अलीगढ़ में सपा की राजनीति : जातीय समीकरणों के साथ दौड़ी साइकिल

राजनीति में जातीय समीकरणों के साथ शह और मात का खेल चलना नई बात नहीं है। अलीगढ़ में भी चुनावी शतरंज पर जातीय बिसात बिछाई जा रही है। मोदी लहर में सत्ता से दूर हुई सपा पुन सरकार बनाने की कोशिश में है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Thu, 15 Apr 2021 11:18 AM (IST) Updated:Thu, 15 Apr 2021 11:18 AM (IST)
अलीगढ़ में सपा की राजनीति : जातीय समीकरणों के साथ दौड़ी साइकिल
राजनीति में जातीय समीकरणों के साथ शह और मात का खेल चलना नई बात नहीं है।

अलीगढ़, जेएनएन। राजनीति में जातीय समीकरणों के साथ शह और मात का खेल चलना नई बात नहीं है। अलीगढ़ में भी चुनावी शतरंज पर जातीय बिसात बिछाई जा रही है। ''मोदी लहर'' में सत्ता से दूर हुई सपा पुन: सरकार बनाने की कोशिश में है। उन कड़ियों जोड़ा जा रहा है, जिनसे वोट बैंक बढ़ने की जरा भी उम्मीद है। कांग्रेस से रूठे नेता चुनावी शतरंज पर फिट बैठ रहे हैं। पूर्व सांसद चौ. बिजेंद्र सिंह भी इनमें से एक हैं, जिनका अपना जाट वोट बैंक है। टप्पल की किसान पंचायत में भीड़ जुटाकर ये साबित भी कर दिया। कांग्रेस के कद्दावर नेता अश्वनी शर्मा भी साइकिल पर सवार हो गए। उनके जरिए ब्राह्मण वोट पर निशान साधने की तैयारी है। 33 साल कांग्रेस में लंबी पारी खेल चुके अश्वनी ब्राह्मणों पर अत्याचार का हवाला देकर इस समाज को एकजुट करने के प्रयास में हैं। इस रणनीति से सपा कितनी मजबूत होगी, ये वक्त ही बताएगा।

पार्किंग ने बढ़ा दी उलझनें

दो कश्तियों पर सवार ''विकास पुरुष'' की उलझनें इन दिनों बढ़ गई हैं। मुद्दा ही ऐसा है कि न संभलते बनता, न संभालते। पार्किंग की अनदेखी कर एडीए ने इमारतों के नक्शे पास कर दिए। जहां थीं, वहां अब दफ्तर, दुकानें खुल चुकी हैं। पार्किंग इमारतों के बाहर नालों को पाटकर बना दी गईं। ये नाले नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, जिन पर किसी तरह का अतिक्रमण नियम विरुद्ध है। बीते साल निगम ने एडीए को पत्र लिखकर ऐसी इमारतों का ब्यौरा मांगा था, जहां पार्किंग नहीं है। कार्रवाई को भी कहा गया। दुविधा ये है कि अब दोनों ही विभागों के मुखिया ''विकास पुरुष'' हैं। न एडीए से कहते बनता, न निगम ही कोई ठोस कदम उठा पा रहा है। नालों पर पार्किंग से यातायात व्यवस्था तो ध्वस्त हो ही रही है, ड्रेनेज सिस्टम भी लड़खड़ा रहा है। ऐसे हालातों में कोई रास्ता तो निकालना होगा।

तालाबों पर भी ध्यान दो सरकार

सरकारी जमीनों काे कब्जा मुक्त कराने के लिए प्रशासन ने पूरी ताकत झौंक दी है, लेकिन तालाबों की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा। ये भी सरकारी संपत्तियां हैं, जो महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं के भरोसे जल संरक्षण के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। सरकार भी इन्हें बचाने के समय-समय पर दिशा-निर्देश देती है। लेकिन, सरकारी महकमों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा। तालाबों से जुड़े जिन मामलों में मुकदमे दर्ज हुए थे, वे मजबूत पैरवी न होने से कमजोर पड़ रहे हैं। कुछ ही मामले कोर्ट तक पहुंच पाते हैं, बाकी थानों में ही दम तोड़ देते हैं। तालाबों की क्षमता बढ़ाने के भी दावे किए गए थे, लेकिन प्रयास अभी तक शुरू नहीं हो सके। ज्यादातर तालाब कचरे के ढेर में तब्दील हो चुके हैं। मानो किसी को इनकी फिक्र ही नहीं। वर्षा ऋतु में यही तालाब ओवरफ्लो होकर फिर सड़कों पर बहेंगे। 

भारी न पड़ जाए लापरवाही

कोराेना संक्रमण फैलने की एक बड़ी वजह लापरवाही है, जो जाने-अनजाने में बरती जा रही है। कोरोना की पहली लहर इसी लापरवाही से आयी थी। अब दूसरी लहर उठने की वजह भी यही है। तय गाइडलाइन का पालन न करके हम इस महामारी को हवा दे रहे हैं। बाजार, मंडियों में बिना एहतियात के जुट रही भीड़ को उनकी ओर बढ़ रहे खतरे का अंदाजा नहीं है। न ही उन लोगों को, जो सामुहिक आयोजन कर रहे हैं। राजनीतिक दल भी कोरोना के खतरे को दरकिनार कर वोट बैंक बढ़ाने में जुटे हैं। गोष्ठियां, सभाएं हो रही हैं, चौपालें सज रही हैं। इन आयोजनों में न मास्क नजर आते, न शारीरिक दूरी। सैनिटाइजर का उपयोग भी यदाकदा ही होता है। खतरे का एहसास तो तब होता है, जब शरीर में बीमारी घर कर जाती है। तब सारी गाइडलाइन याद आने लगती हैं। बीमारी को पनपने से पहले इससे निपटने के उपाय करने ही होंगे।

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