स्मार्ट सिटी ने बांट दिया शहर

तालों की इस नगरी में स्मार्ट सिटी के कदम क्या पड़े शहर का बंटवारा कर दिया।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 27 Oct 2021 08:36 PM (IST) Updated:Wed, 27 Oct 2021 08:36 PM (IST)
स्मार्ट सिटी ने बांट दिया शहर
स्मार्ट सिटी ने बांट दिया शहर

लोकेश शर्मा, अलीगढ़: तालों की इस नगरी में 'स्मार्ट सिटी' के कदम क्या पड़े, शहर का बंटवारा हो गया। एक शहर पुल के पार, जहां वीवीआइपी मूवमेंट रहता है और दूसरा इधर, जो पुराने बाजार-मंडियों के लिए चर्चित है। ऐतिहासिक घंटाघर दोनों हिस्सों में है। एक विकसित हो गया, दूसरा अस्तित्व बचाने की जिद्दोजहद कर रहा है। वीवीआइपी मूवमेंट वाले हिस्से की तरक्की देख बाजार-मंडियां खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। भीड़भाड़, ट्रैफिक, जाम की समस्याओं से जूझना जो पड़ रहा है। प्रबंधन के पक्षपात की हद तो देखिए, दिक्कतों से जूझ रहे पुराने शहर में कराए गए विकास कार्य मानकों पर खरे नहीं उतर पा रहे। जो सड़कें बनाई गईं, वे बारिश में धुल गईं। गड्ढा मुक्त सड़क के अभियान में औपचारिकता ही निभाई गई। न सफाई व्यवस्था पटरी पर आ सकी, न ही पथ प्रकाश को लेकर कोई ठोस कदम उठाए गए, जबकि कागजों पर सब कुछ ठीक है।

मौन रहे मुखिया, साहब छोड़ गए सदन

'विकास पुरुष' ने जिस खाई को पाटकर 'इंजीनियर साहब' के लिए रास्ता बनाया था, वो खाई फिर गहरी होती जा रही है। रास्ते में दरार भी पड़ने लगी हैं। ऐसी परिस्थितियों में 'जनहित' के लिए तय किया सफर मुश्किल भरा साबित हो रहा है। 'सदन' में पिछले दिनों हुए हंगामे ने यह साबित भी कर दिया। 'सदन' तो सड़क, सफाई, पानी और पथ प्रकाश की मुश्किलें आसान करने के लिए जुटा था, लेकिन मुद्दा कुछ और ही छिड़ गया। 'सदन' के सदस्यों का प्रस्ताव 'इंजीनियर साहब' को नहीं भाया। उनकी आपत्ति जायज थी। घूमने-फिरने की स्वीकृति सदस्यों के लिए थी, परिवार के लिए नहीं। मगर, सदस्यों को कौन समझाए। मंच पर बैठे 'मुखिया' सदस्यों के आगे पहले ही हथियार डाल चुके थे। उन्हें मौन देख 'इंजीनियर साहब' खुद को असहज महसूस करने लगे। फिर क्या था, सदस्यों के व्यवहार से तमतमाए 'इंजीनियर साहब' सदन बीच में ही छोड़कर चले गए।

भारी न पड़ जाए गुटबाजी

विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, सरगर्मियां तेज हो गई हैं। हर दल अपने से ज्यादा दूसरे की तैयारियों का जायजा लेता नजर आ रहा है। साइकिल वालों को इस चुनाव से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें हैं। भैयाजी ने रूठों को मनाकर वोट जुटाने की सलाह दी है। इसी सलाह पर पार्टीजनों ने कोशिश शुरू कर दी। कुछ मान गए, कुछ को मनाना अभी बाकी है। वरिष्ठ नेताओं के इन प्रयासों के बीच गुटबाजी शुरू हो गई है। पुराने सदस्यों को नई जिम्मेदारी देने से एक गुट अलग थलग सा हो गया है। टिकट के दावेदारों की संख्या भी बढ़ रही है। अब तक 44 दावेदारों के नाम सामने आ चुके हैं। एक सीट पर आठ से 10 दावेदार हैं। हर कोई क्षेत्र में अपना दबदबा बता रहा है। इंटरनेट मीडिया को प्रचार का साधन बनाया हुआ है। उधर, भैयाजी मजबूत प्रत्याशी के लिए गोपनीय सर्वे करा चुके हैं।

कागजों में सड़कें रोशन

स्ट्रीट लाइट सड़कों पर नहीं, कागजों में जल रही हैं। स्ट्रीट लाइट के संबंध में आने वाली शिकायतों का दफ्तर में बैठकर ही निस्तारण दिखा दिया जाता है। शिकायतकर्ता जब पुन: सेवाभवन पहुंचता है तो रजिस्टर में शिकायत निस्तारित देख हैरान रह जाता है। फिर कोई उसकी नहीं सुनता। अफसर भी रजिस्टर देखकर निर्णय ले लेते हैं। ये व्यवस्था किसी भी लिहाज से उचित नहीं कही जा सकती। कार्यकारिणी बैठक, बोर्ड अधिवेशन में इसी बदहाल व्यवस्था को मुद्दा बनाकर पार्षद आपत्ति करते हैं और हंगामा हो जाता है। विभागीय अफसर भी स्ट्रीट लाइट के लिए जिम्मेदार अफसरों को ऐसी बैठकों में नहीं बुलाते, जबकि हर बार अगली बैठक में उपस्थिति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए जाते हैं। इसके पीछे अफसरों की क्या मंशा है, यह वही जानें, लेकिन उनकी इस अनदेखी से आमजनों को परेशानी हो रही है। रात के समय हादसों की संख्या में इजाफा भी हो रहा है।

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