सिमी के सदस्य अब्दुल्ला दानिश की अलीगढ़ में कुंडली खंगालने में जुटी पुलिस

दिल्ली पुलिस सेसंपर्क कर हर पहलू पर कर रही जांच।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 08 Dec 2020 02:27 AM (IST) Updated:Tue, 08 Dec 2020 02:27 AM (IST)
सिमी के सदस्य अब्दुल्ला दानिश की अलीगढ़ में कुंडली खंगालने में जुटी पुलिस
सिमी के सदस्य अब्दुल्ला दानिश की अलीगढ़ में कुंडली खंगालने में जुटी पुलिस

जासं, अलीगढ़ : आतंकी संगठन सिमी के साथ अब्दुल्ला दानिश का नाम जुड़ने से उसके घर के आसपास के लोग हैरान हैं। पुलिस अब अब्दुल्ला की कुंडली खंगालने में लग गई है। एसएसपी मुनिराज ने बताया कि वह दिल्ली पुलिस से लगातार संपर्क में हैं। अलीगढ़ में दानिश के कोई आपराधिक या गलत गतिविधि करने की सूचना नहीं है। न ही यहां कोई मुकदमा दर्ज है। दिल्ली पुलिस से जानकारी जुटाकर हर पहलू की जाच की जा रही है।

अब्दुल्ला दानिश के बेटे अम्मार दानिश ने बताया कि उसके पिता के खिलाफ दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी थाने में मूवमेंट ऑफ इंडिया पत्रिका में छपे एक आलेख के चलते मुकदमा दर्ज हुआ था। उस समय पूरा परिवार दिल्ली के बाटला हाउस के पास रहता था। 2005 में हमारा परिवार अलीगढ़ आ गया। तभी से हम सभी अपार्टमेंट में एक फ्लैट में किराए पर रह रहे हैं। अम्मार ने बताया कि हम चार भाई व एक बहन हैं। सभी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवíसटी से पढ़ाई की है। एक भाई अभी भी एएमयू में पढ़ रहा है।

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पिता के साथ दानिश ने कर

लिया था धर्म परिवर्तन

मऊ में चार बीघे जमीन बेचकर 45 साल पहले जा चुका है परिवार

जागरण संवाददाता, मऊ : दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 19 वर्षो से फरार प्रतिबंधित संगठन सिमी के जिस सदस्य जिहादी अब्दुल्ला दानिश को गिरफ्तार किया है, वह मूलरूप से मऊ के मुहम्मदाबाद गोहना कोतवाली के बंदीघाट गांव का रहने वाला है। सोमवार को एलआइयू (लोकल इंफार्मेशन यूनिट) पुलिस गांव आई, तब ग्रामीणों को पता चला कि देशद्रोह और गैरकानूनी गतिविधियों में आरोपित अब्दुल्ला दानिश बीते ढाई दशक से तमाम मुस्लिम युवकों को गुमराह कर सिमी का सदस्य बना चुका है।

दानिश ने मुहम्मदाबाद गोहना के टाउन इंटर कॉलेज से 12वीं की परीक्षा पास की थी। साहित्य में रुचि होने के कारण उसने गोंडा में रहकर उर्दू में पीएचडी भी कर रखी है। गिरफ्तारी से पहले वह परिवार के साथ अलीगढ़ में रह रहा था। ग्रामीणों ने बताया कि अब्दुल्ला दानिश के पिता बलदेव अंडमान निकोबार में सिपाही थे। वहीं किसी के संपर्क में आकर उन्होंने 1974 में इस्लाम स्वीकार कर लिया और अपना नाम अब्दुल्ला रहमान रख लिया। बलदेव ने दो सगी बहनों धर्मा देवी और कर्मा से शादी की थी। धर्मा देवी के चार बेटे और तीन बेटियां थीं। वहीं, कर्मा का एक बेटा था। धर्मा देवी के बड़े बेटे चितामणि उर्फ मुन्नी, तीसरे नंबर के रमेशचंद्र उर्फ अब्दुल्ला दानिश तथा चौथे नंबर के बेटे गुड्डू व तीनों बेटियों ने धर्म परिवर्तन स्वीकार किया। वहीं, दूसरे नंबर के बेटे चुन्नीलाल ने इस्लाम धर्म को मानने से मना कर दिया और परिवार से अलग हो गया। दूसरी पत्नी कर्मा भी इसके विरोध में पति से अलग हो गई और अपने बेटे प्रेमशंकर के साथ आजमगढ़ में बस गई। बताते हैं कि ग्रामीणों ने भी बलदेव के धर्म परिवर्तन का कड़ा विरोध किया था और इस कारण वह गांव की अपनी करीब चार बीघे की जमीन बेचकर अलीगढ़ चला गया।

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