प्रशासन की मंशा थी कि अयोध्‍या तक न पहुंचें अशोक सिंहल और इनकी जिद थी पहुंचने की, जानिए कैसे पहुंचे Aligarh news

श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए अपार श्रद्धा और आस्था है। लोग मंदिर बढ़चढ़ कर दान दे रहे हैं। हालांकि परिस्थितियां आज बिल्कुल विपरीत हैं। राम मंदिर आंदोलन के समय राम भक्तों में अथाह सैलाब था। रामभक्तों पर लाठियां चार्ज होती थीं उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता था।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Wed, 27 Jan 2021 05:52 AM (IST) Updated:Wed, 27 Jan 2021 08:22 AM (IST)
प्रशासन की मंशा थी कि अयोध्‍या तक न पहुंचें अशोक सिंहल और इनकी जिद थी पहुंचने की, जानिए कैसे पहुंचे Aligarh news
श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए अपार श्रद्धा और आस्था है।

अलीगढ़, जेएनएन : श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए अपार श्रद्धा और आस्था है। लोग मंदिर बढ़चढ़ कर दान दे रहे हैं। हालांकि परिस्थितियां आज बिल्कुल विपरीत हैं। राम मंदिर आंदोलन के समय राम भक्तों में अथाह सैलाब था। रामभक्तों पर लाठियां चार्ज होती थीं, उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता था, मगर आंदोलन के लिए उनके कदम पीछे कभी नहीं हटे। लोग आज उन्हें याद करते हैं। 

1989 में चरम पर था आंदोलन

विश्व हिंदू परिषद के सेवा विभाग के प्रांत प्रमुख सिद्धार्थ मोहन बताते हैं कि 1989 में राम मंदिर आंदोलन पूरे चरम पर था। पूरे देश में आंदोलन की हुंकार थी। पूरब से पश्चिम तक प्रभु श्रीराम का जनसैलाब उमड़ा करता था। ऐसे समय में विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल का अलीगढ़ आना हुआ। उस समय पुलिस उन्हें ढूंढ रही थी। पुलिस और प्रशासन की यह कोशिश थी कि वह अयोध्या किसी तरह से ना पहुंचे। क्योंकि अयोध्या में लाखों की संख्या में रामभक्तों का जमावड़ा रहता था। सड़क मार्ग से यदि वह अयोध्या जाते तो पुलिस और प्रशासन की निगाह पड़ जाती। इसलिए तय किया गया कि वह गोपनीय तरीके से अयोध्या पहुंचेंगे। उस समय सिद्धार्थ मोहन के पास बुलेट थी। नौजवानी का जोश था। उन्होंने सिंहलजी को बुलेट से अयोध्या पहुंचाने का निर्णय किया। तय हुआ कि गांव-गांव होकर निकलेंगे। क्योंकि मुख्य मार्ग से यदि जाना होगा तो किसी की भी निगाह पड़ सकती है। हालांकि, लंबी यात्रा होने के चलते वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने मना कर दिया। कहा, बुलेट से अलीगढ़ से अयोध्या जाना उचित नहीं होगा। 400 किमी से भी अधिक की दूरी पड़ेगी। मगर, अशोक सिंहल ने कह दिया कि वह बुलेट से ही जाएंगे। इसपर सिद्धार्थ मोहन अयोध्या की ओर निकल पड़े।

पहले पहुंचे एटा

सिद्धार्थ मोहन बताते हैं कि पहले एटा पहुंचे। यहां कार्यकर्ताओं के साथ गोपनीय बैठक की। राम मंदिर आंदोलन की तैयारियों के बारे में रणनीति बनाई गई। एक दिन एटा रुके। इसके बाद फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर होते हुए लखनऊ पहुंचे। सिद्धार्थ बताते हैं कि मुख्य मार्ग को छोड़ दिया था। जिससे उन्हें कोई पकड़ ना सके। वह गांव और पगड़डियों से जा रहे थे। ऐसे जगह पर बुलेट रोकते थे, जिससे कोई पहचान ना सके। तमाम जगह रास्ते में कुएं और हैंडपंप आदि पर पानी पीना पड़ा।

दो दिन में पहुंचे अयोध्या

दो दिन में बुलेट से अयोध्या पहुंचे। सिद्धार्थ बताते हैं कि अयोध्या की सीमा से सटे एक कार्यकर्ता के घर सिंहलजी रुके थे। चूंकि अयोध्या में जाते तो उन्हें पुलिस-प्रशासन पहचान जाता। इसके बाद सिद्धार्थ ने एक दिन आराम किया और फिर वह अलीगढ़ के लिए निकल गए। सिद्धार्थ कहते हैं कि उनके अंदर इतना जोश था कि वह बता नहीं सकते हैं। आज जब घर-घर राम भक्त की टोलियां निकल रही है तो पुराने दिन याद आ रहे हैं।

chat bot
आपका साथी