Sir Syed Dey: उन्नीसवीं शताब्दी के भारत के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे सर सैयद : टीएस ठाकुर
सर सैयद डे मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा कि सर सैयद दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में मैं वास्तव में प्रसन्न महसूस कर रहा हूं क्योंकि यह दिन सर सैयद की जयंती का प्रतीक है।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। SS Day AMU सर सैयद डे मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा कि सर सैयद दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में मैं वास्तव में प्रसन्न महसूस कर रहा हूं क्योंकि यह दिन सर सैयद की जयंती का प्रतीक है, जो उन्नीसवीं शताब्दी के भारत के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे, जो भारत में शैक्षिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के अग्रदूत भी थे। सर सैयद ने ठीक ही सोचा था कि आधुनिक शिक्षा सभी बीमारियों के लिए रामबाण है और अज्ञानता सभी परीक्षणों और क्लेशों की जननी है। उ उन्होंने वैज्ञानिक सोच के विस्तार के लिए साइंटिफिक सोसाइटी (I864) की स्थापना की।
अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट (1866) प्रारंभ किया। तहज़ीबुल अख़लाक़ (1870) का प्रकाशन शुरू किया और एमएओ कॉलेज (1877) की स्थापना के साथ मॉडर्न शिक्षा का विस्तार किया। शिक्षा की उनकी अवधारणा समावेशी थी ।
स्वतंत्रता के 77 वर्षों बाद भी कम्यूनल हार्मनी सहित समाज की अवधारणा पर आधारित सर सैयद के सपने को आज साकार करने की आवश्यकता है जो पूरी दुनिया के लिए एक मॉडल है। मॉडर्न एजुकेशन मुसलमानो समेत सभी को देने का सर सय्यद का सपना अभी अधूरा है। मैं आप के साथ महान एजुकेशनिस्ट सर सय्यद को इस अवसर पर अपना खिराजे अकीदत पेश करता हूं। पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर रविवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद खां के 204 वें जन्म दिवस पर आनलाइन कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।
प्रख्यात भारतीय आलोचक और चिंतक, पद्म भूषण और साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष, प्रो. गोपी चंद नारंग ने कहा मुझ जैसे नासीज को इस अवार्ड नवाजा सभी का शुक्रिया अदा करता हूं। सर सैयद ने दिल्ली में 1817 को पैदा हुए है। यानि गालिब से 17 साल बाद। सर सैयद चाहते तो वो मुगल दरबार में जा सकते थे। लेकिन उनकी हिम्मत और हौंसला ने आगे बढ़ने का राह दिखाई। सर सैयद ने मैनपुरी, मुरादाबाद, अलीगढ़ व बनारस में नौकरी की। हर जगह नई पहचान भी बनाई। हिंदू -मुस्लिम को साथ लेकर साइंटिफिक सोसायटी कायम की।। जिंदगी के आखिरी 22 वर्ष अलीगढ़ में बिताए। सर सैयद की जिंदगी खुली किताब है। हर पन्ने से सबक लिया जा सकता है। जैसे हिंदू इस मुल्क में आए वैसे ही हम इस देश में आए। गंगा जमुना का पानी हम दोनों ही पीते हैं। मरने-जीने में दोनों का साथ है। अब बदल गया है। दोनों की रंगते एक जैसी हो गईं। मुसलमानों ने हिंदुओं की सैकड़ों रश्में इजाद कर लीं। हिंदुओं ने मुसलमानों की सैकड़ों आदतें ले लीं। जिस तरह आर्य काम हिंदू कहलाते हैं उसी तरह मुसलमान हिंदुस्तान में रहने वाले कहलाए जा सकते हैं। सर सैयद ने कहा था हिंदुस्तान खूबसूरत मुल्क है। हिंदु-मुस्लिम-दुल्हन की दो आंखें हैं।
सर सैयद दिवस को लेकर एएमयू कैंपस को दुल्हन की तरह सजाया गया है। इससे पहले रविवार को सबसे पहले सुबह छह बजे यूनिवर्सिटी जामा मस्जिद में कुरान ख्वानी हुुई। सात बजे सर सैयद की मजार पर चादर पोशी हुुई। मुख्य कार्यक्रम में कुलपति प्रो. तारिक मंसूर ने स्वागत भाषण दिया। कार्यक्रम के दौरान सर सैयद इंटरनेशनल व नेशनल पुरस्कार दिए गए।