छह महीने में ही ठिकाने लगा करोड़ों का बजट, जांच बनी टेढ़ी खीर Aligarh news
प्रधानों के पूर्व होने पर पंचायतों में कुछ महीने के लिए प्रशासकों की तैनाती हुई थी। जिले के भी सभी ब्लाकों में सहायक अफसरों को प्रशासक बनाया गया लेकिन इन अफसरों ने महज छह महीने में ही करोड़ों के बजट को ठिकाने लगा दिया।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। प्रधानों के पूर्व होने पर पंचायतों में कुछ महीने के लिए प्रशासकों की तैनाती हुई थी। जिले के भी सभी ब्लाकों में सहायक अफसरों को प्रशासक बनाया गया, लेकिन इन अफसरों ने महज छह महीने में ही करोड़ों के बजट को ठिकाने लगा दिया। जरूरी कार्यों के आदेशों के बाद भी पंचायतों से सड़क, नाली, खड़ंजा के भुगतान हुए। कई पंचायतों में तो कमीशन के फेर में नियमों के खिलाफ भी काम होने से पहले ही भुगतान कर दिए। कुछ समय बाद पंचायतों में प्रधान नियुक्त हुए तो प्रशासकों के गोलमाल की पोल खुलनी शुरू हो गई। इस पर शासन स्तर से अधिक खर्च करने वाली पंचायतों में जांच के आदेश हुए। जिले में भी आधा दर्जन के करीब पंचायतें इस दायरे में आईं। अलग-अलग अफसरों को यहां जांच की जिम्मेदारी मिली। अब इस आदेश को हुए कई महीने बीत चुके हैं, लेकिन अब तक भ्रष्टाचार की यह जांच इन अफसरों के लिए टेड़ी खीर बनी हुई है।
सुविधा से खड़ी हुई टेंशन
आइजीआरएस की शिकायतों का गुणवत्ता परख निस्तारण सीएम योगी की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक हैं। इसी के चलते जिले के मुखिया भी इन शिकायतों को काफी गंभीरता से लेती हैं। वह हर महीने इनके निस्तारण की बैठक करती हैं। उन्होंने सभी विभागों के हाकिमों को स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं कि मौके का मुआयना करके ही रिपेार्ट लगाएं। किसी निस्तारण पर संदेह होता है तो वह अन्य विभागों के अफसरों से जांच भी कराती हैं, लेकिन जिले के अफसर इससे परेशान हैं। सबसे अधिक परेशानी शिकायतों की संख्या को लेकर हो रही है। लोग एक ही शिकायत को तहसील, कलक्ट्रेट व अन्य कई अफसरों को दे देते हैं। ऐसे में कई बार एक ही शिकायत तीन-चार बार आनलाइन दर्ज हो जाती हैं। जिला मुख्यालय पर बैठने वाले कर्मी भी फरियादियों से लेन-देन कर सीधे भी शिकायतें दर्ज कर लेते हैं। इससे संख्या और बढ़ जाती है। यही सुविधा अफसरों के लिए टेंशन बन रही है।
जिम्मेदारी तो तय होनी ही चाहिए
परफार्मेंस ग्रांट से लाभान्वित पंचायतों में काम करने वाले चार ठेकेदारों को ब्लैक लिस्टेड कर विकास पुरूष ने स्पष्ट कर दिया है कि घटिया निर्माण कतई बर्दास्त नहीं होगा। हालांकि, अभी भी लोगों के मन सवाल यह है कि आखिर ऐसे हालात ही क्यों बने ? जिले से लेकर पंचायत तक के जिम्मेदार महीनों से आंख बंद कर क्यों देखते रहे। क्या ब्लाक स्तरीय अफसरों की जिम्मेदारी नहीं थी कि करोड़ों रुपये के निर्माणों कार्यों की सतत निगरानी की जाए? तीनों पंचायतों के लिए जिम्मेदार बड़े हाकिमों ने भी इन पंचातयों का निरीक्षण तय क्यों नहीं किया। पता होते हुए भी सब कुछ प्रधान व सचिवों के ऊपर ही क्यों छोड़ा गया। अगर घटिया निर्माण के लिए ठेकेदार दोषी हैं तो सिस्टम भी कम लापरवाह नहीं है। अगर अफसर शुरुआत से ही सक्रियता दिखाते तो यह नौबत ही नहीं आती। अगर अफसरों को हकीकत में इन पंचायतों का विकास का माडल बनाना है तो फिर सक्रियता बढ़ानी होगी।
चुगली ने अरमानों पर फेरा पानी
हर छोटे साहब की इच्छा होती है कि उन्हें तहसील का हुक्मरान बनाया जाए। कई अफसर इसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं। जिले में भी ऐसे अफसर हैं जो पिछले डेढ़-दो साल से तहसील का हुक्मरान बनने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। जिला मुख्यालय पर रहकर भी वह मुखिया के हर आदेश का पूरी निष्ठा से पालन करते हैं। अब कुछ दिन पहले मुखिया ने जिले की तहसीलों में बदलाव किया। इनमे तीन छोटे हुक्मरानों को इधर से उधर किया गया। इनमें एक नाम जिला मुख्यालय पर तैनात एक अन्य छोटे साहब का भी था। मुखिया इनके काम से संतुष्ट हैं। ऐसे में उन्हें एक महत्वपूर्ण तहसील की जिम्मेदारी मिलने वाली थी, लेकिन आदेश होने से पहले ही एक अन्य अफसर ने इनकी चुगली कर दी। इससे छोटे साहब के अरमानों पर पानी फिर गया। वहीं, गैर जिले से आने वाले हुक्मरान को पहली ही बार में नई तहसील में तैनाती मिल गई।