एड्स के 'चक्रव्यूह' से सुरक्षित निकले सात मासूम, ऐसे बनाई रणनीति

एचआइवी संक्रमित तमाम महिलाएं शिशु को जन्म देने से डरती हैं। मगर तीन माह में ऐसी माताओं से पैदा सात और मासूम एड्स के चक्रव्यूह से सुरक्षित बाहर निकल आए हैं।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Publish:Sat, 16 Feb 2019 05:27 PM (IST) Updated:Sat, 16 Feb 2019 05:27 PM (IST)
एड्स के 'चक्रव्यूह' से सुरक्षित निकले सात मासूम, ऐसे बनाई रणनीति
एड्स के 'चक्रव्यूह' से सुरक्षित निकले सात मासूम, ऐसे बनाई रणनीति

अलीगढ़ (जेएनएन)।  एचआइवी संक्रमित तमाम महिलाएं शिशु को जन्म देने से डरती हैं कि कहीं वह भी तिल-तिल मरने के लिए इस दुनिया में न आए। कई बार सरकारी तंत्र ही उन्हें मायूस कर देता है, मगर विगत तीन माह में ऐसी माताओं से पैदा सात और मासूम एड्स के 'चक्रव्यूह' से सुरक्षित बाहर निकल आए हैं। इन सभी महिलाओं की डिलीवरी जिला महिला अस्पताल में हुई। चार की सर्जरी करनी पड़ी, जबकि कई को मेडिकल कॉलेज से भी लौटा दिया गया था।

प्रसव से पूर्व गर्भवती की एचआइवी जांच जरूरी
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन व उत्तर प्रदेश एड्स नियंत्रण सोसाइटी के अंतर्गत एचआइवी पीडि़त महिलाओं से होने वाले शिशुओं को बचाने के लिए पीपीटीसीटी (प्रीवेंशन ऑफ पेरेंट टू चाइल्ड ट्रांसमिशन) प्रोग्राम चल रहा है। इसके तहत अब सरकारी व प्राइवेट हॉस्पिटल में प्रसव से पूर्व गर्भवती की एचआइवी जांच जरूरी हो गई है।

135 शिशुओं का जन्म
महिला अस्पताल में 2013 से संचालित पीपीटीसीटी सेंटर पर अब तक 135 से अधिक माता एचआइवी पॉजिटिव मिल चुकी हैं। ये महिलाएं प्रसव के लिए जिला अस्पताल आई थीं। जनवरी 2019 तक ऐसी 114 माताओं ने शिशुओं को जन्म दिया, जो संक्रमण से मुक्त हैं।

ऐसे बचे मासूम
काउंसलर कविता गौड़ ने बताया कि ऐसे केसोंकी डीपीएस (ड्राई ब्लड सर्विस) की गई। जन्म के तुरंत बाद शिशु को 'नेवरापिन' गोली खिलाई गई। शिशु के रक्त का नमूना जांच के लिए एम्स भेजा जाता है। डेढ़ माह पर दूसरी जांच होती है। 18 माह तक शिशु पर नजर रखी जाती है।

गर्भवती महिला की जांच जरूरी
डॉ.गीता प्रधान का कहना है कि एचआइवी संक्रमित बच्चों की सर्जरी से डिलीवरी के लिए कोई तैयार नहीं होता, मगर हमने तीन माह में ही ऐसी चार महिलाओं की सर्जरी की। अब प्रत्येक गर्भवती की एचआइवी जांच अनिवार्य है, ताकि पैदा हुए शिशु को संक्रमण से बचाया जा सके।

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