घुमक्कड़ों को रास आएगी ‘यात्रा पूरब के स्विट्जरलैंड की’, जानिए मामला

डा. प्रेम कुमार ने 134 पेज की इस पुस्तक में 11 साल पूर्व सेमिनार में भाग लेने के लिए इंफाल (मणिपुर) की यात्रा के दौरान देखे-सुने जाने महसूस किए गए पलों को न केवल लिखा है बल्कि खुद जीया भी है।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 11:39 AM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 11:44 AM (IST)
घुमक्कड़ों को रास आएगी ‘यात्रा पूरब के स्विट्जरलैंड की’, जानिए मामला
शहर के वरिष्ठ साहित्यकार डा. प्रेम कुमार।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता।  यात्रा, जीवन का पर्याय या जरूरत है या यूं कहें कि जीवन की पहचान और प्रमाण..., यात्रा के बाद हम निश्चय ही वह नहीं रहते जो यात्रा से पहले होते हैं...,हमारे द्वारा की गई कोई भी यात्रा पहले की अपेक्षा कहीं अधिक प्रसन्न, समृद्ध, सूचना व ज्ञान संपन्न, हरा-भरा तथा चहका-महका से बना देती है। शहर के वरिष्ठ साहित्यकार डा. प्रेम कुमार ने अपनी नई कृति (यात्रा वृतांत) ‘यात्रा पूरब के स्विट्जरलैंड की’ की प्रस्तावना के प्रथम पेज पर ही यात्रा की महत्ता को कुछ इन्हीं शब्दों में प्रतिपादित किया है।

134 पेज की है पुस्‍तक

डा. प्रेम कुमार ने 134 पेज की इस पुस्तक में 11 साल पूर्व सेमिनार में भाग लेने के लिए इंफाल (मणिपुर) की यात्रा के दौरान देखे-सुने, जाने महसूस किए गए पलों को न केवल लिखा है, बल्कि खुद जीया भी है। एयरपोर्ट पर कदम रखते ही वे उद्वेलित और रोमांचित हो जाते हैं। पाठक, जैसे-जैसे पन्ने उलटना शुरू करता है, खुद को उन लम्हों व स्थलों से जोड़ते हुए एक नए संसार में पहुंच जाता है। अपने अंदर के बंजारे को पुकारने लगता है। मस्तिष्क पटल से मणिपुर राज्य को लेकर व्याप्त भ्रांतियों का अंत होना शुरू हो जाता है। भारत की विराटता, विशालता और सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर अपने देश के अनुपम-अद्भुत वैविध्य, सामंजस्य, सौंदर्य का अद्भुत चित्रण लेखक ने किया है। सारी चिंताएं और तकलीफें यात्रा के साथ जाती रहती हैं। आतंकित करते बाजारों और जंगलों के विपरीत लेखक इंफाल की रमणयीता, लोगों के आत्मीय सहज, सरल, उदार, श्रमशील स्वभाव और सोच पाठकों को विस्मित करती है।

संगोष्‍ठी के अनुभव को किया साझा

पूर्वोत्तर की भाषाएं (मणिपुरी व असमियां) और हिंदी विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में उद्घाटन सत्र से लेकर समापन तक के अनुभव भी साझा किए हैं। पन्ना पलटते ही इंफाल की यात्रा पर जानेवाले शाकाहारियों को आपबीती याद आने लगती है। लेखक भी खूब मिटाने के लिए जिद्दोजह करते दिखते हैं। झरने और शांत घाटियां, सबकुछ भुला देती हैं। अति देवोभवः की भावना के साथ आगंतुकों का आतिथ्य सत्कार की परंपरा इंफाल में दिखती हैं। यह पुस्तक घुमक्कड़ी ही नहीं, गैर घुमक्कड़ी लोगों को भी पसंद आएगी। लेखन का यह हुनर डा. प्रेम कुमार के पूर्व के कहानी संग्रहों, साक्षात्कार (नीरज, शहरयार, काजी अब्दुल सत्तार आदि), आलोचना ग्रंथ व अन्य कृतियों में दिखता है। लेखक डीएस कालेज के हिंदी विभाग के निवर्तमान रीडर हैं।

chat bot
आपका साथी