World Disability Day: अलीगढ़ के प्रदीप ठाकुर ने हौंसले से भरी उड़ान, हासिल किया नया मुकाम, ऐसे किया संघर्ष

World Disability Day 2021 जीवन में हौसला है तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। पहाड़ भी राई के सामान नजर आता है। सहायक अध्यापक प्रदीप ठाकुर भी हौसले की उड़ान से एक नई इबारत लिख रहे हैं। वह जीवन में अपने पैरों पर कभी खड़े नहीं हो सकें।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Fri, 03 Dec 2021 10:18 AM (IST) Updated:Fri, 03 Dec 2021 10:18 AM (IST)
World Disability Day: अलीगढ़ के प्रदीप ठाकुर ने हौंसले से भरी उड़ान, हासिल किया नया मुकाम, ऐसे किया संघर्ष
सहायक अध्यापक प्रदीप ठाकुर भी हौसले की उड़ान से एक नई इबारत लिख रहे हैं।

अलीगढ़, राज नारायण सिंह। जीवन में हौसला है तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। पहाड़ भी राई के सामान नजर आता है। सहायक अध्यापक प्रदीप ठाकुर भी हौसले की उड़ान से एक नई इबारत लिख रहे हैं। वह जीवन में अपने पैरों पर कभी खड़े नहीं हो सकें। मगर इसके बावजूद उन्होंने शिक्षा में एक नया मुकाम हासिल किया। स्वजन उन्हें उठाकर स्कूल-कालेज ले जाया करते थे। आज भी छोटे-छोटे काम के लिए दूसरों की मदद लेनी पड़ती है। मगर, प्रदीप ने इसे कभी लाचारी नहीं समझी। बल्कि एक मुस्कुराहट से सारे गम को हर लिया करते हैं।

प्रदीप ने ऐसे किया संघर्ष

एटा चुंगी स्थित रामनगर निवासी प्रदीप ठाकुर की जिंदगी बचपन से ही मुश्किलों भरी रही। तीन महीने की उम्र में उन्हें तेज बुखार अया। एक गलत इंजेक्शन ने उनकी जिंदगी अंधेरे से भर दी। प्रदीप के दोनों पांव काम करने बंद कर दिए। पिता रामवीर सिंह और मां कुसुम देवी के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्होंने सोचा ऐसे में बेटे की जिंदगी कैसे आगे बढ़ेगी। रामवीर सिंह के चार बेटियां हैं। प्रदीप इकलौते है। इसके बाद प्रदीप कभी दो कदम भी नहीं चल सकें। बचपन जैसे-तैसे बीता। माता-पिता ने सोचा कि घर पर ही पालपोश कर उसे बड़ा करेंगे। मगर, प्रदीप के अंदर पढ़ाई की ललक देखकर उनका स्कूल में एडमिशन करा दिया गया। इनकी दोनों बड़ी बहनें उन्हें स्कूल ले जाया करतीं थीं। 10वीं की पढ़ाई अपने दोस्तों की मदद से की। 2011 में एमएससी(गणित) से की। अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की काउंसलिंग के मेडिकल में अनफिट कर दिया गया। प्रदीप इसके बाद भी निराश नहीं हुए। फिर सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गए। दो साल में मेहनत रंग लाई, बैंक की परीक्षा पास की और क्लर्क की नौकरी मिल गई। मगर नौकरी में मन नहीं लगा। फिर, निर्णय लिया कि बच्चों को पढ़ाएंगे और तैयारी में लग गए। 2013 में बीएड किया। फिर प्राथमिक स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर नौकरी मिल गई। वर्तमान में वह बदायूं में तैनात हैं।

दूसरों के लिए बने मिसाल

प्रदीप ठाकुर दिव्यांग की पेंशन नहीं लेते। न ट्राई साइकिल ली। उनका कहना है कि भले ही उनके पांव मजबूत न हों, हाथ तो मजबूत हैं, इससे वह हर मुश्किल का मुकाबला कर लेते हैैं। निराश दिव्यांगों का वह हौंसला भी बढ़ाते हैं। प्रदीप कहते हैं कि वो यदि उन्हें नहीं समझाते तो शायद दिव्यांग गलत कदम उठा लेते।

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