क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिलः सीने में सिर्फ आजादी के शोले ही नहीं भड़कते थे, कविताएं व शायरी भी मारती थीं हिलोरे Aligarh News

भारत माता के इन वीर सपूतों के सीने में सिर्फ आजादी के शोले ही नहीं भड़कते थे बल्कि देशभक्ति की कविताएं गीत व शायरी भी इनके जेहन में हिलोरे मारती थीं। बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान बहुत अच्छे शायर और कवि थे

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Fri, 11 Jun 2021 06:36 AM (IST) Updated:Fri, 11 Jun 2021 06:36 AM (IST)
क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिलः सीने में सिर्फ आजादी के शोले ही नहीं भड़कते थे, कविताएं व शायरी भी मारती थीं हिलोरे Aligarh News
बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान बहुत अच्छे शायर और कवि थे

अलीगढ़, जेएनएन। अंग्रेजों की क्रूर हुकूमत से देश व देशवासियों को आजाद कराने में भारत माता के हजारों सच्चे सपूत शहीद हो गए। शहीद क्रांतकारियों के दिल में अंग्रेजी हुकूमत को मुंहतोड़ जवाब देने का जितना जोश था, उससे कहीं ज्यादा जुनून भारत माता को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कराने का भी था। इसके एक, दो या तीन नहीं बल्कि तमाम उदाहरण मौजूद हैं। चाहें वो वीर क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह हों, जिन्होंने मेरा रंग दे बसंती चोला... गाते-गाते फांसी के फंदे को चूम लिया था। चाहें वो महान क्रांतिकारी पंडित रामप्रसाद बिस्मिल या अशफाक उल्ला खान हों जिन्होंने जेल में ही देशभक्ति की धार रगों में बहाने वाली शायरी व कविताएं गाकर फांसी का फंदा हंसते-हंसते स्वीकार कर लिया था। भारत माता के इन वीर सपूतों के सीने में सिर्फ आजादी के शोले ही नहीं भड़कते थे बल्कि देशभक्ति की कविताएं, गीत व शायरी भी इनके जेहन में हिलोरे मारती थीं।

बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान बहुत अच्छे शायर और कवि थे

शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के जन्मदिन पर संत फिदेलिस सीनियर सेकेंडरी स्कूल के जनसंपर्क अधिकारी विद्यार्णव शर्मा ने कहा कि वीर क्रांतिकारी शहीद हुए, देश आजाद हुआ लेकिन शहीदों के सपनों का देश न बन सका। बताया कि 11 जून 1897 को शाहजहांपुर में पंडित बिस्मिल का जन्म हुआ। तरुणाई में आते ही आर्यसमाज से जुड़े स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी व सत्यार्थ प्रकाश का गहन अध्ययन किया। इसका प्रभाव उनके जीवन पर काफी पड़ा। स्वाध्याय के साथ नियमित कसरत व दोनों समय हवन दिनचर्या थी। पंडित बिस्मिल व अशफाक उल्ला खान शाहजहांपुर के मिशन स्कूल में पढ़े। दोनों की प्रतिभाएं अलग थीं। मैनपुरी षड़यंत्र केस के प्रसिद्ध क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित से पंडित राम प्रसाद बिस्मिल काफी प्रभावित हुए। घर छोड़कर सदर आर्यसमाज शाहजहांपुर में रहने लगे। नौ अगस्त 1925 को बिस्मिल ने चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, मन्मतनाथ गुप्त आदि क्रांतिकारियों के साथ काकोरी ट्रेन कांड को अंजाम दिया। इसमें बिस्मिल, अशफाक, रोशन, राजेंद्र को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई। हजारों क्रांतिकारियों के बलिदान से देश आजाद तो हो गया लेकिन इन शहीदों के सपनों देश नहीं बन सका। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान का देश की आजादी के लिए बलिदान हो जाना हमारी बहुत बड़ी धरोहर है। आजादी के बाद शहीदों को देश में वो स्थान नहीं दिया गया जिसके वे हकदार थे। पाठ्यक्रम में उन्हें उचित स्थान नहीं दिया गया। बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान बहुत अच्छे शायर और कवि थे।

जेल में बिस्मिल ने लिखा...

"न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना,

मुझे वर दे यही माता, रहूं भारत पे दीवाना।

करूं मैं कौम की सेवा, पड़े चाहे करोड़ों दुख,

अगर फिर जन्म लूं आकर, तो हो भारत में ही आना।

मुझे हो प्रेम हिंदी से पढूं हिंदी लिखूं हिंदी,

चलन हिंदी चलूं, हिंदी पहनना, ओढ़ना खाना।

भवन में रोशनी रहे ,मेरे हिंदी चिरागों की,

जिनकी लौ पे जलकर खाक हो बिस्मिल सा परवाना"।

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