Political Parties Active: नए दावेदार, हो रहे हैं तैयार..मिलेगी ललकार Aligarh News

चुनाव नजदीक आते ही नए दावेदार मैदान में उतर कर सामने आ रहे हैं। कई छोटे दल भी ताल ठोकने की तैयारी में हैं। हालांकि पिछले चार वर्षों में ऐसे दावेदारी करने वाले नेता दिखाई नहीं दिए। वह सेवा कार्य के माध्यम से भी सामने नहीं आएं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Sat, 16 Oct 2021 09:33 AM (IST) Updated:Sat, 16 Oct 2021 09:33 AM (IST)
Political Parties Active: नए दावेदार, हो रहे हैं तैयार..मिलेगी ललकार Aligarh News
चुनाव नजदीक आते ही नए दावेदार मैदान में उतर कर सामने आ रहे हैं।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। चुनाव नजदीक आते ही नए दावेदार मैदान में उतर कर सामने आ रहे हैं। कई छोटे दल भी ताल ठोकने की तैयारी में हैं। हालांकि, पिछले चार वर्षों में ऐसे दावेदारी करने वाले नेता दिखाई नहीं दिए। वह सेवा कार्य के माध्यम से भी सामने नहीं आएं, जिससे जनता के बीच में उनकी पकड़ मजबूत हो सके लोग उन्हें पहचान सकें। मगर, चुनाव नजदीक देख वह ताल ठोकने की तैयारी कर रहे हैं। यह बहुत कुछ तो नहीं कर सकेंगे मगर बड़े दल के नेताओं के लिए मुसीबत जरूर बन सकते हैं,चुनाव के समय ऐसे नेताओं को मनाने का भी सिलसिला चलता है।

राजनीतक दल सक्रिय

अभी हाल में खैर विधानसभा क्षेत्र से दो नए दावेदार सामने आए हैं, जिन्हें पिछले एक साल से क्षेत्र की जनता नहीं जानती थी, मगर वह इंटरनेट मीडिया के माध्यम से प्रगट होने लगे हैं। धीरे-धीरे लोगों के बीच में भी जाने लगे हैं। वह संपर्क और संवाद कर रहे हैं। जनता से जनसंवाद स्थापित कर रहे हैं। वह गांवों में भ्रमण कर रहे हैं तो कई बार ग्रामीण भी ऐसे लोगों पर सवाल दाग देते हैं कि चुनाव नजदीक आया तो नेताजी दिखाई देने लगे। इसी प्रकार से कोल विधानसभा क्षेत्र में भी कुछ नेता दिखाई देने लगे हैं, वह पिछले चार साल से शांत बैठे हुए थे, चुनाव को देखते हुए वह भी मैदान में दिखने लगे हैं। वरिष्ठ चिंतक और एसाेसिएट प्रोफेसर वीपी पांडेय का कहना है कि राजनीति में इस तरह का आना गलत है, यदि राजनीति में आना है तो कम से कम 10 वर्ष जनता के बीच में संघर्ष करना चाहिए। जनता की समस्याएं सुननी चाहिए, उनसे जुड़ना चाहिए, उसके बाद उन्हें चुनाव के लिए मैदान में उतरना चाहिए। मगर, आजकल तो देखा जाता है कि छह महीने में ही दलबल के साथ लोग आते हैं और चुनाव की तैयारियों में जुट जाते हैं। ऐसे लोग यदि सदन में पहुंच जाते हैं तो फिर जनता का काम नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें समस्याओं के बारे में पता नहीं होता है। पांच साल व्यतीत करने के बाद वह फिर चुनाव की तैयारी में जुट जाते हैं।

रवि कुमार का कहना है कि चुनाव के समय ऐसे लोग आठ-दस हजार वोट ही प्राप्त कर पाते हैं, मगर वह बड़े दल के नेताओं के लिए मुसीबत बन जाते हैं, क्योंकि कई सीटों पर इतने ही वोटों से हार जीत होती है। इससे पांच साल से मेहनत कर रहे प्रत्याशी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है।

--------------------------------

chat bot
आपका साथी