SP Kisan Panchayat in Aligarh : ये परीक्षा की भी घड़ी थी
टप्पल में सपा मुखिया अखिलेश यादव की हुई सभा का परिणाम क्या रहेगा ये तो भविष्य ही बताएगा लेकिन इस परीक्षा में बड़े मियां यानि पूर्व सांसद चौ. बिजेंद्र सिंह जरूर पास हो गए। उनके लिए यह परीक्षा की घड़ी थी।
अलीगढ़, जेएनएन। टप्पल में सपा मुखिया अखिलेश यादव की हुई सभा का परिणाम क्या रहेगा ये तो भविष्य ही बताएगा लेकिन इस परीक्षा में बड़े मियां यानि पूर्व सांसद चौ. बिजेंद्र सिंह जरूर पास हो गए। उनके लिए यह परीक्षा की घड़ी थी। क्योंकि तीन माह पहले ही वह कांग्रेस का दामन छोड़कर साइकिल पर सवार हुए थे। इस कारण सपा ही नहीं कांग्रेसियों की भी उन पर नजर थी। जाटलैंड पर वह जितना भरोसा करते हैं भीड़ ने भी उसे कायम करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। जनता के बीच रहकर जिस तरह की राजनीति के लिए वह जाने जाते हैं , उसे उन्होंने कांग्रेस छोड़ने के बाद कायम रखा। अन्य नेताओं के लिए भी यह किसी प्रेरणा से कम नहीं है। 2024 के चुनाव पर नजर गढ़ाए बड़े मियां के लिए यह सभा टानिक का काम तो कर सकती है, लेकिन चुनौती कम नहीं हैं। इसके लिए अभी बहुत पापड़ बेलने होंगे।
फसल चक्र कर रहे याद
खरीफ और रबी की फसल क्या होती हैं? कब बोई और काटी जाती हैं। किसान से बेहतर शायद ही कोई जाने। लेकन कृषि काूननों को लेकर हो रहे आंदोलन के बाद तो इसका ज्ञान नेताजी भी ले रहे हैं। फसलों के नाम से लेकर बाजार कीमत तक उन्हें मुह जुबानी याद हैं। किसानों के बीच जाने से पहले इसकी तैयारी भी करते हैं, ताकि खरीफ की जगह रबी की फसल का नाम जुबान पर न आ जाए। टप्पल में किसानों से रूबरू होने आए अखिलेश यादव भी फसलों का नाम लेना नहीं भूले। धान, मक्का व आलू के भाव गिना दिए। नेताओं के लिए ये ज्ञान की बात हो सकती है,लेकिन किसानों के लिए अच्छी बात है। चलो इसी बहाने उनकी बात तो होने लगी। सभी दलों को समझना होगा कि किसान केवल चुनावी समय में याद करने वाला वोटर नही, बल्कि देश की अर्थव्यस्था की रीढ़ भी है।
ये तो हठधर्मिता है
जेएन मेडिकल कालेज में चार दिन पहले डाक्टर और तीमारदार के बीच हुई मारपीट को कतई उचित नहीं ठहरया जा सकता। अस्पतालों में ऐसी घटनाओं की कोई जगह भी नहीं है। इस घटना में नामजद तीन आरोपितों में से दो ने कोर्ट में सरेंडर कर भी कर दिया। मुकदमें में संगीन धाराएं ऐसी नहीं थी जिससे उन्हें जेल भेजा जाता। एक अन्य आरोपित को भी पुलिस नोटिस दे चुकी है। इसी आधार पर आरडीए के अध्यक्ष ने हड़ताल वापस लेने का एलान कर दिया। लेकिन विपक्षी गुट को ये बात रास नहीं आई। वो इसी जिद पर अड़ा हुआ है कि सभी पकड़े जाएं। अगर तीसरे आरोपित को पुलिस पकड़ भी ले तो तब भी उसे जेल नहीं भेजा सकता। हड़ताल को जारी रखने वाले डाक्टरों को इस बात को समझना होगा। आपसी राजनीति से किसी को फायदा हो सकता है लेकिन हठधर्मिता से नुकसान मरीजों का ही होता है।
हमें नाए कोई पूछ रहौ
पंचायत चुनाव का बिगुल भले ही न बजा हो लेकिन गांव-गांव में चुनावी सोर खूब है। जब से आरक्षण लागू हुआ है दावेदार और उनके समर्थकों का जोश सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है। सबसे खुश तो ऐसे दावेदार हैं जिन्होंने चुनाव लड़ने के बारे में सोचा भी नहीं था, लेकिन आरक्षण व्यवस्था ने उन्हें मैदान में लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसी पंचायतों में चुनावी सोर में शायद ही कमी आइ हो लेकन आवाभगत में समर्थकों को मायूसी झेलनी पड़ सकती है। इसकी चर्चा शुरू हो गई है। शनिवार को पं. दीनदयाल अस्पताल में इलाज कराने आए मरीजों के तीमारदार फुरसत के पलों में कुछ ऐसी ऐसी ही गुप्तगूं कर रहे थे। एक बुजुर्ग का कहना था कि पड़ोसी गांव के समर्थकों की जो मौज है वो हमारे यहां नहीं हैं। वहां तौ सबकुछ मिल रहौ है। हमारे यहां नहीं। दूसरे लोग भी उनकी बातों का समर्थन करते दिखे।