मिट्टी की दीवारों से बने मराठों के किले को जीतने में अंग्रेजों के छूट गए थे छक्के aligarh news
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के संस्थापक सर सैयद अहमद को अंग्रेजों से यह किला मिला जो आज एएमयू के संरक्षण में है। किले की कमान मीर सादत अली के हाथों में थी। माना यही जा रहा है कि अली और गढ़ (किला) को जोड़ते हुए शहर का नाम अलीगढ़ पड़ा।
अलीगढ़ (जेएनएन)। मुगल बादशाहों के दौर में देश में किले तो बहुत बने, लेकिन अलीगढ़ का किला खुश खास था। इसकी दीवार ईंट-पत्थरों की बजाय मिट्टी से बनाई गईं, जिसे न तो तोप के गोले भेद पाए और न सैनिक ही गिरा पाए। फ्रेंच इंजीनियरों की मदद से मराठों द्वारा किला बनवाया गया। ये दीवर आज भी किले के गौरवशाली इतिहास की गवाह है। किले की दीवार ही थीं कि जिसके चलते किले पर फतह पाने में अंंग्रेजों के छक्के छूट गए थे। अंग्रेजों ने मराठों पर जीत हासिल की तो पूरा गुस्सा किले पर उतारा। किले के अंदर के निर्माण को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के संस्थापक सर सैयद अहमद को अंग्रेजों से यह किला मिला, जो आज एएमयू के संरक्षण में है। किले की कमान मीर सादत अली के हाथों में थी। माना यही जा रहा है कि अली और गढ़ (किला) को जोड़ते हुए शहर का नाम अलीगढ़ पड़ा। पहले शहर कोल के नाम से जाना जाता था। एएमयू ने किले में शानदार बॉटनीकल गार्डन बनाया है। जहां औषद्यीय पौधों पर शोध भी हो रहा है। किले से किसी बौना चोर की कहानी भी जोड़ी जाती है, हालांकि इतिहासर मेें इसका कोई प्रमाण नहीं है।
किलेे को दी मजबूती
1524 25 के दौरान इब्राहिम लोदी के कार्यकाल में किले की नींव रखी गई। तब किला इस स्वरूप में नहीं था मुगलों की छोटी गढ़ी के रूप में जाना जाता था। मुगलों की सेना यहां ठहरती थी। मराठों की नजर इस किले पर थी। उन्होंने मुगलों को मात देकर इसे जीता। एएमयू के इतिहास के जानकार डॉ. राहत अबरार बताते हैं कि किले का मराठा शासक ने यूरोपीय स्थापत्य कला में गढ़ने के लिए 1759 में किले का निर्माण कराया। उन्होंने इसकी जिम्मेदारी फ्रेंच कमांडर काउंट बोनोइट और कुलीयर पोरोन को दी। फ्रेंच कमांडेंट कुलीयर पेरोन एएमयू की बिल्डिंग में रहते थे। इस कारण पूरे इलाके को साहब बाग के नाम से भी जाना जाता था। फ्रेंच इंजीनियर की मदद भी ली गई थी। किले के चारों ओर दीवार बनाई गई , ताकि कोई आसानी से अंदर ना आ सके। तोप के गोलों से बचाने के लिए मिट्टी की दीवार बनाई गई। यही इसकी मजबूती थी। मुख्य गेट के दोनों तरफ बीस से अधिक तोप तैनात थी, जिसके निशान आज भी हैं। अंग्रेजों ने किले के अंदर अन्य भवनों के तहस -नहस कर दिया था। शस्त्रागार आज भी सुरक्षित है।
दर्ज हैं ब्रिटिश अफसरों के नाम
चार सितंबर 1803 में ब्रिटिश जनरल लेक ने अलीगढ़ किले पर आक्रमण किया। कई दिनों तक युद्ध चला। अंग्रेजों के तमाम सैनिक मारे गए। इसके बाद अंग्रेज किले पर फतह पाने में सफल हुए। युद्ध में मारे गए ब्रिटिश अफसरों के नाम यहां के शिलालेख पर आज भी दर्ज हैं। कालांतर में अलीगढ़ किला बोना चोर का किला हो गया। एएमयू की देख रेख में होने के कारण इसे एएमयू किला भी कहा जाता है।
अंग्रेजों से सर सैयद को मिला किला
किले के एएमयू के अधीन आने के दो कारण पता चलते हैं। पहला अंग्रेजों ने सर सैयद को दान में किला दिया था। दूसरा खरीदा था। खरीदने वाली बात सही प्रतीत नहीं होती। इसकी वजह यह है कि उस समय सर सैयद के पास इतना पैसा नहीं था। 1970 के दशक में किले की खाई में नौका विहार होती थी। राम गंगा कैनाल से निकली नहर से पानी आता था। पानी की आपूर्ति न होने के कारण नौका विहार भी बंद करा दी गई। किले को पर्यटन के लिए तैयार किया जा सकता है। इसके लिए काम करने की जरूरत है।