अलीगढ़ में खुद की बाइक नहीं तलाश पा रही पुलिस, लोगों की टूटी उम्मीद
आम आदमी तो अक्सर थानों में भटकते रहते हैं मगर इन दिनों खुद पुलिस ही चोरी हुई बाइक की तलाश में घूम रही है। जनता की बाइक होती तो शायद ध्यान भी न दिया जाता पर अब सर्विलांस एसओजी थाना टीम समेत पूरा अमला लगा हुआ है।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। बाइक चोरी होना आम बात है। आम आदमी तो अक्सर थानों में भटकते रहते हैं, मगर इन दिनों खुद पुलिस ही चोरी हुई बाइक की तलाश में घूम रही है। जनता की बाइक होती तो शायद ध्यान भी न दिया जाता, पर अब सर्विलांस, एसओजी, थाना टीम समेत पूरा अमला लगा हुआ है। चोरों की बेखौफी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर के सबसे महत्वपूर्ण थाने के व्यस्ततम चौराहे से चेङ्क्षकग कर रहे दारोगा के सामने से सरकारी बाइक ही गायब कर डाली। इस घटना ने पुलिस की धाक पर धब्बा लगा दिया और अच्छे कार्यों की भी लुटिया डुबो दी। बात सिर्फ लैपर्ड बाइक चोरी होने की नहीं है, बल्कि सवाल ये है कि क्या पुलिस खुद की बाइक की भी सुरक्षा नहीं कर सकती। यह लोगों के लिए संदेश है कि अपने वाहन की सुरक्षा स्वयं करें, पुलिस से कोई उम्मीद न लगाएं।
होटलों में खुलकर खेल
कुछ महीनों पहले तक शहर से निकल रहे जीटी रोड स्थित कुछ होटल जिस्मफरोशी के धंधे को लेकर बदनाम थे, लेकिन नई तैनाती के चलते यहां तो बदलाव आ गया। मगर, शहर से सटे थाना क्षेत्रों में कोई देखने वाला नहीं है। यहां होटलों में धड़ल्ले से यह खेल चल रहा है। पुलिस जानकारी सब रखती है, लेकिन सब कुछ आनलाइन होने के बावजूद कहीं न कहीं सेङ्क्षटग होने के चलते न कुछ बोलती है और न ही छापेमारी की हिम्मत कर पाती है। हालांकि, आनलाइन बुङ्क्षकग होने के चलते सिर्फ उम्र देखकर की होटलों में जाने की अनुमति का प्रविधान है, मगर होटल मालिक जिस कंपनी का नाम इस्तेमाल कर रहे हैं, उसी को पलीता लगाने में लगे हैं। हालात ये हैं कि मात्र आधार कार्ड को देखा जाता है। फिर चाहें कोई नाबालिग ही होटल में चला जाए, कोई फर्क नहीं। यह सुरक्षा के लिए भी खतरा है।
क्या तब भी निर्दोष माना जाता युवक
शहर से अपहृत हुई बच्ची को पुलिस ने एक घंटे के अंदर बरामद कर लिया। कार में ले जाने वाला युवक निर्दोष माना गया है। सुबूत भी यही कहते हैं, लेकिन कई सवाल ऐसे खड़े हैं, जिनसे युवक की नीयत में खोट नजर आता है। घटना के दौरान मां पीछे दौड़ती रही, लेकिन युवक रुका क्यों नहीं? उसने पुलिस से कोई संपर्क क्यों नहीं किया? बल्कि एसओजी के सामने भागने की कोशिश भी की। पुलिस इसके पीछे पिटने का डर बता रही है, लेकिन सोचिये कि अगर युवक नहीं मिलता या फिर बच्ची को कहीं छोड़कर फरार हो जाता, क्या तब भी वह निर्दोष माना जाता। बच्ची के ताऊ ने स्पष्ट कहा कि चार लोग कार में थे। हमारे सामने एक ही युवक आया। यही सबसे बड़ा सवाल भी है। क्या इस कहानी में कुछ बड़ा छिपा हुआ है, लेकिन अगर युवक निर्दोष है तो उसे क्लीनचिट दे देनी चाहिए।
डरो मत, मुकदमे हमें दे दो...
जिले में नए थाने बनने के बाद भी पुलिस अभी सीमा विवाद में उलझी रहती है। कोई घटना हो जाए तो इसका खामियाजा लोगों को ही इधर-उधर भटककर भुगतना पड़ता है। ये सिर्फ नए थानों का ही हाल नहीं है, बल्कि पूर्व में स्थापित पुराने थानों में कई बार आपस में ही मेलजोल नहीं हो पाता। दूसरी तरफ शहर में बने नए थाने ज्यादा सिरदर्दी नहीं लेना चाहते। कुछ दिन पहले की बात है, नए और पुराने थाने के प्रभारी ही आपस में उलझ गए। नए वाले ने कुछ विवाद पुराने के मत्थे मढ़ दिए। हालांकि पुराने वाले प्रभारी ने दरियादिली दिखाई और कहा कि डरो मत, तुम्हारे पास ऐसे जितने भी मुकदमे हैं, वो हमें दे दो। हम लिख देंगे। ये अच्छी बात भी है। चूंकि साहब की प्राथमिकता भी यही है कि मुकदमा फौरन लिखा जाए। फिर झूठ या सच तो जांच में सामने आ ही जाता है।