सामाजिक समरसता की मिसाल है पथवारी मंदिर, अनुसूचित जाति के भूरा सिंह करते हैं मां की आरती व सेवा Aligarh news
छुआछूत और जातिगत भेदभाव मानने वालों के लिए इगलास का पथवारी मंदिर एक नजीर ही है। सनातन परंपरा के मंदिरों में अभिजात्य वर्ग के पुजारी ही आम तौर पर नजर आते हैं लेकिन इस मंदिर में एेसा नहीं है। यहां सामाजिक समरसता की झलक है।
योगेश कौशिक, अलीगढ़ः छुआछूत और जातिगत भेदभाव मानने वालों के लिए इगलास का पथवारी मंदिर एक नजीर ही है। सनातन परंपरा के मंदिरों में अभिजात्य वर्ग के पुजारी ही आम तौर पर नजर आते हैं, लेकिन इस मंदिर में ऐसा नहीं है। यहां सामाजिक समरसता की झलक है। सभी वर्ग के श्रद्धालु सेवा देते हैं। सुबह-शाम मैया की आरती अनुसूचित जाति के भूरा सिंह करते हैं। आपको मंदिर में पूरी पूजा सेवा के दौरान कहां छूआछूत व भेदभाव का अहसास तक नहीं होगा।
हर वर्ग के लिए ने किया सहयोग
यह परंपरा नई नहीं है। गौंडा रोड स्थित यह मंदिर करीब दो सौ साल पुराना है। शुरूआत में यहां छोटे से मठ में मैया विराजमान थी, जिनके प्रति क्षेत्र ही नहीं, आसपास के गांवों के लोगों में भी अपार आस्था थी। बीस सालों में यह मंदिर भव्य रूप ले चुका है। हर वर्ग के लोगों ने इसके विकास में सहयोग दिया। वैभव लक्ष्मी मैया, हनुमान जी, भैरो बाबा, लांगुरा बलवीर की प्रतिमाएं विराजमान हैं। मंदिर में प्रसाद बनाने से लेकर बांटने व ग्रहण करने में सभी वर्ग के लोग बिना भेदभाव के भागीदार होते हैं।
चार पीढ़ियां रहीं हैं सेवादार
भूरा सिंह की चार पीढ़ियां इस मंदिर की सेवा करती रहीं हैं। इनके बाबा दुर्गा प्रसाद, पिता केसरीलाल और फिर बाद में मां रामबेटी (भगतानी अम्मा) मुख्य सेवायत रह चुकी हैैं। भूरा सिंह का कहना है कि मंदिर पर उन्हें व पूर्वजों को वैसा ही सम्मान मिलता रहा है जो अभिजात्य वर्ग के सेवायत का होता है। सभी वर्ग के लोग सम्मान करते हैं। कभी किसी ने रोक टोक नहीं की।
मंदिर की देखरेख के लिए 350 सदस्य
मंदिर की देखरेख का काम कमेटी करती है, जिसमें 42 सक्रिय सदस्य है। 350 सदस्य हैं। सभी सामान्य, ओबीसी, अनुसूचित वर्ग के हैं। सुमित अग्रवाल व्यवस्थापक हैं। उन्होंने बताया कि पीढ़ियों से भूरा सिंह का परिवार मैया की सेवा करते आ रहा है। सक्रिय सदस्य सभी वर्ग के हैं। यहां छूआछात जैसी कोई भावना नहीं रहती। यह पथवारी मैया की आस्था का ही कमाल है। नवरात्र में यहां मेला लगता है और भक्तों को लाइन में लगकर दर्शन करने पड़ते हैं। विवाह आदि मांगलिक कार्यक्रम के समय लोग मां का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते।
इनका कहना है
मंदिर सामाजिक समरसता की मिसाल है। यहां सभी वर्ग के लोग समानभाव से पूजा अर्चना करने आते हैं। इससे क्षेत्र में ही नहीं, जिले में भी एकता का संदेश जाता है।
- आचार्य मयंक उपाध्याय
पथवारी मैया के दरबार के द्वारा सबके लिए खुले हैं। यहां जाति-धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं होता।
-डा. रामकुमार सिंह, श्रद्धालु
-मैया के दरबार में सभी वर्ग के लोग प्रसाद तैयार करते हैं साथ बैठकर ग्रहण भी करते हैं। यहां सभी का सम्मान बराबर है।
-सतेंद्र चौधरी, श्रद्धालु