST) Updated:Fri, 23 Jul 2021 01:07 AM (IST)
इस बार भी नहीं लगेगा भुमियां बाबा मेला
इस बार भी नहीं लगेगा भुमियां बाबा मेला

अलीगढ़ : श्रावण मास में विशेष धार्मिक महत्व रखने वाले ऐतिहासिक श्री सिद्धनाथ भुमियां बाबा आश्रम पर श्रावण मास में प्रत्येक सोमवार को लगने वाले सावन के मेले पर इस बार भी कोरोना का ग्रहण रहेगा। वर्षों से बाबा के जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक की चली आ रही परंपरा पिछले वर्ष की भांति इस बार भी नहीं निभाई जा सकेगी। कोविड -19 की तीसरी लहर को लेकर मंदिर सेवा समिति ने श्रद्धालुओं के अपार सैलाब के आने की संभावनों को देखते हुए इस बार भी मेले को ब्रेक लगा दिया गया है। इसको लेकर समिति ने स्थानीय प्रशासन को अवगत कराते हुए पर्याप्त फोर्स की तैनाती कराने की भी मांग की है।

जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर गांव कन्होई में दिल्ली-हावड़ा रेलवे लाइन के किनारे श्री सिद्धनाथ भुमियां बाबा का आश्रम है। यहां रेलवे ट्रैक के बीच बना चमत्कारी कुंआ का जलाभिषेक का विशेष महत्व है। सावन मास के प्रत्येक सोमवार को हजारों श्रद्धालु आकर बाबा का जलाभिषेक करते हैं।

कोरोना महामारी के कारण प्रदेश सरकार ने इस बार मेलों के आयोजन पर रोक लगा दी है। भुमियां बाबा मंदिर की सेवा समिति ने भी निर्णय लिया है कि इस बार भी यहां सावन मेले का आयोजन नहीं होगा।

समिति के संरक्षक रवि कुमार सिंह ने बताया कि इस बार मंदिर के सेवादार व पुजारी ही कोरोना महामारी से निजात को श्रावण मास में विशेष पूजा- अर्चना करेंगे। उन्होंने बताया कि जनसैलाब की रोकथाम के लिए समिति ने एसडीएम प्रवीण यादव व सीओ विशाल चौधरी को पत्र देकर सावन के चारों सोमवार को पर्याप्त मात्रा में पुलिस बल की तैनाती की मांग की है। उन्होंने श्रद्धालुओं से घरों में रहकर ही पूजा-अर्चना करने की अपील की है।

बाबा का इतिहास

श्री सिद्धनाथ भुमियां बाबा आश्रम का इतिहास काफी पुराना है। मान्यता है कि भुमियां बाबा कन्होई गांव के सहारे एक झोपड़ी में रहते थे और यहीं उनका कुआ भी था। जहां बैठकर पूजा-अर्चना व तप किया करते थे । अंग्रेजी हुकूमत के समय दिल्ली-हावड़ा रेलवे ट्रैक का निर्माण कार्य शुरू हुआ तो बाबा के आश्रम के पास कुएं के ऊपर होकर रेलवे लाइन गुजरी। रेलवे अधिकारियों से बाबा के भक्तों ने रेलवे लाइन कुएं से अलग होकर बनाने की मांग की, लेकिन वे नहीं माने। कआं पाटकर रेलवे लाइन का काम शुरू करा दिया। अगले दिन कुंए से रेलवे लाइन उखड़ी मिली। यह सिलसिला कई दिनों तक चला, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी रेलवे के अधिकारी इस कुएं को पाट नहीं सके । फिर उन्होंने कुएं को बंद किए बिना ही लाइन डाल दी। फिर जैसे ही ट्रायल के लिए ट्रेन चली तो चमत्कारी कुएं के पास आकर अचानक बंद हो गई । रेलवे अधिकारियों के लाख प्रयासों के बाद भी जब ट्रेन टस से मस न हुई तो उन्हें गलती का एहसास हुआ और बाबा से क्षमा मांगते हुए उनकी पूजा-अर्चना की, जिसके बाद ट्रेन लाइन पर सरपट होकर दौड़ने लगी । तब से आज तक ट्रेन चालक आश्रम व कुएं के सामने सिर झुकाकर जरूर जाते हैं। बाबा के आश्रम में समाधि के अलावा तमाम देवी-देवताओं के मंदिर हैं।

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