Salute to the courage : संक्रमित शवों का थामा हाथ तो छूटा घर का साथ Aligarh news
कुछ लोग ऐसे होते हैं दूसरों की चिंता अपने से ज्यादा करते हैं। जिंदगी बचाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जातै हैं। अपनी चिंता भूल जाते हैं। एेसे लोग नायक से कम नहीं लगते। जज्बे और हौसलों के किस्से उन्हें खास बना देते हैं।
गौरव दुबे, अलीगढ़ । कुछ लोग ऐसे होते हैं दूसरों की चिंता अपने से ज्यादा करते हैं। जिंदगी बचाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जातै हैं। अपनी चिंता भूल जाते हैं। ऐसे लोग नायक से कम नहीं लगते। जज्बे और हौसलों के किस्से उन्हें खास बना देते हैं। इन्हीं लोगों में दीनदयाल अस्पताल में शव वाहन चालक प्यारेलाल उर्फ पप्पू भी शामिल है। कोरोना महामारी के इस मुश्किल दौर में संक्रमितों से जब लोग दूरियां बना रहे हैं, तब पप्पू बिना किसी भय शवों को संभालता नजर आता है। इसके चलते करीब एक महीने उसका परिवार से साथ छूटा हुआ है।
एक महीने में 60 से ज्यादा शवों को एंबुलेंस में ले गए
रामबाग कालोनी निवासी पप्पू बताते हैं कि पिछले एक महीने मेें वो करीब 60 से 62 शवों को एंबुलेंस मेें रखकर ले जा चुके हैं। परिवार की चिंता मेें रात को सोने भी घर नहीं जाते, एक महीने से कभी शव वाहन तो कभी अस्पताल के ही गैराज में सो रहे हैं। घर पर पत्नी भी है लेकिन खाना सड़क किनारे ढकेल पर ही खाते हैं। दिन हो या रात अफसरों की एक फोन काल पर पप्पू सेवाएं देने के लिए हाजिर रहते हैं। ऐसा नहीं है कि इसके लिए उनको भारीभरकम राशि मिलती है, उनको मात्र साढ़े सात हजार रुपये मासिक मानदेय मिलता है। चार महीने पहले कोरोना काल में मकान मालिक ने घर खाली करवाया, तब भी हार नहीं मानी। रामबाग में दूसरा मकान लेकर गृहस्थी चलाई। अब ड्यूटी निभाते हुए परिवार से दूर रह रहे हैं। कोरोना काल मेें आर्थिक तंगी के चलते दो बेटे व दो बेटों की पढ़ाई तक छूट गई। मगर पप्पू अपनी खुशी व सेवाभाव से दिन-रात शवों को उनके अंतिम स्थान तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
तीमारदारों की सहते झड़प
पप्पू बताते हैं कि अक्सर कोरोना संक्रमित शव आने पर उसके स्वजन दूर खड़े हो जाते हैं। फिर लोग शव को गाड़ी के अंदर रखवाओ। अपने को खोने के गम में कभी-कभी आवेश में आकर तीमारदार बदसलूकी तक कर देते हैं, झड़प करने पर उतारू हो जाते हैं। मगर इस सबको दरकिनार कर उनकी मदद करते हैं। फिर शव को अंतिम स्थान तक पहुंचाते हैं।
पत्नी व बच्चों से फोन पर होती बात
पप्पू ने बताया कि कई-कई दिन तक बच्चों व पत्नी से बात नहीं करते। क्योंकि संक्रमित शव आदि की बात करने से उनकी भी टेंशन बढ़ती रहती है। इसलिए कुछ दिनों बाद बच्चों व पत्नी से फोन पर ही बात कर लेते हैं। कभी रुपये कम पड़ते हैं तो घर से खाना मंगा लेते हैं। तो पत्नी से दूर से ही बात हो जाती है। मगर संक्रमण फैलने के डर से घर नहीं जाते।
23 साल पहले आए शहर
45 वर्षीय पप्पू बताते हैं कि वे मूलरूप से अतरौली के तरैची गांव निवासी हैं। वहां उनका कोई घर नहीं है। पांच भाइयों में सबसे छोटे पप्पू के पास पैतृक खेती इतनी नहीं कि घर का खर्च चल सके। 23 साल पहले ही शहर आकर ड्राइविंग सीखी थी। पहले डेयरी और नगर निगम में स्वास्थ्य अधिकारी की गाड़ी चलाई। फिर अप्रैल में दीनदयाल अस्पताल आ गए। आउटसोर्सिंग कंपनी के जरिए यहां चालक की नौकरी मिल गई।