Kaka Hathrasi Birthday: गजल में हास्य रस भर 'हजल' नाम दे गए पद्मश्री काका हाथरसी, जानिए विस्तार से Hathras News
बचपन की गरीबी कौ दर्द भरौ जीवन हास्य की गजल जिनकूं हजल नाम मिल्यौ हिंदी साहित्य कूं काका हाथरसी की ऐतिहासिक दैन है। हजलगोई के सशक्त हस्ताक्षर काका हाथरस के बारे में लिखी गई ये लाइनें अतिशयोक्ति नहीं हैं।
हाथरस, जागरण संवाददाता। 'बचपन की गरीबी कौ दर्द भरौ जीवन हास्य की गजल, जिनकूं 'हजल' नाम मिल्यौ हिंदी साहित्य कूं काका हाथरसी की ऐतिहासिक दैन है। हजलगोई के सशक्त हस्ताक्षर काका हाथरस के बारे में लिखी गई ये लाइनें अतिशयोक्ति नहीं हैं। जहां हंसी की संभावना न के बराबर हो, वहां भी काका ने ठहाके लगवाए। ताउम्र हंसने-हंसाने वाला कोई शख्स खुद की मौत पर भी लोगों को हंसने को कह जाए, ऐसा शायद ही कहीं हुआ हो। यह संयोग ही है कि जिस तारीख को काका का जन्म हुआ, उसी दिन उन्होंने दुनिया से विदा ली। आज हम उसी महान शख्सियत को याद करते हुए जन्मदिन व पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
काका का परिचय
प्रभूलाल गर्ग उर्फ काका जन्म 18 सितंबर 1906 को शिवलाल गर्ग के यहां हुआ था। उन दिनों बीमारी फैली हुई थी। उनके जन्म के दो माह बाद ही पिता की मृत्यु हो गई थी। गरीबी में उनकी परवरिश हुई, लेकिन इसके बाद भी उनके चेहरे पर जीवन भर खुशी रही और दूसरों को खुश रखा। बचपन से ही कला और कविता लेखन में उनकी रुचि थी। पिता के देहांत के बाद उनकी माताजी बर्फी देवी उन्हें लेकर इगलास अपने मायके चली गईं, जहां पर उनका बचपन बीता। 16 वर्ष की आयु में हाथरस आने के बाद उन्होंने आढ़त पर मुंशी की नौकरी भी की।
जब प्रभूलाल बने काका
प्रभूलाल गर्ग उर्फ काका ने अग्रवाल समाज के एक कार्यक्रम में काका की भूमिका निभाई थी। अगले दिन से ही जब वे घर से बाहर निकले तो लोगों ने काका कहना शुरू कर दिया। तभी से उनका नाम काका पड़ गया। ब्रजभाषा उन्हें विरासत में मिली। अंग्रेजी, उर्दू पर उनकी अच्छी पकड़ थी।
गजल नहीं, काका की 'हजल'
यूं तो काका हाथरस की रचनाओं का संकलन विशाल है। अनेक कविताएं हैं, जो उन्होंने अपने निजी जीवन से उठाईं तथा हास्य के जरिए जीवन जीने की कला सिखाई। काका के कोश में केवल कविताएं ही नहीं, बल्कि कुछ गजलें भी हैं। गजल दर्द भरी नहीं, बल्कि हास्य से परिपूर्ण हैैं। जी हां, काका इन्हें 'हजलÓ कहा करते थे। उन्होंने जीवन में दस हजलें लिखीं। ऐसी ही एक हजल की कुछ पंक्तियां हैं:-
'जो उड़ गयी जवानी, उसको बुलाएं कैसे?
जो जुड़ गया बुढ़ापा, उसको छुड़ाएं कैसे?
बचपन की फ्रैंड गुडिय़ा, पचपन में हुई बुढिय़ा
अब प्रेम के पकौड़े, उसको खिलाएं कैसे?
बीवी की जिद पै हमने लगवा लिया है टीवी,
घर में घुसे पड़ौसी, उनको भगाएं कैसे?
ऊंटगाड़ी पर शवयात्रा, श्मशान में ठहाके
पद्मश्री हास्य कवि प्रभूलाल गर्ग उर्फ काका हाथरसी 18 सितंबर 1995 को दुनिया को अलविदा कह गए थे। उनकी इच्छा के अनुसार 19 सितंबर को ऊंटगाड़ी पर शवयात्रा निकाली गई थी। आगे कीर्तन मंडलियां थीं तो पीछे हजारों की भीड़। मृत्यु के समाचार मिलते ही हाथरस के बाजार बंद हो गए थे। उनकी इच्छा थी कि उनके जाने के बाद कोई रोए, नहीं बल्कि ठहाके लगाए। इसलिए उनके चाहने वालों ने श्मशान गृह पर हास्य कवि सम्मेलन रख लिया तथा हास्य की रचनाएं सुनाकर ठहाके लगाए गए।
काका हजल नाम के सूत्रधार थे। ङ्क्षहदी काव्य मंच पर हास्य को स्थापित करने में संभवतया प्रथम कवि थे। डा. आरके भटनागर आइएएस ने हाथरस के जिला अधिकारी के रूप में 20 वर्ष पहले जो प्रयास शुरू किए थे, उसको बढ़ाकर ही हम काका की हजल, कविता, फुलझड़ी, कुंडली का आनंद अमर कर सकेंगे।
अनिल बौहरे, आशु कवि
काका जी कहा करते थे कि गुड़ और तिल से गजक बनती है, जबकि दिमाग व दिल से गजल बनती है। उन्होंने व्यंग्य को गजल में मिलाकर हजल की प्रस्तुति दी। उनके चुटीले व्यंग्य, हजल व दोहे समाज को आज भी नई दिशा दे रहे हैं।
विद्यासागर विकल, साहित्यसेवी
काका हाथरसी जी के साथ सिर्फ एक मंच पर कविता पढऩे का अवसर मिला, वह भी हाथरस के दाऊजी मेले में, जिसमें उन्होंने मुझे सम्मानित भी किया था। मुझे अच्छी तरह याद है काका जी ने एक हजल सुनाई थी, जिसे सुनकर श्रोता लोटपोट हो गए थे काका जी हास्यरस की शान थे। काका न होते तो हास्य रस की •ामीन बंजर रह जाती।
डा. विष्णु सक्सेना, यश भारती, अंतरराष्ट्रीय गीतकार, सिकंदराराऊ