स्वजन गिड़गिड़ाए, डाक्टर नहीं आए, एंबुलेंस में ही मरीज की मौत

दीनदयाल कोविड अस्पताल में निजाम भले ही बदल गया मगर दुर्भाग्य से व्यवस्था नहीं बदली है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 05 May 2021 09:24 PM (IST) Updated:Wed, 05 May 2021 09:24 PM (IST)
स्वजन गिड़गिड़ाए, डाक्टर नहीं आए, एंबुलेंस में ही मरीज की मौत
स्वजन गिड़गिड़ाए, डाक्टर नहीं आए, एंबुलेंस में ही मरीज की मौत

जासं, अलीगढ़: दीनदयाल कोविड अस्पताल में निजाम भले ही बदल गया, मगर दुर्भाग्य से व्यवस्था नहीं बदली हैं। बुधवार को फिर मानवीय संवेदना व डाक्टरी पेशे को शर्मशार करने वाली घटना सामने आई। जेडी कोविड हास्पिटल से रेफर मरीज एंबुलेंस में ही तड़पता रहा, मगर उसे कभी बेड, कभी आक्सीजन तो कुछ और समस्या बताकर भर्ती नहीं किया। मरीज की पत्नी और बेटा चिल्लाते रहे, गुहार लगाते रहे, मगर किसी की संवेदना नहीं जागी। देखते ही देखते मरीज ने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया। यह इलाज के अभाव में मरीज की मौत नहीं थी, बल्कि उस व्यवस्था की मौत थी, जिसे दुरुस्त बताकर अधिकारी रोज अपनी पीठ थपथपाते हैं।

ये था मामला

तमोलीपाड़ा के सुरेंद्र सिंह श्रीवास्तव की छर्रा अड्डे पर बेग की दुकान है। कुछ दिन से उनकी तबीयत खराब थी। मंगलवार सुबह सीटी स्कैन कराया तो फेफड़ों में संक्रमण आया। स्वजन ने उन्हें भांकरी के जेडी हास्पिटल में भर्ती करा दिया। उनकी तबीयत में कुछ सुधार था। स्वजन के अनुसार इसके बाद से डाक्टर ने उन्हें सुरेंद्र से मिलने नहीं दिया। बुधवार सुबह सूचना दी गई कि आपके मरीज की तबीयत बिगड़ रही हैं, उन्हें रेफर करना पड़ेगा। दोपहर करीब डेढ़ बजे निजी एंबुलेंस (ललित एंबुलेंस सेवा) से मरीज को दीनदयाल अस्पताल लेकर पहुंचे। यहां हेल्प डेस्क पर पहुंचकर मरीज को भर्ती करने की मांग की।

स्वजन को दौड़ाते रहे डाक्टर

आरोप है कि हेल्प डेस्क पर नियुक्त डाक्टर ने मरीज की सेहत के बारे में जाने बिना ही कह दिया कि-बेड नहीं है, कहीं और ले जाओ। किसी तरह स्वजन को बेड होने की जानकारी मिली तो डाक्टर ने सीएमएस के आदेश का हवाला दिया। फिर बोला, आक्सीजन नहीं है, इसलिए भर्ती नहीं कर सकते। मरीज की पत्नी ज्योति, बेटा आयुष व अन्य स्वजन परेशान हो गए। जैसे-तैसे खुद ही आक्सीजन सिलिडर की व्यवस्था की। डाक्टर को जाकर बताया कि सिलिडर की व्यवस्था हो गई है। तब भी, डाक्टर ने मरीज को देखने या भर्ती करने की कोई कोशिश नहीं की। बोला, बिना फ्लो मीटर के सिलिडर कैसे चलेगा? मां-बेटे डाक्टर के सामने गिड़गिड़ाए कि पहले भर्ती करके इलाज तो शुरू कर दीजिए, उनकी जान निकली जा रही है। अफसोस, डाक्टर पर कोई फर्क नहीं पड़ा। मां भी बिलख-बिलखकर रोने लगी। कहते हैं न जहां पर जब मानवता मर जाती है, तो विलाप से किसी का दिल नहीं पसीजता। समय (गोल्डन आवर) गुजरता जा रहा था, सुरेंद्र की सांसें उखड़ रही थीं। पत्नी और बेटा बदहवास हालत में चिल्लाए जा रहे थे कि कोई कुछ तो करो, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। इस बीच डाक्टर की शिफ्ट खत्म हो गई और वह बिना बताए वहां से चला गया। उसके काफी देर बाद आए दूसरे डाक्टर ने भी सुध नहीं ली। अंतत: करीब साढ़े तीन बजे सुरेंद्र ने एंबुलेंस में ही तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया। स्वजन का आरोप है कि जिस समय मरीज की सांसें उखड़ रही थीं, उस समय डाक्टर अपनी कुर्सी पर बैठा किसी दूसरे मरीज का डेथ सर्टिफिकेट बना रहा था।

स्वजन ने किया हंगामा

मरीज की बिना इलाज के ही मौत से स्वजन बौखला गए। बदहवास हालत में उन्होंने हंगामा काटना शुरू कर दिया। स्टाफ को खूब उलाहना दिया, मगर वे बगलें झांकते नजर आए। सूचना मिलने पर पुलिस भी आ गई। स्वजन को समझाकर हेल्प डेस्क से दूर ले जाया गया। सुरेंद्र की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी और बेटा अवाक रह गए, उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा था कि कुछ देर पहले तक इशारों में इलाज की बात कर रहे सुरेंद्र नहीं रहे। बेटा उद्वेलित हुए जा रहा था। मां से बार-बार कह रहा था कि पापा नहीं मर सकते। यह ²श्य देख हर कोई अस्पताल के सिस्टम को कोसता नजर आया। वहीं, रोते-बिलखते स्वजनों का गुस्सा उस समय और बढ़ गया, जब मृत्यु के कुछ देर बाद ही आक्सीजन का एक ट्रक वहां पहुंचा। बेटे ने स्ट्रेचर लगाकर ट्रक का रास्ता रोकने का प्रयास किया। पुलिस ने डांटा और समझाया कि अंदर बहुत सारे आपके जैसे मरीज हैं, जिनकी जिदगी इस आक्सीजन से बचेगी। यह सुनकर स्वजन वहां से हट गए। पुलिस ने शव को निजी एंबुलेंस से ही मुक्तिधाम भिजवा दिया।

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जेडी हास्पिटल ने बिना कंट्रोल रूम या हमसे कोआर्डिनेट किए बगैर ही गंभीर मरीज को रेफर कर दिया। गंभीर मरीजों की भर्ती करने के लिए बेड, आक्सीजन, वेंटीलेटर की व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसे ही मरीज भर्ती नहीं किया जा सकता। रही बात कि गंभीर मरीज को गोल्डन आवर में इलाज देने की तो वह एक्सीडेंट के मामले में लागू होता है। इस मरीज ने अस्पताल आने के कुछ मिनट बाद ही दम तोड़ दिया।

- डा. वीके सिंह, सीएमएस

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