आज से गूंजेंगे टेसू-झांझी के गीत

आज के बदलते परिवेश व डिजिटल युग में टेसू व झांझी इतिहास की एकधुंधली कहानी बनकर रह गई है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 12:52 AM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 12:52 AM (IST)
आज से गूंजेंगे टेसू-झांझी के गीत
आज से गूंजेंगे टेसू-झांझी के गीत

अलीगढ़ : आज के बदलते परिवेश व डिजिटल युग में टेसू व झांझी इतिहास की एक धुंधली कहानी बनकर रह गई है। हालांकि, विलुप्त हो रही इस प्राचीन परंपरा को आज भी देहात क्षेत्र के बच्चे इस प्रचलित प्रथा को जीवित बनाए हुए हैं।

आज नवरात्रि समापन से घर-घर टेसू-झांझी का पूजन शुरू हो जाएगा। पूर्णिमा को धूमधाम से टेसू व झांझी का विवाह संपन्न कराने के बाद दोनों का गंगा तट या नहर में जाकर विसर्जन कर दिया जाएगा। शाम होते ही बच्चों की टोलियां हाथों में टेसू और झांझी को लेकर गली मोहल्लों में 'मेरा टेसू यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा', 'टेसू रे, टेसू घंटा बजैयो, नौ नगरी दस गांव बसइयो' जैसे तुकबंदी से गाए जाने वाले गानों की धूम देखने को मिलेगी। छोटे-छोटे बच्चे घर-घर दस्तक देकर गीत गाते हुए बदले में अनाज व पैसा मांगते हैं।

ऐसा होता है टेसू

तीन लकड़ियों को जोड़कर एक ढांचा बनाया जाता है, जो देखने में मनुष्य की आकृति का खिलौना होता है। बीच में दीपक, मोमबत्ती रखने का स्थान होता है। कहीं-कहीं टेसू रामलीला में रावण के पुतला दहन से जलने वाली लकड़ी से बनाया जाता है। केवल टेसू का सिर बनाया जाता है उस पर गेरू, पीली मिट्टी, चूना और काजल से रंगाई, पुताई की जाती है।

झांझी की आकृति

झांझी मिट्टी की रंग-बिरंगी एक छोटी मटकीनुमा होती है, जिसमें कई छेद करके अनेक डिजाइन में बनाए जाते हैं। इसमें थोड़ा रेत या राख भर कर दीपक रखा जाता है। रात के अंधेरे में छिद्रों में छन-छनकर बाहर आता प्रकाश उड़ने वाली राख के साथ बेहद मनभावन लगता है। इसे झांझी का हंसना कहा जाता है।

टेसू की मान्यता व कहानी

टेसू की उत्पत्ति और इसकी मान्यता के लिए विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। मान्यता है कि टेसू का आरंभ महाभारत काल से हुआ था। पांडवों की माता कुंती ने सूर्य उपासना व तपस्या के दौरान वरदान से कुंवारी अवस्था में ही दो पुत्र बब्रुवाहन व दानवीर कर्ण के रूप में जन्म दिया था। बब्रुवाहन को कुंती लोक लाज के भय से जंगल में छोड़ आई थी। वह बड़ा ही विलक्षण बालक था। सामान्य बालक की अपेक्षा दुगनी रफ्तार से बढ़ने लगा। कुछ सालों में ही उसने उपद्रव करना शुरू कर दिया। पांडव उससे बहुत परेशान रहने लगे तो सुभद्रा ने भगवान कृष्ण से कहा कि वे उन्हें बब्रुवाहन के आतंक से बचाएं। भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन काट दी, परंतु बब्रुवाहन अमृतपान कर लेने से मरा नहीं। तब कृष्ण ने उसके सिर को छैंकुर के पेड़ पर रख दिया। फिर भी वह शांत न हुआ तो श्रीकृष्ण ने अपनी माया से झांझी को उत्पन्न कर टेसू से उसका विवाह रचाया।

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