चार दशक में कंक्रीट के शहर में बदल गया रामघाट रोड का जंगल, जानिए कैसे Aligarh news
यदि आप लंबे समय बाद अलीगढ़ जा रहे हैं तो इस शहर की पुरानी तस्वीर भूल जाइये। काफी बदलाव आया है। शहर के बीचों-बीच से गुजरनेे वाला रामघाट रोड का आधे से ज्यादा भाग अंग्रेजों के जमाने में जंगल जैसा लगता था।
अलीगढ़, जेेेेएनएन: यदि आप लंबे समय बाद अलीगढ़ जा रहे हैं तो इस शहर की पुरानी तस्वीर भूल जाइये। काफी बदलाव आया है। शहर के बीचों-बीच से गुजरनेे वाला रामघाट रोड का आधे से ज्यादा भाग अंग्रेजों के जमाने में जंगल जैसा लगता था। चालीस साल पहले तक इस रोड के दोनों ओर जंगल था। अब पूरा रोड बाजार में बदल चुका है। शायद पुरानी बातें नई पीढ़ी को न पता हों, लेकिन जिन्होंने इस शहर को बनते और बदलते देखा है, वे विकास के इस दौर की कई यादोंं और किस्सोंं की चर्चा परिवार के साथ जरूर करते होंगे। जब भी अपने जमाने का शहर कहकर चर्चा शुरू होती होगी तो रामघाट रोड पर वाहनों की तेज रफ्तार, जंगल ध्यान जरूरी आ जाता होगा। पर अब नजारा बदला है। जंगल का तो नामोनिशान नहीं है। रही बात तेज रफ्तार वाहनों की तो अब यह संभव नहीं। साहब, दिन में आसानी से रोड पार कर लो, यही बड़ी बात है। अक्सर कहीं न कहीं जाम के हालात रहते हैं। तब बुजुर्ग तो यही कहते सुने जाते हैं कि हमारे जमाने में यह सब न था, तब बढ़िया था।
यह था पहले रामघाट रोड
पहले रामघाट रोड को शैक्षणिक संस्थान, हॉस्पीटल व खूनी फाटक के नाम से पहचान मिली थी। पुराने शहर से निचला क्षेत्र होने के चलते बरसात के दिनों में यहां सड़केंं झील की तरह नजर आती थीं। फ्लाई ओवर न होने के चलते फाटक बंद होने के चलते हर समय जाम की स्थिति रहती थी। एसएमबी इंटर कॉलेज, शहर का एक मात्र टीकाराम डिग्री कन्या डिग्री कॉलेज, टीकाराम कन्या इंटर कॉलेज व रघुवरी बाल मंदिर जैसी शैक्षणिक संस्थान ही थीं। छोटे पुल से बच्चे व अभिभावक आते थे। रोडवेज बस स्टैंड जीटी रोड से अतरौली बस स्टैंड व रामघाट बस स्टैंड निजी थे। 40 साल में रोड बाजार में बदल गया। तीन किलो मीटर तक बाजार है।
ऐसे हुई शुरूआत
एसएमबी व टीकाराम कॉलेज प्रशासन ने कॉलेज की इमारत के बाहर बाजार का निर्माण कराया था। इसके बाद ही रामघाट रोड आवासीय क्षेत्रों से बाजार का रूप लेने लगा। इस बाजार को पर 25 साल पहले बने मीनाक्षी फ्लाई ओवर के बाद लगे। नए व पुराने शहर को जोड़ने वाले इस फ्लाइओवर ने राहगीरों की यात्रा को सुगम कर दिया। देश की आजादी से पहले रामघाट रोड का प्रयोग सिर्फ मार्ग के रूप में किया जाता था। रेलवे यात्रियों में गंगा स्नान करने वालों की भी बहुतादायत होती थी। क्षेत्र केे कालीचरन वाष्र्णेय नेे बताया कि उस दौर में उनकी पान की दुकान होती थी। रेलवे स्टेशन से पहले यानी मीनाक्षी टॉकीज के पास तांगा स्टैंड था। इसके बराबार में प्रयाग ऑयल मिल था। यहां प्रदेश का सबसे बड़ा व आधुनिक सरसों के तेल का मिल भी होता था। मिल के बंद के बाद आवासीय कॉलोनी बन गई।
गांधी आई हॉस्पीटल ने दी पहचान
शैक्षणिक संस्थानों के साथ रामघाट रोड निकट समद रोड पर गांधी आई हॉस्पीटल की स्थापना ने रामघाट रोड को एक नई पहचान दी। इस हॉस्पीटल के बेहतर सेवाओं के चलते देशभर के विभिन्न राज्यों से आंखों के मरीज यहां आते हैं। इसका संचालन ट्रस्ट करता है। सर्जरी से लेकर मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने के लिए मरीज यहां आते हैं। बेहद रियाती दरों पर यहां चिकित्सक सेवा करते हैं।
कल्याण सिंह ने विकास को लगाए पर
रामघाट रोड बाजार को विकसित करने में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का सबसे बड़ा योगदान रहा है। हर बरसात में जर्जर होती सड़क से गुजरना मुश्किल होता था। सड़क व नालियों पर अतिक्रमण था। सबसे पहले रामघाट रोड को चौड़ाकर दोनों किनारों पर नालों का निर्माण किया गया, ताकि जल निकासी हो सके। इसके बाद इस मार्ग पर बड़े बड़े शोरूम बनना शुरु हुए। माल कल्चर के दौरान ग्रेट शॉपिंग मॉल का निर्माण हुआ। विद्यानगर के आवासीय क्षेत्र को व्यवसायिक क्षेत्र के रूप में विकसित किए जाने लगा। किशनपुर तिराहेे पर शोरूम बन गए। क्षेत्रीय पार्षद पुष्पेंद्र सिंह जादौन ने बताया कि रामघाट रोड को बाजार के रूप में विकसित करने में पूर्व सीएम कल्याण सिंह व पूर्व दिवंगत सांसद शीला गौतम का बड़ा योगदान रहा है। इस मार्ग पर अभी भी अतिक्रमण है। प्राचीन अचल सरोवर में पानी के लिए क्वार्सी बंबा से एक माइनर गांधी आई हॉस्पीटल के किनारे वाली साइट पर थी। यह 20 मीटर चौड़ी थी। यह रेलवे पटरी के नीचे होकर पुलिया बनाकर निकाला गया था। अचल सरोवर के गौमुखी जिस नाली से ट्यबल का पानी जाता है, किसी जमाने में बंबा से पानी आता था। यह रामलीला मैदान के होता हुआ निकला था। धीमे धीमे इसका अस्तित्व खत्म हो गया। ट्यूबैल से अचल सरोवर के लिए पानी दिए जाने लगा। यह बंबा नगर निगम के अभिलेखों में आज भी जीवित है।