किसानों के मसीहा की राजनीतिक कर्मभूमि में नहीं मिल रहा एक अदद अध्‍यक्ष, जानिए क्‍या है मामला Aligarh news

किसानों के मसीहा चौ. चरण सिंह की राजनीतिक कर्मभूमि रहे जिले में रालोद को एक अदद अध्यक्ष की तलाश है। तत्कालीन अध्यक्ष द्वारा दिए गए इस्तीफा के 15 दिन बीत जाने के बाद नए अध्यक्ष की भरपाई नहीं हो पा रही।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Mon, 25 Jan 2021 06:58 AM (IST) Updated:Mon, 25 Jan 2021 10:04 AM (IST)
किसानों के मसीहा की राजनीतिक कर्मभूमि में नहीं मिल रहा एक अदद अध्‍यक्ष, जानिए क्‍या है मामला Aligarh news
कार्यकर्ताओं में जिलाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भी उत्साह बरकरार है।

अलीगढ़, जेएनएन : किसानों के मसीहा चौ. चरण सिंह की राजनीतिक कर्मभूमि रहे जिले में रालोद को एक अदद अध्यक्ष की तलाश है। तत्कालीन अध्यक्ष द्वारा दिए गए इस्तीफा के 15 दिन बीत जाने के बाद नए अध्यक्ष की भरपाई नहीं हो पा रही। कृषिकानूनों के विरोध में किसान आंदोल के तहत ट्रेक्टर परैड भी नेतृत्व विहीन है। इसके अलावा पंचायत चुनाव की तैयारियों को भी करार झटका लगा रहा है। कार्यकर्ताओं में जिलाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भी उत्साह बरकरार है। मगर नियुक्त न होने से मायूसी का आलम भी है।

इगलास व खैर विधानसभाएं सर्वोपरि

किसी जमाने में चौधरी चरण सिंह परिवार के लिए जिले की इगलास व खैर विधानसभाएं सर्वोपरि थीं, इसलिए इगलास को मिनी छपरौली कहा जाता था। इस विधानसभा से चौधरी साहब की पत्नी गायत्री देवी ने विधानसभा में जिले की सियासत का प्रतिनिधित्व किया था। इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए रालोद मुखिया चौधरी चरण सिंह की परिपाटी को कायम रखा था। जाट बाहूल्य खैर ने चौ. अजित सिंह की बहन व चौधरी चरण सिंह की बेटी डा. ज्ञानवती को विधानसभा पहुंचाया।

परिसीमन ने बदला नक्‍शा

रालोद का वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में दो सीटों पर कब्जा किया था, इसमें इगलास से विमलेश चौधरी व खैर से चौ. सत्यपाल सिंह। वर्ष 2009 में हुए परिसीमन में जिले की सियासत का नक्शा ही बदल गया। इगलास व खैर सामान्य से सुरक्षित सीट में शामिल हो गईं। साथ ही हाथरस लोकसभा में शामिल अतरौली विधानसभा को अलीगढ़ लोकसभा में शामिल कर लिया। इसकी जगह इगलास को हाथरस में शामिल किया गया। इस परिसीमन के बाद वार्ष 2009 में आम लोकसभा चुनाव हुए। सुरक्षित इस सीट से सारिका सिंह बघेल ने रालोद का पताका लहराया। रालोद से पहली बार जिले से यह सांसद चुनी गईं। यहां से रालोद का स्वर्णिम इतिहास शुरू हुआ। वर्ष 2012 में प्रदेश से सत्तारूढ़ दल बसपा को सपा ने बुरी तरह मात दी। मगर रालोद की जिले में सात में से तीन सीट पर सफलता अर्जित की। इसमें खैर से भगवती प्रसाद सूर्यवंशी, इगलास से त्रिलोकीराम दिवाकर व बरौली से ठा. दलवीर सिंह चुनाव जीते। वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के एन वक्त पर ठा. दलवीर सिंह ने रालोद से नाता तोड़ भाजपा में शामिल हो गए। यहां से रालोद का बुरा सियासीदौर शुरू हुआ। रालोद के कदवर नेता व पूर्व विधायक चौ. सत्यपाल सिंह व लगातार छह बार जिलाध्यक्ष रहे चौ. कल्याण सिंह भी भाजपा में शामिल हो गए। नतीज रालोद को इस विधानसभा चुनाव में सभी सीट से हाथ धौना पड़ा। सभी प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा सके।

तरह-तरह की चर्चाएं

तत्कालीन जिलाध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा इस लिए दिया, कि उन्हें पद से हटाने की पहले ही जानकारी हाे गई थी। सूत्रों की मानें तो ये रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी से मिलने दिल्ली गए, मगर उन्होंने मुलाकात करने से भी मना कर दिया। रालोद कार्यकर्ता नए जिलाध्‍यक्ष को लेकर तरह तरह की चर्चा कर रहे हैं। भानुप्रताप से इस्ताफा के बाद पूर्व जिलाध्‍यक्ष रामबहादुर चौधरी सहित अन्य वरिष्ठ नेता भी अध्यक्ष बनने की कतार में हैं।

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